Monday, 21 April 2025

हमारी भक्ति -- श्रद्धा और विश्वास के साथ-साथ अनन्य और अव्यभिचारिणी हो ---

हमारी भक्ति -- श्रद्धा और विश्वास के साथ-साथ अनन्य और अव्यभिचारिणी हो
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भगवान से भगवान के अतिरिक्त अन्य कुछ भी मांगना व्यभिचार है। कुछ पाने के उद्देश्य से की गई भक्ति व्यभिचारिणी है। हमारी भक्ति में व्यभिचार न होकर बिना शर्त पूर्ण समर्पण हो। ॐ ॐ ॐ !!
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वास्तव में जो कुछ भी हम प्राप्त करना चाहते हैं या होना चाहते हैं, उसे हमारी श्रद्धा और विश्वास ही प्रदान करते हैं। परमात्मा की कृपा भी हमारे ऊपर तभी होती है जब हमारे में श्रद्धा और विश्वास होते हैं। जिनमें श्रद्धा और विश्वास नहीं है, उन्हें भगवान की अनुभूति कभी भी नहीं हो सकती।
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रामचरितमानस के मंगलाचरण में कहा गया है --
"भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्॥"
अर्थात् - श्रद्धा-विश्वास के रूप में भवानी-शंकर की वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धों को भी ईश्वर के दर्शन नहीं होते।
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गीता में भगवान कहते हैं --
"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥४:३९॥"
"अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः॥४:४०॥"
"योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसंछिन्नसंशयम्।
आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय॥४:४१॥"

अर्थात् - "श्रद्धावान्, तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान को प्राप्त करके शीघ्र ही वह परम शान्ति को प्राप्त होता है॥"
"अज्ञानी तथा श्रद्धारहित और संशययुक्त पुरुष नष्ट हो जाता है, (उनमें भी) संशयी पुरुष के लिये न यह लोक है, न परलोक और न सुख॥"
"जिसने योगद्वारा कर्मों का संन्यास किया है, ज्ञानद्वारा जिसके संशय नष्ट हो गये हैं, ऐसे आत्मवान् पुरुष को, हे धनंजय ! कर्म नहीं बांधते हैं॥"
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ अप्रेल २०२४ .
पुनश्च: --- आजकल मेरी रुचि एक ही विषय में सीमित हो गयी है, वह है "परमात्मा से परमप्रेम।" अन्य सब और से रुचि हट रही है। अतः किसी की भी अपेक्षाओं पर मैं खरा नहीं उतर सकता। परमात्मा की निजी अवधारणा भी मेरी स्पष्ट है जो किसी के साथ साझा नहीं कर सकता। अब तक जो सीखा है वह पर्याप्त है। मेरा मार्ग ज्योतिर्मय और स्पष्ट है, कोई संशय नहीं है। गुरु और परमात्मा भी मेरे साथ एक हैं। आप सब के साथ मैं एक हूँ। कृपया मुझ से कोई अपेक्षा न रखे। मेरा समर्पण परमात्मा के प्रति ही है। आप सब को नमन !!

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