राम नाम परमब्रह्म है .....
राम नाम में अखिल सृष्टि समाई हुई है, राम नाम सारे शास्त्रों का प्राण है, और भारत का उद्धार भी राम नाम ही करेगा| सिर्फ जयश्रीराम-जयश्रीराम के उद्घोष से ही काम नहीं चलेगा, हम को स्वयं ही अपनी निज चेतना में राममय बनना होगा| इस विषय पर यहाँ सत्संग करते हैं|
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भगवान श्रीकृष्ण ॐकार की महिमा में दो बार गीता में कहते हैं ....
"रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः| प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु||७:८||"
अर्थात् हे कौन्तेय ! जल में मैं रस हूँ, चन्द्रमा और सूर्य में प्रकाश हूँ, सब वेदों में प्रणव (ॐकार) हूँ तथा आकाश में शब्द और पुरुषों में पुरुषत्व हूँ||
"महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्| यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः||१०:२५||"
अर्थात् महर्षियों में भृगु और वाणियों-(शब्दों-) में एक अक्षर अर्थात् प्रणव (ॐकार) मैं हूँ| सम्पूर्ण यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहनेवालों में हिमालय मैं हूँ||
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प्रणव (ॐकार) पहले प्रकट हुआ, उस से त्रिपदा गायत्री बनी और वेदत्रय उस से बने| राम नाम को वेदों का प्राण माना जाता है, क्योंकि राम नाम से प्रणव होता है| जैसे प्रणव से र निकाल दो तो केवल पणव यानि ढोल हो जाएगा| ॐ में से म निकाल दिया जाए तो वह शोक का वाचक ओ हो जाएगा| प्रणव में र और ॐ में म कहना आवश्यक है, इसलिए राम नाम वेदों का प्राण है|
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भगवान् के नाम और रूप दोनों अनिर्वचनीय हैं| वृक्ष में जो शक्ति है वह बीज से ही आती है इसी प्रकार अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा में जो शक्ति है वह राम नाम से आती है| राम नाम अविनाशी व सर्वत्र व्यापक रूप से परिपूर्ण है| राम नाम के निरंतर मानसिक जप से स्वयं में एक अलौकिक शक्ति का प्राकट्य होता है| राम नाम एक मणिदीप और दीप्तिमान अग्नि है जो सारे अंधकार को नष्ट कर देती है| राम के बिना वर्णमाला भी अंधी है, क्योंकि रा और म ये दोनों अक्षर वर्णमाला की दो आँखें हैं| राम नाम के उच्चारण से वाणी में मिठास आता है और रोम-रोम पवित्र हो जाता है| राम नाम से समुद्र में बड़े बड़े पत्थर तैर गए, तो हमारा उद्धार कौन सी बड़ी बात है?
"ॐ सर्वशक्तिमते परमात्मने श्रीरामाय नम:||" राम राम राम|
ॐ तत्सत्| ॐ ॐ ॐ||
कृपा शंकर
१७ मार्च २०२०
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भगवान श्रीकृष्ण ॐकार की महिमा में दो बार गीता में कहते हैं ....
"रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः| प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु||७:८||"
अर्थात् हे कौन्तेय ! जल में मैं रस हूँ, चन्द्रमा और सूर्य में प्रकाश हूँ, सब वेदों में प्रणव (ॐकार) हूँ तथा आकाश में शब्द और पुरुषों में पुरुषत्व हूँ||
"महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्| यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः||१०:२५||"
अर्थात् महर्षियों में भृगु और वाणियों-(शब्दों-) में एक अक्षर अर्थात् प्रणव (ॐकार) मैं हूँ| सम्पूर्ण यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहनेवालों में हिमालय मैं हूँ||
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प्रणव (ॐकार) पहले प्रकट हुआ, उस से त्रिपदा गायत्री बनी और वेदत्रय उस से बने| राम नाम को वेदों का प्राण माना जाता है, क्योंकि राम नाम से प्रणव होता है| जैसे प्रणव से र निकाल दो तो केवल पणव यानि ढोल हो जाएगा| ॐ में से म निकाल दिया जाए तो वह शोक का वाचक ओ हो जाएगा| प्रणव में र और ॐ में म कहना आवश्यक है, इसलिए राम नाम वेदों का प्राण है|
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भगवान् के नाम और रूप दोनों अनिर्वचनीय हैं| वृक्ष में जो शक्ति है वह बीज से ही आती है इसी प्रकार अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा में जो शक्ति है वह राम नाम से आती है| राम नाम अविनाशी व सर्वत्र व्यापक रूप से परिपूर्ण है| राम नाम के निरंतर मानसिक जप से स्वयं में एक अलौकिक शक्ति का प्राकट्य होता है| राम नाम एक मणिदीप और दीप्तिमान अग्नि है जो सारे अंधकार को नष्ट कर देती है| राम के बिना वर्णमाला भी अंधी है, क्योंकि रा और म ये दोनों अक्षर वर्णमाला की दो आँखें हैं| राम नाम के उच्चारण से वाणी में मिठास आता है और रोम-रोम पवित्र हो जाता है| राम नाम से समुद्र में बड़े बड़े पत्थर तैर गए, तो हमारा उद्धार कौन सी बड़ी बात है?
"ॐ सर्वशक्तिमते परमात्मने श्रीरामाय नम:||" राम राम राम|
ॐ तत्सत्| ॐ ॐ ॐ||
कृपा शंकर
१७ मार्च २०२०
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