क्या दोष सिर्फ उत्तरी कोरिया का ही है ?
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हम लोग उत्तरी कोरिया के तानाशाह शासक किम जोंग उन को कितना भी बुरा बताएँ पर जापान और अमेरिका ने वहाँ जो पाप किये हैं, वे अक्षम्य हैं| मुझे सन १९८० में बीस दिनों के लिए उत्तरी कोरिया जाने का अवसर मिला था| उन दिनों रूसी भाषा का अच्छा ज्ञान होने के कारण वहाँ किसी भी तरह की भाषा की समस्या नहीं आई| वहाँ के सभी अधिकारी रूसी भाषा समझते और बोलते थे| वहाँ काफी रूसी काम करते थे जिनका व्यवहार बड़ा मित्रवत था| कुछ हमारे मित्र भी बन गये थे| जब मैं वहाँ था उसी समय कोरियाई युद्ध की तीसवीं वर्षगाँठ भी मनाई गयी थी| भारत में उन दिनों संजय गाँधी की एक दुर्घटना में मरने की खबर भी मुझे वहाँ रूसियों से ही मिली थी| संयोगवश वहाँ की सेना के एक-दो वरिष्ठ अधिकारियों से भी काफी बातचीत हुई थी जिनसे वहाँ के जीवन के बारे में काफी कुछ जानने को मिला| वहाँ का सरकारी प्रचार साहित्य भी काफी पढ़ा| सबसे अधिक जानकारी तो अपनी जिज्ञासुवृति और अध्ययन से मिली|
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वहाँ की स्थिति को समझने के लिए हमें सन १९०० ई.के बाद से द्वितीय विश्वयुद्ध, और उसके बाद के दस वर्षों के इतिहास को जानना होगा| यहाँ मैं कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक जानकारी देने का प्रयास करूँगा|
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विगत में रूस ने धीरे धीरे अपनी सीमाओं का विस्तार एशिया के विशाल निर्जन उत्तरी भाग (साइबेरिया), एशिया के सुदूर पूर्व भाग, जापान सागर में सखालिन द्वीप, उत्तरी प्रशांत में अल्युशियन द्वीप समूह से होते हुए उत्तरी अमेरिका में अलास्का तक कर लिया था| उत्तरी-पूर्वी एशिया में मंचूरिया भी रूस के आधीन था जहाँ के पोर्ट आर्थर में रूसी पूर्वी सेना का मुख्यालय था| एक रूसी जनरल उस क्षेत्र का प्रशासक हुआ करता था|
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रूस ने धीरे धीरे पूरे कोरिया पर अपना अधिकार करने का प्रयास किया जिसमें वह लगभग सफल भी हो गया था, पर जापान इस से तिलमिला उठा क्योंकि जापान का विश्व के अन्य भागों से संपर्क कोरिया के माध्यम से ही था| जापान से रहा नहीं गया और जापान ने सन १९०५ में कोरिया में अपनी सेनाएँ उतार कर रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी|
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जापानी सेना ने रूसी सेना को पराजित करते हुए पूरे कोरिया पर तो अधिकार कर ही लिया, पोर्ट आर्थर और पूरा मंचूरिया भी छीन लिया| त्शुशीमा जलडमरूमध्य के पास में हुए एक समुद्री युद्ध में जापान की नौसेना ने रूस की पूरी नौसेना को डुबो दिया जिसमें हज़ारों रूसी नौसैनिक मारे गए| यह रूस की अत्यधिक शर्मनाक पराजय थी| (इसी युद्ध में रूस की पराजय के कारण बोल्शेविक क्रांति की नींव पड़ी, और भारत में क्रांतिकारियों को अंग्रेजों का विरोध करने की प्रेरणा मिली)
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कोरिया पर जापान का ३५ वर्षीय शासन (१९१०-१९४५) कोरिया के लिए एक भयावह त्रासदी था| जापानी सैनिक अत्यधिक क्रूर थे, उन्होंने वहाँ बहुत अधिक अमानवीय अत्याचार किये जिसे कोरिया का जनमानस अभी तक नहीं भुला पाया है| जापान ने कोरिया पर सेना की निर्मम शक्ति से राज्य किया, किसी भी असहमति और विद्रोह को निर्दयता से कुचल दिया| सबसे बुरा काम तो यह किया की वहाँ की हज़ारों महिलाओं को जापानी सैनिकों की यौन दासियाँ (Sex slave) और गुलाम बनने को बाध्य किया|
