भारत के सबसे दक्षिणी भौगोलिक भाग "इंदिरा पॉइंट" का प्रकाश स्तम्भ .....
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भारत का सबसे दक्षिणी भौगोलिक भाग "इंदिरा पॉइंट" और वहाँ स्थित प्रकाश स्तम्भ २६ दिसंबर २००४ तक भारत के सर्वाधिक मन मोहक स्थानों में से एक था (इसके चित्र गूगल पर देख सकते हैं)| वहाँ जाने और प्रकाश स्तम्भ पर चढ़कर चारों ओर के नयनाभिराम दृश्य देखने का सुअवसर मुझे २००१ में मिला था| भारत सरकार के Department of Light House and Light Ships के समुद्री अनुसंधान जहाज "प्रदीप" पर यात्रा कर के ग्रेट निकोबार द्वीप के बंदरगाह "कैम्बल बे" गया था| वहाँ पोर्ट ब्लेयर से यात्री जहाज भी जाते हैं| जिन स्थानों पर संरक्षित जनजातियाँ रहती हैं उन स्थानों पर जाने के लिए पर्यटकों को तो प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है, जो आराम से मिल जाती है| वहाँ वायुसेना और तटरक्षक बल के ठिकाने हैं और अति महत्वपूर्ण क्षेत्र होने के कारण बिना पूर्व अनुमति के जाना संभव नहीं है|
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"कैम्बल बे" से कुछ किलोमीटर दूर तक तो गाड़ी में जाना पड़ा और सड़क टूटी होने के कारण लगभग आधा किलोमीटर पैदल चलने के पश्चात् वहाँ पहुँच गए| वहाँ काम करने वाले कर्मचारियों से मिलकर वहाँ के प्रकाश स्तम्भ पर जो उस समय भूमि पर ही था चढ़ा और चारों ओर के नयनाभिराम दृश्य देखकर अभिभूत हो गया| उस समय चित्र लेने की अनुमति नहीं थी इसलिए कोई चित्र नहीं लिए| अब तो वहाँ के चित्र गूगल पर देख सकते हैं| बापस भी वैसे ही आना पड़ा| पैदल चलते हुए वहाँ के घने वन में कई बड़े सुन्दर और विचित्र पक्षी देखे जो पहले अन्यत्र कहीं भी नहीं देखे थे, इंडोनेशिया और मलयेशिया में भी नहीं|
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२६ दिसंबर २००४ को जब सुनामी आई थी तब प्रचंड लहरों के कारण वहाँ प्रकाश स्तम्भ के चारों ओर की भूमि कट गयी और प्रकाश स्तम्भ के चारों ओर पानी गहरा हो गया| वहाँ रहने वाले बीस परिवार और चार जीव वैज्ञानिक जो वहाँ के कछुओं पर अनुसंधान कर रहे थे, उस सुनामी में मारे गए| वहाँ धीरे धीरे सामान्य स्थिति बहाल कर दी गयी थी और वहाँ के प्रकाश प्रक्षेपण यंत्र और रडार आदि भी ठीक कर दिए गए, पर प्रकाश स्तम्भ अभी भी चार मीटर गहरे समुद्री पानी में है|
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"कैम्बल बे" बहुत सुन्दर स्थान है| वहाँ के समुद्र तट तो बहुत ही सुन्दर हैं| कोई हिंसक जीव वहाँ नहीं हैं अतः बिना किसी भय के प्रातःकाल वहाँ के समुद्री तटों पर अकेले ही घूमने का आनंद कई दिनों तक लिया| पर्यटक बहुत कम आते हैं अतः कोई भीड़ नहीं होती| तमिलनाडु और केरल से आकर बहुत लोग वहाँ बस गये हैं, कुछ पंजाबी भी हैं| सभी लोग हिंदी बोलते और समझते हैं|
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इंदिरा पॉइंट का पूर्व नाम Pygmalion Point था| वर्त्तमान नाम श्रीमती इंदिरा गाँधी के नाम पर पड़ा जो वहाँ १९ फरवरी १९८४ को पधारी थीं| प्रकाश स्तम्भ तो ३० अप्रेल १९७२ को ही चालू हो गया था|
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अगर आप एकांत प्रेमी हैं और भीड़भाड़ पसंद नहीं है तो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के कई द्वीप आपको पसंद आयेंगे| समुद्र में मूंगे की चट्टानों (Coral reefs) में डुबकी लगाने और पानी के नीचे तैरने का शौक है तो लक्षद्वीप के टापुओं में ऐसे कुछ स्थान हैं| श्रीलंका में ट्रिन्कोमाली बड़ा सुन्दर स्थान था| वहाँ अब पता नहीं कैसी स्थिति है, मैं १९८० में वहाँ सपत्नीक गया था| वहाँ भी समुद्र में मूंगे की चट्टाने हैं| एक जीवनरक्षक मार्गदर्शक गोताखोर को किराए पर साथ लेकर अपना शौक पूरा किया|
