Tuesday, 16 December 2025

आज गीता जयंती है। सभी को मंगलमय शुभ कामनाएँ।

 आज गीता जयंती है। सभी को मंगलमय शुभ कामनाएँ।

महाभारत के भीष्मपर्व में कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को -- कर्म, भक्ति, और ज्ञान -- इन तीन विषयों पर जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवद्गीता कहलाता है जिसे हम संक्षेप में गीता कहते हैं। इन तीन विषयों में ही उन्होने सारे सनातन धर्म को समाहित कर लिया है। गीता -- भारत का प्राण है। इसमें सारे उपनिषदों का सार है। ईश्वर के साक्षात्कार यानि भगवत्-प्राप्ति के लिए इसमें सारा मार्ग-दर्शन है।
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गीता को समझना सभी के लिए संभव नहीं है। इसकी एक सीमा है। ज्ञान और भक्ति की बातें वे ही समझ सकते हैं जिनमें सतोगुण प्रधान है। कर्मयोग को वे ही समझ सकते हैं जिनमें रजोगुण प्रधान है। जिनमें तमोगुण प्रधान है, वे गीता को नहीं समझ सकते। वे लोग सब उल्टे-सीधे उपदेश देते हैं।
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गीता का सार -- "शरणागति द्वारा परमात्मा को समर्पण" है।
भगवान कहाँ है? भगवान कहते हैं --
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६:३०॥"
अर्थात् -- जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिए मैं नष्ट नहीं होता (अर्थात् उसके लिए मैं दूर नहीं होता) और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता॥
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भगवान का भक्त कभी नष्ट नहीं होता है, यह भगवान का स्पष्ट आश्वासन है।
भगवान कहते हैं --
"अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥९:३०॥"
"क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति॥९:३१॥"
अर्थात् - "यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है, वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है॥"
" हे कौन्तेय, वह शीघ्र ही धर्मात्मा बन जाता है और शाश्वत शान्ति को प्राप्त होता है। तुम निश्चयपूर्वक सत्य जानो कि मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होता॥"
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अब और क्या लिखूँ? पूरी गीता ही ज्ञान का भंडार है। भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में स्वयं का पूर्ण समर्पण करता हूँ। सभी पर भगवान की कृपा बनी रहे।
हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ दिसंबर २०२५

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