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द्वितीय विश्व युद्ध में जापान में हिरोशिमा पर ६ अगस्त १९४५ को अमेरिका द्वारा अणुबम गिराए जाने के दो दिन बाद ८ अगस्त १९४५ को सोवियत रूस ने जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और रूसी सेना ने पूरी शक्ति के साथ कोरिया पर १४ अगस्त से अधिकार करना प्रारम्भ कर दिया और शीघ्र ही कोरिया के उत्तरी-पूर्वी भाग पर अधिकार कर लिया| १६ अगस्त को वोंसान पर और २४ अगस्त को प्योंगयांग पर रूस अधिकार कर चुका था|
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अमेरिका की सेना भी जो जापान के विरुद्ध युद्धरत थी, ८ सितम्बर १९४५ को वहाँ पहुँच गयी और बंदरबाँट की तरह रूस और अमेरिका ने एक संधि कर के ३८ वीं अक्षांस रेखा पर कोरिया को दो भागों .... उत्तरी और दक्षिणी - में विभाजित कर के संयुक्त रूप से उसे प्रशासित करना शुरू कर दिया| और भी अनेक महत्वपूर्ण घटनाएँ इन दिनों हुईं जिन्हें इस लेख में लिखने की आवश्यकता मैं नहीं समझता|
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कोरियाई नेताओं से रूस और अमेरिका ने वादा किया था कि पाँच वर्ष के पश्चात वे पूरे देश को उन्हें सौंप देंगे| कोरिया की जनता इस व्यवस्था के विरुद्ध थी, वे अपनी पूर्ण स्वतन्त्रता चाहते थे| कोरिया में विरोध प्रदर्शन होने लगे| इन परिस्थितियों में अमेरिकी प्रभाव वाले दक्षिणी हिस्से में १९४८ में चुनाव कराये गए और वहाँ एक अमेरिकी समर्थक सरकार का गठन हो गया|
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उत्तरी क्षेत्र में रूस और चीन के समर्थन वाली साम्यवादी सरकार बनी| उत्तरी कोरिया की सरकार ने दक्षिण कोरिया की सरकार को मान्यता नहीं दी| १९४८ में सोवियत संघ यानी रूस की सेनाएँ कोरिया से चली गईं और १९४९ में अमेरिकी सेना भी दक्षिण कोरिया से हट गयी|
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२५ जून १९५० को उत्तरी कोरिया की सरकार ने रूसी शासक स्टालिन की शह पर देश के एकीकरण के लिए दक्षिणी भाग पर आक्रमण कर दिया| यह कोरियाई युद्ध की शुरुआत थी जिसमें पराजय और हानि तो कोरिया की जनता की ही हुई|
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इस युद्ध में छः दिनों के भीतर भीतर ही दक्षिणी कोरिया लड़ाई में लगभग हार गया था, और पूरे कोरिया पर उत्तरी कोरिया के शासक किम इल सुंग का शासन पक्का ही हो गया था, पर अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से एक प्रस्ताव पारित करवा कर सहयोगी देशों की सेना के साथ दक्षिणी कोरिया की सहायता का अधिकार ले कर अपने दस लाख सैनिक युद्धभूमि में उतार दिए|
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अमेरिका ने भारत पर पूरा जोर डाला कि भारत भी अमेरिका की सहायता के लिए अपनी सेना भेजे पर भारत ने मना कर दिया| सिर्फ अपनी एक मेडिकल यूनिट घायलों की सहायतार्थ भेजी|
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अमेरिका की सेना जीतती हुई जब उत्तरी कोरिया की ओर बढने लगी तब चीन भी पूरी शक्ति के साथ इस युद्ध में कूद पड़ा और अमेरिकी सेना को पीछे हटना पड़ा| इस बीच में महाशक्तियों के बीच कई दांवपेंच खेले गए पर सन १९५३ में स्टालिन की मृत्यु से परिस्थिति बदल गयी, और २७ जुलाई को युद्ध विराम हो गया|
