Monday, 30 October 2017

जो हृदय की घनीभूत पीड़ा को दूर करे वही सबसे बड़ा लाभ है ......

जो हृदय की घनीभूत पीड़ा को दूर करे वही सबसे बड़ा लाभ है ......
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मैं स्वयं की पीड़ा, स्वयं का दुःख और कष्ट तो सहन कर लेता हूँ, पर जो लोग मुझ से जुड़े हुए हैं उनका कष्ट सहन नहीं कर पाता और उनके दुःख में स्वयं दुखी होजाता हूँ, यह मेरी कमी ही है|
यह संसार सचमुच दुःख का महासागर है जिसमें चारों ओर कपटी हिंसक प्राणी भरे हुए हैं? कोई कहता है कि मनुष्य का अहंकार दुखी है, कोई इसे कर्मों का खेल बताता है, तो कोई कुछ और| दुखी मनुष्य बेचारा कपटी ठगों के चक्कर में पड़ जाता है जो आस्थाओं के नाम पर उसका सब कुछ ठग लेते हैं| इस संसार में मनुष्य जिन्हें अपना समझता है वे भी उसके साथ छल करते हैं|
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गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने बहुत अच्छा मार्गदर्शन दिया है| उन्होंने एक स्थिति को प्राप्त करने का आदेश दिया है जिसमें स्थित होकर मनुष्य दुःखों से परे हो जाता है ....

"यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः |
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते" ||६.२२||
भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर ने इसको आत्मलाभ बताकर इसकी व्याख्या यों की है .....
"यं लब्ध्वाम् यम् आत्मलाभं लब्ध्वा प्राप्य च अपरम् अन्यत् लाभं लाभान्तरं ततः अधिकम् अस्तीति न मन्यते न चिन्तयति | किञ्च यस्मिन् आत्मतत्त्वे स्थितः दुःखेन शस्त्रनिपातादिलक्षणेन गुरुणा महता अपि न विचाल्यते" ||
आचार्य शंकर के अनुसार यह आत्मतत्व में स्थिति रूपी सबसे बड़ा लाभ है जिस लाभ को प्राप्त होने से अधिक अन्य कुछ भी लाभ नहीं है, जिसमें स्थित हुआ योगी बड़े भारी से भारी दुःख से भी विचलित नहीं होता है|
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आत्मतत्व में स्थित होने का मार्ग तो कोई श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ही बता सकता है| ह्रदय में परम प्रेम और अभीप्सा होगी तो भगवान स्वयं किसी न किसी रूप में हमारा मार्गदर्शन करेंगे| भगवान से बड़ा कोई अन्य हमारा हितैषी नहीं है, उनसे बड़ा कोई अन्य मित्र भी नहीं है|
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२३ अक्टूबर २०१७

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