Monday, 30 October 2017

किस का ध्यान करें ? किस को प्रेम करें ? ....

किस का ध्यान करें ? किस को प्रेम करें ?
.
ध्यान उसी का होता है जिस से प्रेम होता है| बिना प्रेम के कोई ध्यान नहीं होता| प्रेम तो हमें उस से हो गया है जिस का कभी जन्म ही नहीं हुआ है, और जिस की कभी मृत्यु भी नहीं होगी| जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु तो अवश्य ही होगी| पर जिसने कभी जन्म ही नहीं लिया, क्या वह मृत्यु को प्राप्त कर सकता है?
.
हमारा भी एक अजन्मा स्वरुप भी है जो अनादि और अनंत है| वह ही हमारा वास्तविक अस्तित्व है| हम यह देह नहीं हैं, प्रभु की अनंतता हैं| उस अनंतता को ही प्रेम करें और उसी का ध्यान करें|
.
यही शिव भाव है| उन सर्वव्यापी भगवान परम शिव में परम प्रेममय हो कर पूर्ण समर्पण करना ही उच्चतम साधना है, वही मुक्ति है, और वही लक्ष्य है|
.
अपने विचारों के प्रति सतत् सचेत रहिये| जैसा हम सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं| हमारे विचार ही हमारे "कर्म" हैं, जिनका फल भोगना ही पड़ता है| मन की हर इच्छा, हर कामना एक कर्म या क्रिया है जिसकी प्रतिक्रया अवश्य होती है| यही कर्मफल का नियम है|
.
अतः हम स्वयं को मुक्त करें ..... सब कामनाओं से, सब संकल्पों से, सब विचारों से, और निरंतर शिव भाव में रहें|
.
उन परम शिव से परम प्रेम, उन्हें पाने की अभीप्सा और तड़प, उन के प्रति पूर्ण समर्पण व प्रेम, समष्टि के कल्याण की कामना व प्रार्थना, और कुछ भी नहीं|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!
.
कृपा शंकर
२९ अक्टूबर २०१७

No comments:

Post a Comment