भगवान श्रीकृष्ण मेरे प्राण हैं ......
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भगवान श्रीकृष्ण परम तत्व हैं| उनकी प्रशंसा या महिमा का बखान करने की मुझमें कोई योग्यता नहीं है| मैं तो उन्हें सदा अपने प्राणों में पाता हूँ| वे ही मेरे प्राण हैं, इससे अधिक कुछ कहने की मुझमें सामर्थ्य नहीं है|
.
आचार्य मधुसुदन सरस्वती ने उनकी स्तुति इन शब्दों में की है .....
"वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् | पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात् ||
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात् | कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ||"
जिनके करकमल वंशी से विभूषित हैं, जिनकी नवीन मेघकी-सी आभा है, जिनके पीत वस्त्र हैं, अरुण बिम्बफल के समान अधरोष्ठ हैं, पूर्ण चन्द्र के सदृश्य सुन्दर मुख और कमल के से नयन हैं, ऐसे भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर अन्य किसी भी तत्व को मैं नहीं जानता ||
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भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में जितना साहित्य लिखा गया है उतना भगवान के अन्य किसी भी रूप पर नहीं लिखा गया है | वे हमारे हृदय में, हमारी चेतना में निरंतर रहें, इससे अधिक कुछ भी लिखना अभी तो असंभव है | वे तो मेरे प्राण हैं |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ
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भगवान श्रीकृष्ण परम तत्व हैं| उनकी प्रशंसा या महिमा का बखान करने की मुझमें कोई योग्यता नहीं है| मैं तो उन्हें सदा अपने प्राणों में पाता हूँ| वे ही मेरे प्राण हैं, इससे अधिक कुछ कहने की मुझमें सामर्थ्य नहीं है|
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आचार्य मधुसुदन सरस्वती ने उनकी स्तुति इन शब्दों में की है .....
"वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् | पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात् ||
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात् | कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ||"
जिनके करकमल वंशी से विभूषित हैं, जिनकी नवीन मेघकी-सी आभा है, जिनके पीत वस्त्र हैं, अरुण बिम्बफल के समान अधरोष्ठ हैं, पूर्ण चन्द्र के सदृश्य सुन्दर मुख और कमल के से नयन हैं, ऐसे भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर अन्य किसी भी तत्व को मैं नहीं जानता ||
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भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में जितना साहित्य लिखा गया है उतना भगवान के अन्य किसी भी रूप पर नहीं लिखा गया है | वे हमारे हृदय में, हमारी चेतना में निरंतर रहें, इससे अधिक कुछ भी लिखना अभी तो असंभव है | वे तो मेरे प्राण हैं |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ
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