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भारत ने शांति स्थापित करने के बहुत प्रयास किये थे| युद्ध बंदियों की अदला बदली में सहायता के लिए भारत ने अपने छः हज़ार सैनिक भी भेजे थे| पर चीन के विरोध के कारण भारत पीछे हट गया|
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इस युद्ध में अमेरिका का सेनापति जनरल डगलस मैकार्थर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि सिर्फ स्थल सेना की सहायता से वह यह युद्ध नहीं जीत सकता अतः उसने अपने वायुयानों से भयानक बमवर्षा करानी आरम्भ कर दी| यह अमेरिका का महा भयानक अक्षम्य पाप था|
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अमेरिकी वायुसेना ने उत्तरी कोरिया पर छः लाख पैंतीस हज़ार नापाम बम गिराए जिनसे उत्तरी कोरिया के हजारों गाँव और नगर राख के ढेर में बदल गए| इस बमबारी से उत्तरी कोरिया के ५००० स्कूल, १००० हॉस्पिटल और छह लाख घर तबाह हो गए| इस बम वर्षा से उत्तरी कोरिया की २० प्रतिशत जनसंख्या मारी गयी| इसीलिए उत्तरी कोरिया अमेरिका को अपना शत्रु मानता है| इस युद्ध में अमेरिका के ३३ हज़ार से अधिक सैनिक मारे गए| इस युद्ध में न तो कोई जीता और न कोई हारा|
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इसके बाद का और वर्त्तमान का घटनाक्रम तो सब को पता है अतः मैं इस विषय पर और नहीं लिख कर इस लेख का समापन कर रहा हूँ| आजकल अमेरिका और उत्तरी कोरिया के बीच में तनाव चल रहा है, उसके कारणों का लोगों को पता नहीं है| इस में जितना दोष उत्तरी कोरिया का है उससे कई गुणा अधिक दोष अमेरिका का है| मुझे दक्षिण कोरिया जाने का भी अवसर कई बार मिला हैऔर वहाँ खूब घूमा फिरा हूँ| अमेरिकी सेना के कई सैनिको और अधिकारियों से भी बातचीत करने का अवसर मिला है| अमेरिकी लोग बहुत चतुर और देशभक्त होते हैं| उनसे बात करो तो वे घर परिवार और अन्य विषयों पर तो खूब बात करेंगे पर अपने देश के विरुद्ध किसी भी तरह की बात नहीं होने देंगे| मुझे अमेरिका भी जाने का कई बार अवसर मिला है अतः अमेरिकी मनोविज्ञान को समझता हूँ| अमेरिका भारत को अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करेगा पर भारत का ह्रदय से मित्र कभी नहीं होगा| भारत को भी ऐसा ही करना चाहिए|
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अब रही बात मंचूरिया की| वह देश अब चीन के अधिकार में है| मुझे सन १९८८ में युक्रेन के ओडेसा नगर में एक वृद्धा अति विदुषी तातार मुस्लिम महिला ने अपने घर निमंत्रित किया था| वह महिला मंचूरिया में दाँतों की डॉक्टर थी और मंचूरिया पर चीन के अधिकार के बाद १० वर्ष तक चीन में राजनीतिक बंदी थी| उसने वहाँ की परिस्थितियों के बारे मुझे विस्तार से बताया| वह एक अलग विषय है जिसका इस लेख से कोई सम्बन्ध नहीं है|
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सभी को शुभ कामनाएँ और दीपावली की राम राम |
१८ अक्टूबर २०१७
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हम लोग उत्तरी कोरिया के तानाशाह शासक किम जोंग उन को कितना भी बुरा बताएँ पर जापान और अमेरिका ने वहाँ जो पाप किये हैं, वे अक्षम्य हैं| मुझे सन १९८० में बीस दिनों के लिए उत्तरी कोरिया जाने का अवसर मिला था| उन दिनों रूसी भाषा का अच्छा ज्ञान होने के कारण वहाँ किसी भी तरह की भाषा की समस्या नहीं आई| वहाँ के सभी अधिकारी रूसी भाषा समझते और बोलते थे| वहाँ काफी रूसी काम करते थे जिनका व्यवहार बड़ा मित्रवत था| कुछ हमारे मित्र भी बन गये थे| जब मैं वहाँ था उसी समय कोरियाई युद्ध की तीसवीं वर्षगाँठ भी मनाई गयी थी| भारत में उन दिनों संजय गाँधी की एक दुर्घटना में मरने की खबर भी मुझे वहाँ रूसियों से ही मिली थी| संयोगवश वहाँ की सेना के एक-दो वरिष्ठ अधिकारियों से भी काफी बातचीत हुई थी जिनसे वहाँ के जीवन के बारे में काफी कुछ जानने को मिला| वहाँ का सरकारी प्रचार साहित्य भी काफी पढ़ा| सबसे अधिक जानकारी तो अपनी जिज्ञासुवृति और अध्ययन से मिली|
