Saturday, 24 May 2025

सत्संग क्या है? सत्संग का मापदंड क्या है?

सत्संग की महिमा तो बहुत सुनी है, पर सत्संग क्या है? सत्संग का मापदंड क्या है कि हम सत्संग कर रहे हैं या समय ही नष्ट कर रहे हैं? सत्संग का अर्थ है सत्य का संग| एकमात्र सत्य .... "परमात्मा" है| जहाँ पर, जिस की उपस्थिती में, परमात्मा का आभास परमप्रेम (भक्ति) और परमात्मा के आनंद के रूप में स्पष्टतः होता है, वही सत्संग है, अन्यथा समय की बर्बादी है|

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महात्मा वह ही है जिस की उपस्थिती में हम परमात्मा के आनंद और भक्ति से भर जाएँ| महात्मा का अर्थ है जो महत् तत्व यानि परमात्मा की सर्वव्यापकता से जुड़ा है| जिस के संग से भगवान की भक्ति जागृत हो जाये और भगवान की अनुभूति होने लगे उसी का संग करना चाहिए|
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जो भगवान से दूर ले जाये वह कुसंग है, जिसका त्याग सर्वदा करना चाहिए|
भक्ति सूत्रों में नारद जी कहते हैं ... दुस्सङ्गः सर्वथैव त्याज्यः||४३|| अर्थात दुसंग सर्वदा त्याज्य है|
कामक्रोधमोहस्मृतिभ्रंशबुद्धिनाशकारणत्वात्||४४|| अर्थात (कुसंग) काम, क्रोध, मोह, स्मृतिभ्रंश, बुद्धिनाश एवं सर्वनाश का कारण है||
संत तुलसीदास जी कहते हैं ... "जाके प्रिय न राम बैदेही| तजिये ताहि कोटि बैरी सम जद्यपि परम स्नेही||"
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अतः सावधान रहें कि कहीं सत्संग के नाम पर हम कुसंग तो नहीं कर रहे हैं|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय || ॐ नमः शिवाय || ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२४ मई २०२०

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