क्या महिषासुर और रावण सचमुच मर गये ? .....
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अभी कुछ दिन पूर्व ही हमने विजयदशमी यानि दशहरे का त्यौहार मनाया और स्थान स्थान पर रावण के कागजी पुतलों को जलाया था| इससे पूर्व नवरात्रों में महिषासुरमर्दिनी माँ दुर्गा की आराधना की| अब प्रश्न है कि क्या महिषासुर और रावण सचमुच में ही मर गए हैं?
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नहीं, महिषासुर और रावण दोनों ही अमर और शाश्वत हैं, जब तक सृष्टि है तब तक इनका अस्तित्व बना रहेगा, ये कभी नहीं मर सकते| ये प्रत्येक व्यक्ति के अवचेतन मन में हैं, और हर व्यक्ति को निज प्रयास से अपने अंतर में ही इनका दमन करना होगा| इनका दमन हो सकता है, नाश नहीं|
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महिषासुर हमारे भीतर का तमोगुण है जो प्रमाद, दीर्घसूत्रता आदि अवगुणों के रूप में छिपा हुआ है| हम सब के भीतर यह महिषासुर बहुत गहराई से छिपा है|
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यह रावण हमारे अवचेतन मन में लोभ, कामुकता, अहंकार आदि वासनाओं के रूप में छिपा हुआ है| हम दूसरों का धन, दूसरों के अधिकार आदि छीनना चाहते हैं, अपने अहंकार के समक्ष दूसरों को कीड़े-मकोड़ों से अधिक कुछ नहीं समझते, यह हमारे अंतर का रावण है| नशा अहंकार का हो या मदिरा का, दोनों में विशेष अंतर नहीं है, पर यह अहंकार का नशा मदिरा के नशे से हज़ार गुणा अधिक घातक है| इस नशे में हर रावण स्वयं को राम समझता है|
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हमारे ह्रदय के एकमात्र राजा राम हैं| उन्होंने ही सदा हमारी ह्रदय भूमि पर राज्य किया है, और सदा वे ही हमारे राजा रहेंगे| अन्य कोई हमारा राजा नहीं हो सकता| वे ही हमारे परम ब्रह्म हैं|
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हमारे ह्रदय की एकमात्र महारानी सीता जी हैं| वे हमारे ह्रदय की अहैतुकी परम प्रेम रूपा भक्ति हैं| वे ही हमारी गति हैं| वे ही सब भेदों को नष्ट कर हमें राम से मिला सकती हैं| अन्य किसी में ऐसा सामर्थ्य नहीं है|
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हमारी पीड़ा का एकमात्र कारण यह है कि हमारी सीता का रावण ने अपहरण कर लिया है| हम सीता को अपने मन के अरण्य में गलत स्थानों पर ढूँढ रहे हैं और रावण के प्रभाव से दोष दूसरों को दे रहे हैं, जब कि कमी हमारे प्रयास की है| यह मायावी रावण ही हमें भटका रहा है| सीता जी को पा कर ही हम रावण का नाश कर सकते हैं, और तभी राम से जुड़ सकते हैं|
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राम से एकाकार होने तक इस ह्रदय की प्रचंड अग्नि का दाह नहीं मिटेगा, और राम से पृथक होने की यह घनीभूत पीड़ा हर समय निरंतर दग्ध करती रहेगी| राम ही हमारे अस्तित्व हैं और उनसे एक हुए बिना इस भटकाव का अंत नहीं होगा| उन से जुड़कर ही हमारी वेदना का अंत होगा और तभी हम कह सकेंगे ..... "शिवोSहं शिवोSहं अहं ब्रह्मास्मि"|
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इस हिन्दू राष्ट्र में धर्म रूपी बैल पर बैठकर भगवान शिव ही विचरण करेंगे, और नवचेतना को जागृत करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी ही बजेगी| यहाँ के राजा सदा राम ही रहेंगे| सनातन हिन्दू धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा होगी व असत्य और अन्धकार की राक्षसी शक्तियों का निश्चित रूप से दमन होगा| भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान होंगी| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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अभी कुछ दिन पूर्व ही हमने विजयदशमी यानि दशहरे का त्यौहार मनाया और स्थान स्थान पर रावण के कागजी पुतलों को जलाया था| इससे पूर्व नवरात्रों में महिषासुरमर्दिनी माँ दुर्गा की आराधना की| अब प्रश्न है कि क्या महिषासुर और रावण सचमुच में ही मर गए हैं?
