Monday, 30 October 2017

शिक्षा की तरह आध्यात्म में भी क्रम होते हैं .....

किसी भी विद्यालय में जैसे कक्षाओं के क्रम होते हैं ..... पहली दूसरी तीसरी चौथी पांचवीं आदि कक्षाएँ होती है, वैसे ही साधना में भी क्रम होते हैं| जो चौथी में पढ़ाया जाता वह पाँचवीं में नहीं| एक चौथी कक्षा का बालक अभियांत्रिकी गणित के प्रश्न हल नहीं कर सकता| वैसे ही आध्यात्म में है|
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किसी भी जिज्ञासु के लिए आरम्भ में भगवान की साकार भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ है| उसके पश्चात ही क्रमशः स्तुति, जप, स्वाध्याय, ध्यान आदि के क्रम आते हैं| वेदों-उपनिषदों को समझने की पात्रता आते आते तो कई जन्म बीत जाते हैं| एक जन्म में वेदों का ज्ञान नहीं मिलता, उसके लिए कई जन्मों की साधना चाहिए| दर्शन और आगम शास्त्रों को समझना भी इतना आसान नहीं है|
सबसे अच्छा तो यह है कि सिर्फ भगवान की भक्ति करें और भगवान जो भी ज्ञान करादें उसे ही स्वीकार कर लें, भगवान के अतिरिक्त अन्य कोई कामना न रखें|
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आरम्भ में भगवान के अपने इष्ट स्वरुप की साकार भक्ति ही सबसे सरल और सुलभ है| किसी भी तरह का दिखावा और प्रचार न करें| घर के किसी एकांत कोने को ही अपना साधना स्थल बना लें| उसे अन्य काम के लिए प्रयोग न करें, व साफ़-सुथरा और पवित्र रखें| जब भी समय मिले वहीं बैठ कर अपनी पूजा-पाठ, जप आदि करें|
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ह्रदय में प्रेम और तड़प होगी तो भगवान आगे का मार्ग भी दिखाएँगे| जो आपको भगवान से विमुख करे ऐसे लोगों का साथ विष की तरह छोड़ दें| भगवान से प्रेम ही सर्वश्रेष्ठ है| उन्हें अपने ह्रदय का पूर्ण प्रेम दें| शुभ कामनाएँ|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

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