Friday 25 August 2017

आत्मा की पूर्णता के द्वारा ही बाह्य परिवेश को पूर्ण बनाया जा सकता है .....

आत्मा की पूर्णता के द्वारा ही बाह्य परिवेश को पूर्ण बनाया जा सकता है .....
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हम बाहरी जीवन में पूर्णता खोज रहे हैं, इसके लिए विकास की बातें करते हैं| वह विकास भी आवश्यक है, पर बाहरी भौतिक जीवन में हम चाहे जितना विकास कर लें, जीवन में एक शून्यता ही रहेगी व संतुष्टि और तृप्ति तो कभी भी नहीं मिलेगी|
आत्मा की पूर्णता के द्वारा ही बाह्य परिवेश को पूर्ण बनाया जा सकता है| पूर्णता कहीं बाहर नहीं,भीतर ही है|
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पूर्णता की खोज में मनुष्य ने पूंजीवाद, साम्यवाद (मार्क्सवाद), और समाजवाद जैसे सिद्धांत बनाए, पर इनसे मानव जाति का कुछ भी हित नहीं हुआ, उल्टा भयानक विनाश ही विनाश हुआ है|

अपने अहं की तुष्टि केलिए मनुष्य बड़ी बड़ी कोठियाँ बनाता है, बड़ी बड़ी शानदार कारें और विलासिता का खूब सामान खरीदता है, बड़ी बड़ी क्लबों का सदस्य बनता है, पर अंततः कुंठित और असंतुष्ट होकर ही मरता है|
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जिनको हम अति विकसित देश कहते हैं, उनमें से अधिकाँश देशों में जाने का मुझे खूब अवसर मिला है| समाज के समृद्ध वर्ग के लोगों के साथ ही अधिकतः रहा हूँ| पर मैनें संतुष्टि और तृप्ति तो कहीं नहीं देखी| इसका कारण है कि समाज के अधिकाँश लोग अपने से बाहर ही पूर्णता ढूंढ रहे हैं, कोई आत्मा की पूर्णता के बारे में नहीं सोचता| आत्मा की पूर्णता में ही आनंद है|
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मैं यह सब अपनी स्वयं की प्रसन्नता और संतुष्टि के लिए ही लिख रहा हूँ| ऐसी बातों को कोई नहीं पढ़ेगा| कोई पढ़े या न पढ़ें, स्वयं के विचारों को व्यक्त करने में कोई बुराई नहीं है| इसीलिये यह सब लिखा जा रहा है|
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हर हर महादेव ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

१५ अगस्त २०१७

1 comment:

  1. बाहरी विश्व में सकारात्मक परिवर्तन किसी आलोचना या निंदा से नहीं आयेगा | उसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्तर पर अपनी सोच में और अपनी चेतना में सकारात्मक परिवर्तन लाना होगा | भीतर की पूर्णता से ही बाहर की पूर्णता आयेगी | भीतर के विकास से ही बाहर का विकास होगा |

    पूर्णता सिर्फ परमात्मा में है | स्वयं में पूर्णता सिर्फ परमात्मा के ध्यान से ही आ सकती है | ध्यान भी तभी होगा जब परमात्मा के प्रति हमारे ह्रदय में परम प्रेम होगा | सबसे बड़ी सेवा हम अव्यक्त ब्रह्म को स्वयं में व्यक्त कर के ही कर सकते हैं |

    ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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