मेरी उलटी खोपड़ी में भगवान ने एक दीपक जला रखा है ---
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मुझे अब कहीं कोई दीपक जलाने की आवश्यकता नहीं रही है। भगवान ने ही मेरी उल्टी खोपड़ी में एक दीपक जला रखा है, जो बिना किसी ईंधन और बत्ती के निरंतर जलता रहता है। वह जलता ही नहीं है, बल्कि उसमें से भगवान की वाणी भी प्रणव रूप में निरंतर निःसृत होती रहती है। उस दीपक के प्रकाश में मैं पूरी समष्टि के साथ एक हूँ। मेरे से अन्य कोई नहीं है। मेरी खोपड़ी एक उल्टे कुएं की तरह गगन में लटकी हुई है। जिस भी साधक को वह चिराग दिखाई देता है, वह धन्य है।
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उलटा कुआँ गगन में, तिसमें जरै चिराग।
तिसमें जरै चिराग, बिना रोगन बिन बाती |
छह ऋतु बारह मास, रहत जरतें दिन राती ||
सतगुरु मिला जो होय, ताहि की नजर में आवै |
बिन सतगुरु कोउ होर, नहीं वाको दर्शावै ||
निकसै एक आवाज, चिराग की जोतिन्हि माँही |
जाय समाधी सुनै, और कोउ सुनता नांही ||
पलटू जो कोई सुनै, ताके पूरे भाग |
उलटा कुआँ गगन में, तिसमें जरै चिराग ||
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पानी का कुआँ तो सीधा होता है पर यह उलटा कुआँ हमारी खोपड़ी है जिसका मुँह नीचे की ओर खुलता है। उस कुएँ में हमारी आत्मा यानि हमारी चैतन्यता का नित्य निवास है| उसमें दिखाई देने वाली अखंड ज्योति -- ज्योतिर्मय ब्रह्म है, उसमें से निकलने वाली ध्वनि -- अनाहत नादब्रह्म है| यही राम नाम की ध्वनी है|
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'कूटस्थ' में इनके साथ एकाकार होकर और फिर इनसे भी परे जाकर जीवात्मा परमात्मा को प्राप्त होती है| इसका रहस्य समझाने के लिए परमात्मा श्रोत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सदगुरुओं के रूप में अवतरित होते हैं| यह चैतन्य का दीपक ही हमें जीवित रखता है, इसके बुझ जाने पर देह मृत हो जाती है| बाहर हम जो दीपक जलाते हैं वे इसी कूटस्थ ज्योति के प्रतीक मात्र हैं| बाहर के घंटा, घड़ियाल, टाली और शंख आदि की ध्वनी उसी कूटस्थ अनाहत नाद की ही प्रतीक हैं| ह्रदय में गहन भक्ति और अभीप्सा ही हमें राम से मिलाती हैं| ब्रह्म के दो स्वरुप हैं| पहला है "शब्द ब्रह्म" और दूसरा है "ज्योतिर्मय ब्रह्म"| दोनों एक दूसरे के पूरक हैं| आज्ञा चक्र में नियमित रूप से ध्यान लगाने से ही ज्योतिर्मय और शब्द ब्रह्म की अनुभूति होती है|
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प्रिय निजात्मगण, आप सब की भावनाओं को नमन और मेरे लेख पढने के लिए आप सब का अत्यंत आभार| आप सब सदा सुखी एवं सम्पन्न रहें| आप की कीर्ति और यश सदा अमर रहे| आप सब इसी जन्म में परमात्मा को उपलब्ध हों।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२२ अप्रेल २०२३
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