Saturday, 6 July 2019

भगवान श्रीकृष्ण परम परात्पर परमेष्ठी आत्मगुरु विश्वगुरु और साक्षात् पारब्रह्म हैं ....

भगवान श्रीकृष्ण परम परात्पर परमेष्ठी आत्मगुरु विश्वगुरु और साक्षात् पारब्रह्म हैं ....
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गुरु आदेशानुसार यह जीवात्मा परमात्मा की विराट अनंतता का ध्यान कूटस्थ में ज्योतिर्मयब्रह्म और नादश्रवण के रूप में परमशिव की ही करती है| आकाश-तत्व और प्राण-तत्व सदा चेतना में रहते हैं| सारे संशयों का निवारण गुरुकृपा से भगवद्गीता के माध्यम से ही हुआ है| पर साकार रूप में जो भी छवि परमात्मा की मेरे समक्ष आती है वह बिल्कुल जीवंत भगवान श्रीकृष्ण की ही आती है| जब जीवन में कभी निराशा आती है, तब भगवान श्रीकृष्ण के ये वचन ध्यान में आते हैं...
"क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते| क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप||२:३||"
अर्थात् "हे पार्थ, क्लीव (कायर) मत बनो| यह तुम्हारे लिये अशोभनीय है| हे परंतप, हृदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्यागकर खड़े हो जाओ||"
ये शब्द जीवन में एक नए उत्साह का संचार कर देते हैं| यही भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाओं का सार है|
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"वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूरमर्दनं| देवकी परमानंदं कृष्णं वंदे जगद्गुरुं||"
"वंशी विभूषित करान्नवनीर दाभात् , पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात् |
पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादरविंद नेत्रात् , कृष्णात परम किमपि तत्वमहंनजाने ||"
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने| प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:||"
"नमो ब्रह्मण्य देवाय गोब्राह्मण हिताय च| जगत् हिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः||"
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्| यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्||"
"हरे मुरारे मधुकैटभारे, गोविन्द गोपाल मुकुंद माधव |
यज्ञेश नारायण कृष्ण विष्णु, निराश्रयं मां जगदीश रक्षः ||"
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ॐ तत्सत ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय || ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ जुलाई २०१९

2 comments:

  1. जब साधना-पथ पर अपनी भाव-भूमि पर हम पायें कि परमात्मा तो बिल्कुल हमारे ही समक्ष हैं, तो इस से बड़ा आनंद और क्या हो सकता है? प्रकृति भी वे ही हैं और पुरुष भी वे ही हैं| हम तो हैं ही नहीं, वे ही वे हैं| दोनों का मिलन ही यह सृष्टि है| हर ओर आनंद ही आनंद है|
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    "पुरुष और प्रकृति नाचे साथ साथ
    राधे गोविन्द जय राधे राधे
    राधे गोविन्द जय राधे राधे
    Spirit and Nature dancing together
    victory to the Spirit
    victory to the Nature
    राधे राधे
    राधे गोविन्द जय राधे राधे
    राधे गोविन्द जय राधे राधे
    राधे राधे"

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  2. अपने आत्मस्वरूप में स्थित हो जाना ही संसार-सागर को पार करना है.

    श्रीकृष्ण मेरे इस जीवन के ध्रुव हैं. मैं ध्यान परमशिव का करता हूँ पर छवि श्रीकृष्ण की ही उभरती है|

    भवसागर चाहे कितना भी अंधकारमय हो, उनकी कृपा से पूरा मार्ग ज्योतिर्मय और सरल है. कहीं पर भी कोई अन्धकार नहीं है.

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