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नहीं, महिषासुर और रावण दोनों ही अमर और शाश्वत हैं, जब तक सृष्टि है तब तक इनका अस्तित्व बना रहेगा, ये कभी नहीं मर सकते| ये प्रत्येक व्यक्ति के अवचेतन मन में हैं, और हर व्यक्ति को निज प्रयास से अपने अंतर में ही इनका दमन करना होगा| इनका दमन हो सकता है, नाश नहीं|
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महिषासुर हमारे भीतर का तमोगुण है जो प्रमाद, दीर्घसूत्रता आदि अवगुणों के रूप में छिपा हुआ है| हम सब के भीतर यह महिषासुर बहुत गहराई से छिपा है|
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यह रावण हमारे अवचेतन मन में लोभ, कामुकता, अहंकार आदि वासनाओं के रूप में छिपा हुआ है| हम दूसरों का धन, दूसरों के अधिकार आदि छीनना चाहते हैं, अपने अहंकार के समक्ष दूसरों को कीड़े-मकोड़ों से अधिक कुछ नहीं समझते, यह हमारे अंतर का रावण है| नशा अहंकार का हो या मदिरा का, दोनों में विशेष अंतर नहीं है, पर यह अहंकार का नशा मदिरा के नशे से हज़ार गुणा अधिक घातक है| इस नशे में हर रावण स्वयं को राम समझता है|
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हमारे ह्रदय के एकमात्र राजा राम हैं| उन्होंने ही सदा हमारी ह्रदय भूमि पर राज्य किया है, और सदा वे ही हमारे राजा रहेंगे| अन्य कोई हमारा राजा नहीं हो सकता| वे ही हमारे परम ब्रह्म हैं|
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हमारे ह्रदय की एकमात्र महारानी सीता जी हैं| वे हमारे ह्रदय की अहैतुकी परम प्रेम रूपा भक्ति हैं| वे ही हमारी गति हैं| वे ही सब भेदों को नष्ट कर हमें राम से मिला सकती हैं| अन्य किसी में ऐसा सामर्थ्य नहीं है|
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हमारी पीड़ा का एकमात्र कारण यह है कि हमारी सीता का रावण ने अपहरण कर लिया है| हम सीता को अपने मन के अरण्य में गलत स्थानों पर ढूँढ रहे हैं और रावण के प्रभाव से दोष दूसरों को दे रहे हैं, जब कि कमी हमारे प्रयास की है| यह मायावी रावण ही हमें भटका रहा है| सीता जी को पा कर ही हम रावण का नाश कर सकते हैं, और तभी राम से जुड़ सकते हैं|
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राम से एकाकार होने तक इस ह्रदय की प्रचंड अग्नि का दाह नहीं मिटेगा, और राम से पृथक होने की यह घनीभूत पीड़ा हर समय निरंतर दग्ध करती रहेगी| राम ही हमारे अस्तित्व हैं और उनसे एक हुए बिना इस भटकाव का अंत नहीं होगा| उन से जुड़कर ही हमारी वेदना का अंत होगा और तभी हम कह सकेंगे ..... "शिवोSहं शिवोSहं अहं ब्रह्मास्मि"|
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इस हिन्दू राष्ट्र में धर्म रूपी बैल पर बैठकर भगवान शिव ही विचरण करेंगे, और नवचेतना को जागृत करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी ही बजेगी| यहाँ के राजा सदा राम ही रहेंगे| सनातन हिन्दू धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा होगी व असत्य और अन्धकार की राक्षसी शक्तियों का निश्चित रूप से दमन होगा| भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान होंगी| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
= कृपा शंकर =
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