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वहाँ की स्थिति को समझने के लिए हमें सन १९०० ई.के बाद से द्वितीय विश्वयुद्ध, और उसके बाद के दस वर्षों के इतिहास को जानना होगा| यहाँ मैं कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक जानकारी देने का प्रयास करूँगा|
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विगत में रूस ने धीरे धीरे अपनी सीमाओं का विस्तार एशिया के विशाल निर्जन उत्तरी भाग (साइबेरिया), एशिया के सुदूर पूर्व भाग, जापान सागर में सखालिन द्वीप, उत्तरी प्रशांत में अल्युशियन द्वीप समूह से होते हुए उत्तरी अमेरिका में अलास्का तक कर लिया था| उत्तरी-पूर्वी एशिया में मंचूरिया भी रूस के आधीन था जहाँ के पोर्ट आर्थर में रूसी पूर्वी सेना का मुख्यालय था| एक रूसी जनरल उस क्षेत्र का प्रशासक हुआ करता था|
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रूस ने धीरे धीरे पूरे कोरिया पर अपना अधिकार करने का प्रयास किया जिसमें वह लगभग सफल भी हो गया था, पर जापान इस से तिलमिला उठा क्योंकि जापान का विश्व के अन्य भागों से संपर्क कोरिया के माध्यम से ही था| जापान से रहा नहीं गया और जापान ने सन १९०५ में कोरिया में अपनी सेनाएँ उतार कर रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी|
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जापानी सेना ने रूसी सेना को पराजित करते हुए पूरे कोरिया पर तो अधिकार कर ही लिया, पोर्ट आर्थर और पूरा मंचूरिया भी छीन लिया| त्शुशीमा जलडमरूमध्य के पास में हुए एक समुद्री युद्ध में जापान की नौसेना ने रूस की पूरी नौसेना को डुबो दिया जिसमें हज़ारों रूसी नौसैनिक मारे गए| यह रूस की अत्यधिक शर्मनाक पराजय थी| (इसी युद्ध में रूस की पराजय के कारण बोल्शेविक क्रांति की नींव पड़ी, और भारत में क्रांतिकारियों को अंग्रेजों का विरोध करने की प्रेरणा मिली)
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कोरिया पर जापान का ३५ वर्षीय शासन (१९१०-१९४५) कोरिया के लिए एक भयावह त्रासदी था| जापानी सैनिक अत्यधिक क्रूर थे, उन्होंने वहाँ बहुत अधिक अमानवीय अत्याचार किये जिसे कोरिया का जनमानस अभी तक नहीं भुला पाया है| जापान ने कोरिया पर सेना की निर्मम शक्ति से राज्य किया, किसी भी असहमति और विद्रोह को निर्दयता से कुचल दिया| सबसे बुरा काम तो यह किया की वहाँ की हज़ारों महिलाओं को जापानी सैनिकों की यौन दासियाँ (Sex slave) और गुलाम बनने को बाध्य किया|
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द्वितीय विश्व युद्ध में जापान में हिरोशिमा पर ६ अगस्त १९४५ को अमेरिका द्वारा अणुबम गिराए जाने के दो दिन बाद ८ अगस्त १९४५ को सोवियत रूस ने जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और रूसी सेना ने पूरी शक्ति के साथ कोरिया पर १४ अगस्त से अधिकार करना प्रारम्भ कर दिया और शीघ्र ही कोरिया के उत्तरी-पूर्वी भाग पर अधिकार कर लिया| १६ अगस्त को वोंसान पर और २४ अगस्त को प्योंगयांग पर रूस अधिकार कर चुका था|
