भगवान हैं, यही भगवान के होने का प्रमाण है ---
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भगवान "हैं"। यह "हैं" शब्द ही प्रमाण है भगवान के होने का। वे इसी समय, हर समय, यहीं पर, और सर्वत्र हैं। मेरी श्रद्धा और विश्वास कभी भी भगवान को मुझसे दूर नहीं होने देंगे। जिनमें श्रद्धा और विश्वास नहीं है, उन्हें भगवान की अनुभूति कभी भी नहीं हो सकती।
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रामचरितमानस के मंगलाचरण में कहा गया है --
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्॥२॥"
अर्थात् - श्रद्धा-विश्वास के रूप में भवानी-शंकर की वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धों को भी ईश्वर के दर्शन नहीं होते।
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गीता में भगवान कहते हैं --
"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥४:३९॥"
"अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः॥४:४०॥"
"योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसंछिन्नसंशयम्।
आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय॥४:४१॥"
अर्थात् - "श्रद्धावान्, तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान को प्राप्त करके शीघ्र ही वह परम शान्ति को प्राप्त होता है॥"
"अज्ञानी तथा श्रद्धारहित और संशययुक्त पुरुष नष्ट हो जाता है, (उनमें भी) संशयी पुरुष के लिये न यह लोक है, न परलोक और न सुख॥"
"जिसने योगद्वारा कर्मों का संन्यास किया है, ज्ञानद्वारा जिसके संशय नष्ट हो गये हैं, ऐसे आत्मवान् पुरुष को, हे धनंजय ! कर्म नहीं बांधते हैं॥"
He who is full of faith attains wisdom, and he too who can control his senses, having attained that wisdom, he shall ere long attain Supreme Peace.
But the ignorant man, who has no faith, and the skeptic are lost. Neither in this world nor elsewhere is there any happiness in store for him who always doubts.
But the man who has renounced his action for meditation, who has cleft his doubt in twain by the sword of wisdom, who remains always enthroned in his Self, is not bound by his acts.
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वास्तव में जो कुछ भी हम प्राप्त करना चाहते हैं या होना चाहते हैं, उसे हमारी श्रद्धा और विश्वास ही प्रदान करते हैं। परमात्मा की कृपा भी हमारे ऊपर तभी होती है जब हमारे में श्रद्धा और विश्वास होते हैं।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२२ अप्रेल २०२३
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