अब तो भगवान से मिलना निश्चित है, वे अब और छिप नहीं सकते ---
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भगवान की बड़ी कृपा है कि वे स्वयं अपने स्वयं की उपासना कर रहे हैं। मेरी क्या औकात है उनका चिंतन, मनन, निदिध्यासन और ध्यान करने की? उनकी कृपा के बिना उनका नाम सोच भी नहीं सकता। अपनी परम कृपा कर वे मेरे कूटस्थ ऊर्ध्वमूल में शांभवी मुद्रा में बिराजमान हैं। केवल वे ही हैं, उनके सिवाय कोई अन्य नहीं है।
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जब तक भारत में १० भी ऐसे व्यक्ति हैं जो भगवान के साथ एक हैं, भारत कभी नष्ट नहीं हो सकता। उपासना द्वारा जागृत एक ब्रह्मशक्ति की आवश्यकता भारत को है। ब्रह्मशक्ति का प्राकट्य ही निश्चित रूप से धर्म की पुनर्स्थापना व वैश्वीकरण कर, चारों ओर छाये असत्य के अंधकार को नष्ट कर सकेगा। हमें आवश्यकता व्यावहारिक उपासना की है, बौद्धिक चर्चा की नहीं। अपना अधिकाधिक समय ध्यान द्वारा स्वयं में भगवान को व्यक्त करने में लगायें, तभी धर्म व राष्ट्र की रक्षा होगी। भगवान की चेतना स्वयं में निरंतर जागृत कर सभी में जागृत करें। यही सबसे बड़ी सेवा है जो हम समष्टि के लिए कर सकते हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! 

















कृपा शंकर
२३ मई २०२३
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