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अमेरिका की सेना भी जो जापान के विरुद्ध युद्धरत थी, ८ सितम्बर १९४५ को वहाँ पहुँच गयी और बंदरबाँट की तरह रूस और अमेरिका ने एक संधि कर के ३८ वीं अक्षांस रेखा पर कोरिया को दो भागों .... उत्तरी और दक्षिणी - में विभाजित कर के संयुक्त रूप से उसे प्रशासित करना शुरू कर दिया| और भी अनेक महत्वपूर्ण घटनाएँ इन दिनों हुईं जिन्हें इस लेख में लिखने की आवश्यकता मैं नहीं समझता|
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कोरियाई नेताओं से रूस और अमेरिका ने वादा किया था कि पाँच वर्ष के पश्चात वे पूरे देश को उन्हें सौंप देंगे| कोरिया की जनता इस व्यवस्था के विरुद्ध थी, वे अपनी पूर्ण स्वतन्त्रता चाहते थे| कोरिया में विरोध प्रदर्शन होने लगे| इन परिस्थितियों में अमेरिकी प्रभाव वाले दक्षिणी हिस्से में १९४८ में चुनाव कराये गए और वहाँ एक अमेरिकी समर्थक सरकार का गठन हो गया|
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उत्तरी क्षेत्र में रूस और चीन के समर्थन वाली साम्यवादी सरकार बनी| उत्तरी कोरिया की सरकार ने दक्षिण कोरिया की सरकार को मान्यता नहीं दी| १९४८ में सोवियत संघ यानी रूस की सेनाएँ कोरिया से चली गईं और १९४९ में अमेरिकी सेना भी दक्षिण कोरिया से हट गयी|
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२५ जून १९५० को उत्तरी कोरिया की सरकार ने रूसी शासक स्टालिन की शह पर देश के एकीकरण के लिए दक्षिणी भाग पर आक्रमण कर दिया| यह कोरियाई युद्ध की शुरुआत थी जिसमें पराजय और हानि तो कोरिया की जनता की ही हुई|
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इस युद्ध में छः दिनों के भीतर भीतर ही दक्षिणी कोरिया लड़ाई में लगभग हार गया था, और पूरे कोरिया पर उत्तरी कोरिया के शासक किम इल सुंग का शासन पक्का ही हो गया था, पर अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से एक प्रस्ताव पारित करवा कर सहयोगी देशों की सेना के साथ दक्षिणी कोरिया की सहायता का अधिकार ले कर अपने दस लाख सैनिक युद्धभूमि में उतार दिए|
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अमेरिका ने भारत पर पूरा जोर डाला कि भारत भी अमेरिका की सहायता के लिए अपनी सेना भेजे पर भारत ने मना कर दिया| सिर्फ अपनी एक मेडिकल यूनिट घायलों की सहायतार्थ भेजी|
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अमेरिका की सेना जीतती हुई जब उत्तरी कोरिया की ओर बढने लगी तब चीन भी पूरी शक्ति के साथ इस युद्ध में कूद पड़ा और अमेरिकी सेना को पीछे हटना पड़ा| इस बीच में महाशक्तियों के बीच कई दांवपेंच खेले गए पर सन १९५३ में स्टालिन की मृत्यु से परिस्थिति बदल गयी, और २७ जुलाई को युद्ध विराम हो गया|
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भारत ने शांति स्थापित करने के बहुत प्रयास किये थे| युद्ध बंदियों की अदला बदली में सहायता के लिए भारत ने अपने छः हज़ार सैनिक भी भेजे थे| पर चीन के विरोध के कारण भारत पीछे हट गया|
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इस युद्ध में अमेरिका का सेनापति जनरल डगलस मैकार्थर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि सिर्फ स्थल सेना की सहायता से वह यह युद्ध नहीं जीत सकता अतः उसने अपने वायुयानों से भयानक बमवर्षा करानी आरम्भ कर दी| यह अमेरिका का महा भयानक अक्षम्य पाप था|
