Thursday, 23 January 2020

मोक्ष-सन्यास योग में पराभक्ति .....

मोक्ष-सन्यास योग में पराभक्ति .....
भक्ति का अर्थ, नारद भक्ति सूत्रों के अनुसार भगवान के प्रति परम प्रेम है| गीता में भक्ति के बारे में भगवान श्री कृष्ण ने बहुत विस्तार से प्रकाश डाला है| हिन्दी में रामचरितमानस, और संस्कृत में भागवत, भक्ति के ही ग्रंथ हैं| इन ग्रन्थों के स्वाध्याय के पश्चात भक्ति पर और कुछ लिखने को रह ही नहीं जाता| गीता के मोक्ष-सन्यास योग नाम के अठारहवें अध्याय में भी मुझे तो भगवान की पराभक्ति ही दिखाई देती है| इस अध्याय का अगली बार जब भी पाठ करें तब भक्ति के दृष्टिकोण से ही करें| कुछ बहुत ही प्यारे श्लोक हैं....
"विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः| ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः||१८:५२||
अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्| विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते||१८:५३||
ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति| समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्||१८:५४||
भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः| ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्||१८:५५||
सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः| मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम्||१८:५६||"

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