गुरु वंदना जो नित्य हमें करनी चाहिए ---
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"ॐ गं गणपतये नमः॥ श्रीगुरवे नमः॥ श्रीपरमगुरवे नमः॥ श्रीपरात्परगुरवे नमः॥
श्रीपरमेष्ठिगुरवे नमः॥ श्रीपरमात्मने नमः॥"
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द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतम्
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि॥"
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"ॐ ऐं ह्रीं श्रीं गुरवे नमः॥"
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इस से आगे अपनी अपनी गुरु-परंपरा के अनुसार करे। पूजा श्रीगुरु की "चरण पादुका" की होती है, गुरु के देह की नहीं।
उपरोक्त लिखी गुरु-वंदना तो न्यूनतम और अनिवार्य है, जिसका विस्तार भी किया जा सकता है।
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ॐ तत्सत् ॥
२२ अप्रेल २०२४
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