बाहर के विश्व या अन्य व्यक्तियों में पूर्णता की खोज निराशाजनक है .....
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इस संसार में मैं अकेला हूँ| मेरे साथ मेरे सिवाय अन्य कोई नहीं है| मैं सदा से ही बार-बार इस संसार से दूर जाने का प्रयास करता हूँ पर भगवान फिर से खींच कर यहाँ बापस इस संसार में ले आते हैं| एक क्षण के लिए भी यहाँ रहने की मेरी कोई इच्छा नहीं है, पर ईश्वर की इच्छा के आगे विवश हूँ| अब सोचना ही छोड़ दिया है, जैसी ईश्वर की इच्छा! जो उनकी इच्छा है वह ही सर्वोपरी है| वे कुछ सिखाना चाहते हैं अतः इस जीवन को वे ही जी रहे हैं| न तो मैं हूँ और न ही मेरा कुछ है| मेरी कोई स्वतंत्र इच्छा भी नहीं होनी चाहिए| स्वतंत्र इच्छाओं का होना ही मेरी सारी पीड़ाओं का कारण है| अब बचा-खुचा जो कुछ भी है वह बापस भगवान को समर्पित है| समर्पण के उन क्षणों में ही मैं ..... मैं नहीं होता, सिर्फ परमात्मा ही होते हैं|
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किसी भी अन्य व्यक्ति में मेरी कोई आस्था नहीं रही है, चाहे संसार की दृष्टि में वे कितने भी बड़े हों| जो जितना बड़ा दिखाई देता है, वास्तविकता में वह उतना ही छोटा है| पर क्या मेरे से अतिरिक्त अन्य कोई है? इसमें भी मुझे संदेह है| कोई अन्य है भी नहीं| मैं ही सभी में व्यक्त हो रहा हूँ| पूर्णता कहीं बाहर नहीं, परमात्मा में ही है, और परमात्मा स्वयं में ही है| बाहर के विश्व या अन्य व्यक्तियों में पूर्णता की खोज निराशाजनक है| किसी भी अन्य का साथ दुःखदायी है| साथ स्वयं में सिर्फ परमात्मा का ही हो| अन्य सारे साथ अंततः दुःखी ही करेंगे| मेरी साधना ही मेरा बल है और मेरा संकल्प ही मेरी शक्ति है, परमात्मा के सिवाय अन्य कोई सहारा नहीं है|
ॐ नमः शिवाय! ॐ नमः शिवाय! ॐ नमः शिवाय!
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"मनो बुद्धि अहंकार चित्तानि नाहं, न च श्रोत्र जिव्हे न च घ्राण नेत्रे |
न च व्योम भूमि न तेजो न वायु:, चिदानंद रूपः शिवोहम शिवोहम ||
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायुः, न वा सप्तधातु: न वा पञ्चकोशः |
न वाक्पाणिपादौ न च उपस्थ पायु, चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||
न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ, मदों नैव मे नैव मात्सर्यभावः |
न धर्मो नचार्थो न कामो न मोक्षः, चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं, न मंत्रो न तीर्थं न वेदों न यज्ञः |
अहम् भोजनं नैव भोज्यम न भोक्ता, चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेद:, पिता नैव मे नैव माता न जन्म |
न बंधू: न मित्रं गुरु: नैव शिष्यं, चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||
अहम् निर्विकल्पो निराकार रूपो, विभुव्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम |
सदा मे समत्वं न मुक्ति: न बंध:, चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||"
(इति श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य विरचितं निर्वाण-षटकम सम्पूर्णं).
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कृपा शंकर
झुञ्झुणु (राजस्थान)
२० जनवरी २०२०
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इस संसार में मैं अकेला हूँ| मेरे साथ मेरे सिवाय अन्य कोई नहीं है| मैं सदा से ही बार-बार इस संसार से दूर जाने का प्रयास करता हूँ पर भगवान फिर से खींच कर यहाँ बापस इस संसार में ले आते हैं| एक क्षण के लिए भी यहाँ रहने की मेरी कोई इच्छा नहीं है, पर ईश्वर की इच्छा के आगे विवश हूँ| अब सोचना ही छोड़ दिया है, जैसी ईश्वर की इच्छा! जो उनकी इच्छा है वह ही सर्वोपरी है| वे कुछ सिखाना चाहते हैं अतः इस जीवन को वे ही जी रहे हैं| न तो मैं हूँ और न ही मेरा कुछ है| मेरी कोई स्वतंत्र इच्छा भी नहीं होनी चाहिए| स्वतंत्र इच्छाओं का होना ही मेरी सारी पीड़ाओं का कारण है| अब बचा-खुचा जो कुछ भी है वह बापस भगवान को समर्पित है| समर्पण के उन क्षणों में ही मैं ..... मैं नहीं होता, सिर्फ परमात्मा ही होते हैं|
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किसी भी अन्य व्यक्ति में मेरी कोई आस्था नहीं रही है, चाहे संसार की दृष्टि में वे कितने भी बड़े हों| जो जितना बड़ा दिखाई देता है, वास्तविकता में वह उतना ही छोटा है| पर क्या मेरे से अतिरिक्त अन्य कोई है? इसमें भी मुझे संदेह है| कोई अन्य है भी नहीं| मैं ही सभी में व्यक्त हो रहा हूँ| पूर्णता कहीं बाहर नहीं, परमात्मा में ही है, और परमात्मा स्वयं में ही है| बाहर के विश्व या अन्य व्यक्तियों में पूर्णता की खोज निराशाजनक है| किसी भी अन्य का साथ दुःखदायी है| साथ स्वयं में सिर्फ परमात्मा का ही हो| अन्य सारे साथ अंततः दुःखी ही करेंगे| मेरी साधना ही मेरा बल है और मेरा संकल्प ही मेरी शक्ति है, परमात्मा के सिवाय अन्य कोई सहारा नहीं है|
ॐ नमः शिवाय! ॐ नमः शिवाय! ॐ नमः शिवाय!
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"मनो बुद्धि अहंकार चित्तानि नाहं, न च श्रोत्र जिव्हे न च घ्राण नेत्रे |
न च व्योम भूमि न तेजो न वायु:, चिदानंद रूपः शिवोहम शिवोहम ||
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायुः, न वा सप्तधातु: न वा पञ्चकोशः |
न वाक्पाणिपादौ न च उपस्थ पायु, चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||
न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ, मदों नैव मे नैव मात्सर्यभावः |
न धर्मो नचार्थो न कामो न मोक्षः, चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं, न मंत्रो न तीर्थं न वेदों न यज्ञः |
अहम् भोजनं नैव भोज्यम न भोक्ता, चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेद:, पिता नैव मे नैव माता न जन्म |
न बंधू: न मित्रं गुरु: नैव शिष्यं, चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||
अहम् निर्विकल्पो निराकार रूपो, विभुव्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम |
सदा मे समत्वं न मुक्ति: न बंध:, चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||"
(इति श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य विरचितं निर्वाण-षटकम सम्पूर्णं).
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कृपा शंकर
झुञ्झुणु (राजस्थान)
२० जनवरी २०२०
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