ध्यान साधना में उपासना .....
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ध्यान सदा पूर्णता का होता है| परमात्मा का जो ज्योतिर्मय अनंत अखंड मंडलाकार कूटस्थ रूप है, वह हमारा उपास्य है| जिस में सब कुछ समाहित है, कुछ भी जिस से पृथक नहीं है, उस पूर्णता का ध्यान करते करते हम पूर्ण हो सकते हैं| जिन परमशिव का कभी जन्म नहीं हुआ, उन का ध्यान हमें मृत्युंजयी बना सकता है| इस संसार में जो कुछ भी हम ढूँढ रहे हैं ..... सुख, शांति, सुरक्षा, आनंद, समृद्धि, वैभव, यश, और कीर्ति ...... वह सब तो हम स्वयं ही हैं| बाहर के विश्व में इन सब की खोज एक मृगतृष्णा है|
यह पूर्णता ही सत्य यानि परमात्मा है| अपनी अपूर्णता का पूर्णता में पूर्ण समर्पण उपासना है|
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परमात्मा की परम कल्याणकारक पूर्णता परमशिव है| उस पूर्णता को उपलब्ध होने के लिए हमने जन्म लिया है| जब तक हम उसमें समर्पित नहीं होंगे तब तक यह अपूर्णता रहेगी| पूर्णता का एकमात्र मार्ग है ..... परम प्रेम, पवित्रता और उसे पाने की गहन अभीप्सा| अन्य कोई मार्ग नहीं है| जब हम इस मार्ग पर चलते हैं तब परमप्रेमवश प्रभु स्वयं निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते हैं|
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ध्यान सदा पूर्णता का होता है| परमात्मा का जो ज्योतिर्मय अनंत अखंड मंडलाकार कूटस्थ रूप है, वह हमारा उपास्य है| जिस में सब कुछ समाहित है, कुछ भी जिस से पृथक नहीं है, उस पूर्णता का ध्यान करते करते हम पूर्ण हो सकते हैं| जिन परमशिव का कभी जन्म नहीं हुआ, उन का ध्यान हमें मृत्युंजयी बना सकता है| इस संसार में जो कुछ भी हम ढूँढ रहे हैं ..... सुख, शांति, सुरक्षा, आनंद, समृद्धि, वैभव, यश, और कीर्ति ...... वह सब तो हम स्वयं ही हैं| बाहर के विश्व में इन सब की खोज एक मृगतृष्णा है|
यह पूर्णता ही सत्य यानि परमात्मा है| अपनी अपूर्णता का पूर्णता में पूर्ण समर्पण उपासना है|
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परमात्मा की परम कल्याणकारक पूर्णता परमशिव है| उस पूर्णता को उपलब्ध होने के लिए हमने जन्म लिया है| जब तक हम उसमें समर्पित नहीं होंगे तब तक यह अपूर्णता रहेगी| पूर्णता का एकमात्र मार्ग है ..... परम प्रेम, पवित्रता और उसे पाने की गहन अभीप्सा| अन्य कोई मार्ग नहीं है| जब हम इस मार्ग पर चलते हैं तब परमप्रेमवश प्रभु स्वयं निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते हैं|
इस उपासना में उपासक और उपास्य दोनों एक हैं| यह बड़े रहस्य की गोपनीय बात है| यह मेरा परम गोपनीय रहस्य है जिसे मैं अनावृत नहीं कर सकता क्योंकि इसके अतिरिक्त मेरे पास और कुछ है भी नहीं|
"नमस्तुभ्यं नमो मह्यं तुभ्यं मह्यं नमोनमः| अहं त्वं त्वमहं सर्वं जगदेतच्चराचरम्|| (स्कन्दपुराण:२:२:२७:३०)"
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते| पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते|| ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः||
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
३० नवम्बर २०१९
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते| पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते|| ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः||
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
३० नवम्बर २०१९
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