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भारत का सबसे दक्षिणी भौगोलिक भाग "इंदिरा पॉइंट" और वहाँ स्थित प्रकाश स्तम्भ २६ दिसंबर २००४ तक भारत के सर्वाधिक मन मोहक स्थानों में से एक था (इसके चित्र गूगल पर देख सकते हैं)| वहाँ जाने और प्रकाश स्तम्भ पर चढ़कर चारों ओर के नयनाभिराम दृश्य देखने का सुअवसर मुझे २००१ में मिला था| भारत सरकार के Department of Light House and Light Ships के समुद्री अनुसंधान जहाज "प्रदीप" पर यात्रा कर के ग्रेट निकोबार द्वीप के बंदरगाह "कैम्बल बे" गया था| वहाँ पोर्ट ब्लेयर से यात्री जहाज भी जाते हैं| जिन स्थानों पर संरक्षित जनजातियाँ रहती हैं उन स्थानों पर जाने के लिए पर्यटकों को तो प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है, जो आराम से मिल जाती है| वहाँ वायुसेना और तटरक्षक बल के ठिकाने हैं और अति महत्वपूर्ण क्षेत्र होने के कारण बिना पूर्व अनुमति के जाना संभव नहीं है|
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"कैम्बल बे" से कुछ किलोमीटर दूर तक तो गाड़ी में जाना पड़ा और सड़क टूटी होने के कारण लगभग आधा किलोमीटर पैदल चलने के पश्चात् वहाँ पहुँच गए| वहाँ काम करने वाले कर्मचारियों से मिलकर वहाँ के प्रकाश स्तम्भ पर जो उस समय भूमि पर ही था चढ़ा और चारों ओर के नयनाभिराम दृश्य देखकर अभिभूत हो गया| उस समय चित्र लेने की अनुमति नहीं थी इसलिए कोई चित्र नहीं लिए| अब तो वहाँ के चित्र गूगल पर देख सकते हैं| बापस भी वैसे ही आना पड़ा| पैदल चलते हुए वहाँ के घने वन में कई बड़े सुन्दर और विचित्र पक्षी देखे जो पहले अन्यत्र कहीं भी नहीं देखे थे, इंडोनेशिया और मलयेशिया में भी नहीं|
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२६ दिसंबर २००४ को जब सुनामी आई थी तब प्रचंड लहरों के कारण वहाँ प्रकाश स्तम्भ के चारों ओर की भूमि कट गयी और प्रकाश स्तम्भ के चारों ओर पानी गहरा हो गया| वहाँ रहने वाले बीस परिवार और चार जीव वैज्ञानिक जो वहाँ के कछुओं पर अनुसंधान कर रहे थे, उस सुनामी में मारे गए| वहाँ धीरे धीरे सामान्य स्थिति बहाल कर दी गयी थी और वहाँ के प्रकाश प्रक्षेपण यंत्र और रडार आदि भी ठीक कर दिए गए, पर प्रकाश स्तम्भ अभी भी चार मीटर गहरे समुद्री पानी में है|
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"कैम्बल बे" बहुत सुन्दर स्थान है| वहाँ के समुद्र तट तो बहुत ही सुन्दर हैं| कोई हिंसक जीव वहाँ नहीं हैं अतः बिना किसी भय के प्रातःकाल वहाँ के समुद्री तटों पर अकेले ही घूमने का आनंद कई दिनों तक लिया| पर्यटक बहुत कम आते हैं अतः कोई भीड़ नहीं होती| तमिलनाडु और केरल से आकर बहुत लोग वहाँ बस गये हैं, कुछ पंजाबी भी हैं| सभी लोग हिंदी बोलते और समझते हैं|
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इंदिरा पॉइंट का पूर्व नाम Pygmalion Point था| वर्त्तमान नाम श्रीमती इंदिरा गाँधी के नाम पर पड़ा जो वहाँ १९ फरवरी १९८४ को पधारी थीं| प्रकाश स्तम्भ तो ३० अप्रेल १९७२ को ही चालू हो गया था|
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अगर आप एकांत प्रेमी हैं और भीड़भाड़ पसंद नहीं है तो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के कई द्वीप आपको पसंद आयेंगे| समुद्र में मूंगे की चट्टानों (Coral reefs) में डुबकी लगाने और पानी के नीचे तैरने का शौक है तो लक्षद्वीप के टापुओं में ऐसे कुछ स्थान हैं| श्रीलंका में ट्रिन्कोमाली बड़ा सुन्दर स्थान था| वहाँ अब पता नहीं कैसी स्थिति है, मैं १९८० में वहाँ सपत्नीक गया था| वहाँ भी समुद्र में मूंगे की चट्टाने हैं| एक जीवनरक्षक मार्गदर्शक गोताखोर को किराए पर साथ लेकर अपना शौक पूरा किया|
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