. ब्राह्मण कौन ?
ब्राह्मण वह है जो अपने स्वाभाविक कर्मों में रत है| मनुस्मृति में मनु महाराज ने ब्राह्मणों के तीन स्वाभाविक कर्म बताए हैं, वहीं गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मणों के नौ स्वाभाविक कर्म बताये हैं|
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भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च | ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||१८:४२||
अर्थात् शम? दम? तप? शौच? क्षान्ति? आर्जव? ज्ञान? विज्ञान और आस्तिक्य ये ब्राह्मण के स्वभाविक कर्म हैं||
और भी सरल शब्दों में ब्राह्मण के स्वभाविक कर्म हैं ..... मनोनियन्त्रण, इन्द्रियनियन्त्रण, शरिरादि के तप, बाहर-भीतर की सफाई, क्षमा, सीधापन यानि सरलता, शास्त्र का ज्ञान और शास्त्र पर श्रद्धा|
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मनु महाराज ने ब्राह्मण के तीन कर्म बताए हैं ....."वेदाभ्यासे शमे चैव आत्मज्ञाने च यत्नवान्"| अर्थात अन्य सारे कर्मों को छोड़कर भी वेदाभ्यास, शम और आत्मज्ञान के लिए निरंतर यत्न करता रहे|
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इनके अतिरिक्त ब्राह्मण के षटकर्म भी हैं, जो उसकी आजीविका के लिए हैं| पर यहाँ हम उन स्वभाविक कर्मों पर ही विचार कर रहे हैं जो भगवान श्रीकृष्ण ने और मनु महाराज ने कहे हैं|
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ब्राह्मण के लिए संध्या और गायत्री मन्त्र का जप भी अनिवार्य है| संधिकाल में की गयी साधना को संध्या कहते हैं| चार मुख्य संधिकाल हैं..... प्रातः, सायं, मध्याह्न और मध्यरात्रि| पर भक्तों के लिए दो साँसों के मध्य का संधिकाल सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| हर सांस के साथ आत्म-तत्व का अनुसंधान होना चाहिए| इसे हंस-गायत्री और अजपा-जप भी कहते हैं| ब्राह्मण के लिए गायत्रीमंत्र की कम से कम दस आवृतियाँ अनिवार्य हैं|
*****जो ब्राह्मण दिन में एक बार भी गायत्रीमंत्र का पाठ नहीं करता उसका ब्राह्मणत्व से उसी समय पतन हो जाता है और वह शुद्र हो जाता है|*****
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जून २०१९
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(पुनश्चः :-- यह एक संक्षिप्त लेख है जिसमें कम से कम शब्दों में अपने भावों को व्यक्त किया है)
ब्राह्मण वह है जो अपने स्वाभाविक कर्मों में रत है| मनुस्मृति में मनु महाराज ने ब्राह्मणों के तीन स्वाभाविक कर्म बताए हैं, वहीं गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मणों के नौ स्वाभाविक कर्म बताये हैं|
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भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च | ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||१८:४२||
अर्थात् शम? दम? तप? शौच? क्षान्ति? आर्जव? ज्ञान? विज्ञान और आस्तिक्य ये ब्राह्मण के स्वभाविक कर्म हैं||
और भी सरल शब्दों में ब्राह्मण के स्वभाविक कर्म हैं ..... मनोनियन्त्रण, इन्द्रियनियन्त्रण, शरिरादि के तप, बाहर-भीतर की सफाई, क्षमा, सीधापन यानि सरलता, शास्त्र का ज्ञान और शास्त्र पर श्रद्धा|
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मनु महाराज ने ब्राह्मण के तीन कर्म बताए हैं ....."वेदाभ्यासे शमे चैव आत्मज्ञाने च यत्नवान्"| अर्थात अन्य सारे कर्मों को छोड़कर भी वेदाभ्यास, शम और आत्मज्ञान के लिए निरंतर यत्न करता रहे|
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इनके अतिरिक्त ब्राह्मण के षटकर्म भी हैं, जो उसकी आजीविका के लिए हैं| पर यहाँ हम उन स्वभाविक कर्मों पर ही विचार कर रहे हैं जो भगवान श्रीकृष्ण ने और मनु महाराज ने कहे हैं|
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ब्राह्मण के लिए संध्या और गायत्री मन्त्र का जप भी अनिवार्य है| संधिकाल में की गयी साधना को संध्या कहते हैं| चार मुख्य संधिकाल हैं..... प्रातः, सायं, मध्याह्न और मध्यरात्रि| पर भक्तों के लिए दो साँसों के मध्य का संधिकाल सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| हर सांस के साथ आत्म-तत्व का अनुसंधान होना चाहिए| इसे हंस-गायत्री और अजपा-जप भी कहते हैं| ब्राह्मण के लिए गायत्रीमंत्र की कम से कम दस आवृतियाँ अनिवार्य हैं|
*****जो ब्राह्मण दिन में एक बार भी गायत्रीमंत्र का पाठ नहीं करता उसका ब्राह्मणत्व से उसी समय पतन हो जाता है और वह शुद्र हो जाता है|*****
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जून २०१९
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(पुनश्चः :-- यह एक संक्षिप्त लेख है जिसमें कम से कम शब्दों में अपने भावों को व्यक्त किया है)
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