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अमेरिकी वायुसेना ने उत्तरी कोरिया पर छः लाख पैंतीस हज़ार नापाम बम गिराए जिनसे उत्तरी कोरिया के हजारों गाँव और नगर राख के ढेर में बदल गए| इस बमबारी से उत्तरी कोरिया के ५००० स्कूल, १००० हॉस्पिटल और छह लाख घर तबाह हो गए| इस बम वर्षा से उत्तरी कोरिया की २० प्रतिशत जनसंख्या मारी गयी| इसीलिए उत्तरी कोरिया अमेरिका को अपना शत्रु मानता है| इस युद्ध में अमेरिका के ३३ हज़ार से अधिक सैनिक मारे गए| इस युद्ध में न तो कोई जीता और न कोई हारा|
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इसके बाद का और वर्त्तमान का घटनाक्रम तो सब को पता है अतः मैं इस विषय पर और नहीं लिख कर इस लेख का समापन कर रहा हूँ| आजकल अमेरिका और उत्तरी कोरिया के बीच में तनाव चल रहा है, उसके कारणों का लोगों को पता नहीं है| इस में जितना दोष उत्तरी कोरिया का है उससे कई गुणा अधिक दोष अमेरिका का है| मुझे दक्षिण कोरिया जाने का भी अवसर कई बार मिला हैऔर वहाँ खूब घूमा फिरा हूँ| अमेरिकी सेना के कई सैनिको और अधिकारियों से भी बातचीत करने का अवसर मिला है| अमेरिकी लोग बहुत चतुर और देशभक्त होते हैं| उनसे बात करो तो वे घर परिवार और अन्य विषयों पर तो खूब बात करेंगे पर अपने देश के विरुद्ध किसी भी तरह की बात नहीं होने देंगे| मुझे अमेरिका भी जाने का कई बार अवसर मिला है अतः अमेरिकी मनोविज्ञान को समझता हूँ| अमेरिका भारत को अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करेगा पर भारत का ह्रदय से मित्र कभी नहीं होगा| भारत को भी ऐसा ही करना चाहिए|
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अब रही बात मंचूरिया की| वह देश अब चीन के अधिकार में है| मुझे सन १९८८ में युक्रेन के ओडेसा नगर में एक वृद्धा अति विदुषी तातार मुस्लिम महिला ने अपने घर निमंत्रित किया था| वह महिला मंचूरिया में दाँतों की डॉक्टर थी और मंचूरिया पर चीन के अधिकार के बाद १० वर्ष तक चीन में राजनीतिक बंदी थी| उसने वहाँ की परिस्थितियों के बारे मुझे विस्तार से बताया| वह एक अलग विषय है जिसका इस लेख से कोई सम्बन्ध नहीं है|
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सभी को शुभ कामनाएँ और दीपावली की राम राम |
१८ अक्टूबर २०१७
उत्तरी और दक्षिणी कोरिया का विभाजन अप्राकृतिक और अस्थायी है| दोनों देश फिर से एक हो जायेंगे| भारत की समाचार मीडिया यानि टीवी न्यूज़ चैनलों पर हम जो देखते हैं वह अमेरिकी प्रचार है जिसके लिए उन चैनलों को अमेरिका से पैसा मिलता है| यह कोई मजहबी विभाजन नहीं है, बल्कि महाशक्तियों रूस और अमेरिका द्वारा अपनी सुविधा के लिए थोपा गया एक कृत्रिम विभाजन है| रूस तो पीछे हट गया था पर अमेरिका ने अपनी सेना वहाँ भेजकर और कोरियाई युद्ध की शुरुआत कर इस विभाजन को पक्का कर दिया था|
ReplyDeleteमैंने एक विस्तृत लेख लिखा था जिसमें सन १९०० ई. से अब तक का सारा घटनाक्रम विस्तार से दिया था| कोरिया के दोनों भागों का भ्रमण भी मैनें किया है और वहाँ के लोगों के बारे में और परिस्थितियों के बारे में भी अवगत हूँ| वहाँ वैमनस्य और विभाजन का कारण साम्यवाद था| साम्यवाद तो अब विफल हो गया है, अतः विभाजन का कोई न्यायोचित कारण नहीं रहा है| वहाँ के लोगों के सौभाग्य से उस क्षेत्र में शान्ति स्थापित होगी, और जिस तरह से पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी एक हुए थे वैसे ही उत्तरी और दक्षिणी कोरिया भी एक हो जायेंगे|
ॐ ॐ ॐ !!