कर्मफलों की प्राप्ति, पुनर्जन्म और मरणोपरांत गति -- इनमें भगवान का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। ये सब जीवात्माओं को अपने-अपने कर्मों के अनुसार प्रकृति ही प्रदान करती है। जो लोग दूसरों के साथ छल करते हैं, उन्हें प्रकृति कभी क्षमा नहीं करती। किसी को विश्वास में लेकर उसके साथ छल करना अक्षम्य पाप है।
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एक बार एक स्थान पर बहुत सारे भिखारी भीख मांग रहे थे। उन भिखारियों में से अनेक तो अपने पूर्व जन्म में बहुत बड़े बड़े सरकारी अधिकारी रह चुके थे, जिनसे दुनियाँ डरती थी। उनकी पैसे मांगने की आदत नहीं गयी तो इस जन्म में प्रकृति ने उनकी नियुक्ति यहाँ कर दी।
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भगवत्-प्राप्ति के लिए भगवान ही साधन हैं। उनकी शरणागत होकर, और उन से प्रार्थना कर के ही हम उन्हें प्राप्त कर सकते हैं।
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ सितंबर २०२३
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