परमात्मा के परमप्रेममय रूप का हम सदा ध्यान करें .....
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प्रेम ही ब्रह्म है, प्रेम ही हमारा स्वभाव है, वही हमारा वास्तविक अस्तित्व है, और उस पर ध्यान ही सच्चिदानंद की प्राप्ति का मार्ग है| सब कुछ ब्रह्ममय है | ब्रह्म ही हमारा साक्षिरूप है, वही परमशिव है, वही गुरु रूप में निरंतर कूटस्थ में बिराजमान है | सहस्त्रार गुरुचरण हैं और सहस्त्रार में स्थिति ही गुरुचरणों में आश्रय है |
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जिस देह में हम यह लोकयात्रा कर रहे हैं, इस देह का भ्रूमध्य पूर्व दिशा है, सहस्त्रार उत्तर दिशा है, बिंदु विसर्ग (शिखास्थल) पश्चिम दिशा है और उससे नीचे का क्षेत्र दक्षिण दिशा है|
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सहस्त्रार से परे का क्षेत्र परा है, वही परब्रह्म है वही परमशिव है जहाँ उनके सिर से प्रेममयी ज्ञानगंगा उनकी परम कृपा के रूप में हम सब पर तैलधारा की तरह निरंतर बरस रही है|
ॐ ॐ ॐ !!
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वह परब्रह्म परमशिव परमप्रेम हम स्वयं हैं, कहीं कोई पृथकता नहीं है| भगवान के इसी परमप्रेममय रूप पर हम सदा ध्यान करें| ॐ ॐ ॐ !!
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ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!
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पुनश्चः :---- जब हम कहते हैं कि पूर्व दिशा में मुँह कर के ध्यान करो, इसका अर्थ है अंतर्दृष्टि भ्रूमध्य में रख कर ध्यान करो| जब हम कहे हैं कि उत्तर दिशा में मुँह कर के ध्यान करो, इसका अर्थ है सहस्त्रार पर अंतर्दृष्टि रख कर ध्यान करो| दक्षिण दिशा में ध्यान मत करो ... का अर्थ है आज्ञा चक्र से नीचे दृष्टी मत रखो ध्यान के समय |
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प्रेम ही ब्रह्म है, प्रेम ही हमारा स्वभाव है, वही हमारा वास्तविक अस्तित्व है, और उस पर ध्यान ही सच्चिदानंद की प्राप्ति का मार्ग है| सब कुछ ब्रह्ममय है | ब्रह्म ही हमारा साक्षिरूप है, वही परमशिव है, वही गुरु रूप में निरंतर कूटस्थ में बिराजमान है | सहस्त्रार गुरुचरण हैं और सहस्त्रार में स्थिति ही गुरुचरणों में आश्रय है |
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जिस देह में हम यह लोकयात्रा कर रहे हैं, इस देह का भ्रूमध्य पूर्व दिशा है, सहस्त्रार उत्तर दिशा है, बिंदु विसर्ग (शिखास्थल) पश्चिम दिशा है और उससे नीचे का क्षेत्र दक्षिण दिशा है|
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सहस्त्रार से परे का क्षेत्र परा है, वही परब्रह्म है वही परमशिव है जहाँ उनके सिर से प्रेममयी ज्ञानगंगा उनकी परम कृपा के रूप में हम सब पर तैलधारा की तरह निरंतर बरस रही है|
ॐ ॐ ॐ !!
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वह परब्रह्म परमशिव परमप्रेम हम स्वयं हैं, कहीं कोई पृथकता नहीं है| भगवान के इसी परमप्रेममय रूप पर हम सदा ध्यान करें| ॐ ॐ ॐ !!
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ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!
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पुनश्चः :---- जब हम कहते हैं कि पूर्व दिशा में मुँह कर के ध्यान करो, इसका अर्थ है अंतर्दृष्टि भ्रूमध्य में रख कर ध्यान करो| जब हम कहे हैं कि उत्तर दिशा में मुँह कर के ध्यान करो, इसका अर्थ है सहस्त्रार पर अंतर्दृष्टि रख कर ध्यान करो| दक्षिण दिशा में ध्यान मत करो ... का अर्थ है आज्ञा चक्र से नीचे दृष्टी मत रखो ध्यान के समय |
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