दूसरों के सिर काट कर कोई बड़ा नहीं हो सकता| दूसरों के घर के दीपक बुझाकर कोई स्वयं के घर में प्रकाश नहीं कर सकता| विश्व के अनेक लोग स्वयं तो शान्ति से रहना नहीं जानते, पर अपनी शान्ति की खोज, धर्म के नाम पर दूसरों के प्रति घृणा, दूसरों की सभ्यताओं के विनाश, और दूसरों के नरसंहार में ही ढूँढते रहे हैं| ऐसे लोग इस संसार को नष्ट करने के लिए सदा तत्पर हैं| दूसरों से घृणा कर के या दूसरों का गला काट कर हम परमात्मा को प्रसन्न नहीं कर सकते| शांति का मार्ग जो भगवान् ने बताया है वह है ....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति | तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||"
श्रुति भगवती भी कहती है ..... "एकम् सत् विप्राः बहुधा वदन्ति |"
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भगवान ने हमें सर्वत्र उन्हीं को देखने को कहा है, पर साथ-साथ आतताइयों से स्वयं की रक्षा और राष्ट्ररक्षा के लिए एकजुट होकर प्रतिरोध और युद्ध करने के धर्म के पालन करने को भी कहा है| हम अपना हर कार्य जिस भी परिस्थिति में हम हैं, उस परिस्थिति में ईश्वर-प्रदत्त निज-विवेक से निर्णय लेकर ही करें| जहाँ संशय हो वहाँ भगवान से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें|
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हम मिल जुल कर प्रेम से रहेंगे तो सुखी रहेंगे | श्रुति भगवती कहती है ....
"संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् | देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते ||"
अर्थात् हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोले , हमारे मन एक हो| प्रााचीन समय में देवताओं का ऐसा आचरण रहा इसी कारण वे वंदनीय हैं|
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ॐ तत्सत ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
१८ मार्च २०२०
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति | तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||"
श्रुति भगवती भी कहती है ..... "एकम् सत् विप्राः बहुधा वदन्ति |"
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भगवान ने हमें सर्वत्र उन्हीं को देखने को कहा है, पर साथ-साथ आतताइयों से स्वयं की रक्षा और राष्ट्ररक्षा के लिए एकजुट होकर प्रतिरोध और युद्ध करने के धर्म के पालन करने को भी कहा है| हम अपना हर कार्य जिस भी परिस्थिति में हम हैं, उस परिस्थिति में ईश्वर-प्रदत्त निज-विवेक से निर्णय लेकर ही करें| जहाँ संशय हो वहाँ भगवान से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें|
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हम मिल जुल कर प्रेम से रहेंगे तो सुखी रहेंगे | श्रुति भगवती कहती है ....
"संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् | देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते ||"
अर्थात् हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोले , हमारे मन एक हो| प्रााचीन समय में देवताओं का ऐसा आचरण रहा इसी कारण वे वंदनीय हैं|
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ॐ तत्सत ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
१८ मार्च २०२०
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