Thursday, 22 May 2025

सर्वप्रथम आत्म-साक्षात्कार यानि भगवत्-प्राप्ति करो, फिर उस चेतना में ही बाकी जीवन व्यतीत करो

 

सर्वप्रथम आत्म-साक्षात्कार यानि भगवत्-प्राप्ति करो, फिर उस चेतना में ही बाकी जीवन व्यतीत करो
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मनुष्य को अधिक से अधिक ३०-३५ वर्ष की आयु तक आत्म-साक्षात्कार यानि भगवत्-प्राप्ति कर लेनी चाहिए। फिर परमात्मा की चेतना में ही अवशिष्ट जीवन व्यतीत करना चाहिए। वे सब बहुत भाग्यशाली हैं, जो युवावस्था में ही आध्यात्म की ओर चल पड़ते हैं, व भगवत्-प्राप्ति कर लेते हैं। ३५ वर्ष की आयु के पश्चात परमात्मा को समर्पित होना असंभव सा है। पहले आत्म-साक्षात्कार करो, फिर समान विचारों के जीवन साथी के साथ घर-गृहस्थी बसाओ, नहीं तो विरक्त होकर अकेले ही रहो।
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मैं बहुत देरी से इस क्षेत्र में आया था। स्वयं के व्यक्तित्व में साहस का अभाव, घर व समाज में मार्ग-दर्शन का अभाव, हर कदम पर विरोध, घर-गृहस्थी की ज़िम्मेदारियाँ और अनेक तरह के बहाने थे, जिन्होंने ईश्वर की ओर पूरी तरह से उन्मुख नहीं होने दिया।
मेरा जन्म एक ऐसे समाज में हुआ जो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए ही संघर्ष कर रहा था। वैसे वातावरण में जहाँ सब ओर से विरोध हो, विरक्त होकर परमात्मा को समर्पित होना असंभव था।
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बहुत कुछ प्राप्त किया लेकिन अब भी एक बहुत पतले धुएँ का सा आवरण मेरे और परमात्मा के बीच में है, जो दूर नहीं हो रहा है। वह इसी जन्म में दूर तो हो जाएगा, ऐसा मेरा विश्वास है। परमात्मा के और मेरे मध्य में बस एक ही कदम की दूरी है।
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हमारा सर्वप्रथम और सर्वोच्च लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति हो, फिर उस चेतना में बाकी जीवन जीना हो। मुझे कोई मुक्ति या मोक्ष नहीं चाहिए। यदि पुनर्जन्म हो तो जन्म से ही वैराग्य और परमात्मा से परमप्रेम हो। परमात्मा को तो आना ही पड़ेगा। वे भी हमारे बिना नहीं रह सकते।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ मई २०२४

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