भक्ति और आस्था का संगम ........
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(१) ढाई हज़ार फीट की ऊँचाई पर स्थित बाबा मालकेत की २४ कौसीय परिक्रमा पूरे राजस्थान में होने वाली सबसे बड़ी परिक्रमा है जो राजस्थान के झुंझुनूं जिले की अरावली पर्वत माला के लोहार्गल तीर्थ से संत महात्माओं के नेतृत्व में ठाकुर जी की पालकी के साथ गोगा नवमी (भाद्रपद कृष्ण नवमी) के दिन आरम्भ होकर भाद्रपद अमावस्या के दिन लोहार्गल तीर्थ में ही बापस आकर समाप्त हो जाती है| इस सात दिवसीय चौबीस कौसीय परिक्रमा में हर वर्ष सात से नौ लाख श्रद्धालु पूरे भारत से आकर भाग लेते हैं| इस वर्ष लगभग आठ लाख श्रद्धालुओं ने इस पदयात्रा परिक्रमा में भाग लिया| अमावस्या के दिन लोहार्गल में हज़ारों श्रद्धालु और एकत्र हो जाते हैं| सभी श्रद्धालु अमावस्या के दिन लोहार्गल तीर्थ के सूर्य कुंड में स्नान कर अपने अपने घरों को बापस चले जाते हैं| कहते हैं महाभारत युद्ध के पश्चात् इसी दिन पांडवों ने जब यहाँ सूर्यकुंड में स्नान किया तो भीम की लोहे की गदा गल गयी थी जिससे इस तीर्थ का नाम लोहार्गल पड़ा| अरावली पर्वत माला की घाटियों में यह यात्रा अति मनोरम होती है| अनेक स्वयंसेवी संस्थाएँ पदयात्रियों की हर सुविधा का ध्यान रखती हैं| आज सोमवती अमावस्या के दिन इस पर्व का विशेष महत्व था|
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(२) आज भाद्रपद अमावस्या के दिन ही सभी सती मंदिरों में मुख्य आराधना होती है| झुंझुनू के विश्व प्रसिद्ध श्रीराणीसती दादीजी के मंदिर में भी मुख्य आराधना इसी दिन होती है| ये सभी सतियाँ वीरांगणाएँ थीं जिन्होंने धर्मारक्षार्थ युद्धभूमि में युद्ध किया और स्वयं प्रकट हुए अपने तेज से सती हुईं|
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(३) आज भाद्रपद अमावस्या के दिन ही मध्याह्न काल में ६९ वर्ष पूर्व इस "शरीर महाराज" का जन्म झुंझुनूं में हुआ था| इस "शरीर महाराज" ने इस कथन को चरितार्थ किया ..... "आया था किस काम को, तु सोया चादर तान"| जाग बहुत देर से हुई; हुई तो भी बहुत सारे दुःस्वप्नों के साथ| फिर क्या हुआ ? .... "बाना पहिना सिंह का, चला भेड़ की चाल", ..... ऐसे ही जीवन व्यर्थ चला गया ..... "आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास"| अब वह दुःस्वप्न बीत गया है, देरी से ही सही यह ग़ाफिल जाग चुका है| आगे प्रकाश ही प्रकाश है| कहीं कोई निराशा नहीं है| जिनका कभी जन्म ही नहीं हुआ उनका आश्रय मिला है| वहाँ कोई मृत्यु नहीं , कोई भय नहीं है|
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आप सब को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२१ अगस्त २०१७
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(१) ढाई हज़ार फीट की ऊँचाई पर स्थित बाबा मालकेत की २४ कौसीय परिक्रमा पूरे राजस्थान में होने वाली सबसे बड़ी परिक्रमा है जो राजस्थान के झुंझुनूं जिले की अरावली पर्वत माला के लोहार्गल तीर्थ से संत महात्माओं के नेतृत्व में ठाकुर जी की पालकी के साथ गोगा नवमी (भाद्रपद कृष्ण नवमी) के दिन आरम्भ होकर भाद्रपद अमावस्या के दिन लोहार्गल तीर्थ में ही बापस आकर समाप्त हो जाती है| इस सात दिवसीय चौबीस कौसीय परिक्रमा में हर वर्ष सात से नौ लाख श्रद्धालु पूरे भारत से आकर भाग लेते हैं| इस वर्ष लगभग आठ लाख श्रद्धालुओं ने इस पदयात्रा परिक्रमा में भाग लिया| अमावस्या के दिन लोहार्गल में हज़ारों श्रद्धालु और एकत्र हो जाते हैं| सभी श्रद्धालु अमावस्या के दिन लोहार्गल तीर्थ के सूर्य कुंड में स्नान कर अपने अपने घरों को बापस चले जाते हैं| कहते हैं महाभारत युद्ध के पश्चात् इसी दिन पांडवों ने जब यहाँ सूर्यकुंड में स्नान किया तो भीम की लोहे की गदा गल गयी थी जिससे इस तीर्थ का नाम लोहार्गल पड़ा| अरावली पर्वत माला की घाटियों में यह यात्रा अति मनोरम होती है| अनेक स्वयंसेवी संस्थाएँ पदयात्रियों की हर सुविधा का ध्यान रखती हैं| आज सोमवती अमावस्या के दिन इस पर्व का विशेष महत्व था|
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(२) आज भाद्रपद अमावस्या के दिन ही सभी सती मंदिरों में मुख्य आराधना होती है| झुंझुनू के विश्व प्रसिद्ध श्रीराणीसती दादीजी के मंदिर में भी मुख्य आराधना इसी दिन होती है| ये सभी सतियाँ वीरांगणाएँ थीं जिन्होंने धर्मारक्षार्थ युद्धभूमि में युद्ध किया और स्वयं प्रकट हुए अपने तेज से सती हुईं|
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(३) आज भाद्रपद अमावस्या के दिन ही मध्याह्न काल में ६९ वर्ष पूर्व इस "शरीर महाराज" का जन्म झुंझुनूं में हुआ था| इस "शरीर महाराज" ने इस कथन को चरितार्थ किया ..... "आया था किस काम को, तु सोया चादर तान"| जाग बहुत देर से हुई; हुई तो भी बहुत सारे दुःस्वप्नों के साथ| फिर क्या हुआ ? .... "बाना पहिना सिंह का, चला भेड़ की चाल", ..... ऐसे ही जीवन व्यर्थ चला गया ..... "आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास"| अब वह दुःस्वप्न बीत गया है, देरी से ही सही यह ग़ाफिल जाग चुका है| आगे प्रकाश ही प्रकाश है| कहीं कोई निराशा नहीं है| जिनका कभी जन्म ही नहीं हुआ उनका आश्रय मिला है| वहाँ कोई मृत्यु नहीं , कोई भय नहीं है|
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आप सब को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२१ अगस्त २०१७
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