मेरी आयु अनंत (Infinite) है, लेकिन अब और धैर्य नहीं है, हरिःकृपा तुरंत इसी समय फलीभूत हो ---
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संसार मुझे इस शरीर के रूप में ही जानता है, जिसका जन्म ग्रेगोरियन कलेंडर (अंग्रेज़ी तिथि) के अनुसार ३ सितंबर को हुआ था। घर-परिवार के लोग इस शरीर का जन्म-दिवस भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद अमावस्या को मनाते हैं। लेकिन वास्तव में मैं यह शरीर नहीं, एक शाश्वत आत्मा हूँ, जिसकी आयु एक ही है, और वह है -- "अनंतता"। मेरी आयु अनंत (Infinity) है।
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इस शरीर का जन्म झुंझुनू में हुआ था, उस दिन वहाँ के विश्व प्रसिद्ध श्रीराणीसती जी मंदिर का वार्षिक आराधना दिवस भी होता है। किसी से किसी भी तरह की अपेक्षा बड़ी दुःखदायी होती है। संसार में किसी से भी किसी भी तरह की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। गीता में दिए भगवान के वचनों में मेरी पूर्ण श्रद्धा है --
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"यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्॥९:२७॥
शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः।
संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि॥९:२८॥
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्॥९:२९॥
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥९:३०॥"
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अर्थात् -- हे कौन्तेय ! तुम जो कुछ कर्म करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ हवन करते हो, जो कुछ दान देते हो और जो कुछ तप करते हो, वह सब तुम मुझे अर्पण करो॥
इस प्रकार तुम शुभाशुभ फलस्वरूप कर्म-बन्धनों से मुक्त हो जाओगे; और संन्यासयोग से युक्तचित्त हुए तुम विमुक्त होकर मुझे ही प्राप्त हो जाओगे॥
मैं सम्पूर्ण प्राणियों में समान हूँ। उन प्राणियों में न तो कोई मेरा द्वेषी है और न कोई प्रिय है। परन्तु जो भक्तिपूर्वक मेरा भजन करते हैं, वे मेरे में हैं और मैं उनमें हूँ॥
यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है, वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है॥
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Whatever thou doest, whatever thou dost eat, whatever thou dost sacrifice and give, whatever austerities thou practisest, do all as an offering to Me.
So shall thy action be attended by no result, either good or bad; but through the spirit of renunciation thou shalt come to Me and be free.
I am the same to all beings. I favour none, and I hate none. But those who worship Me devotedly, they live in Me, and I in them.
Even the most sinful, if he worship Me with his whole heart, shalt be considered righteous, for he is treading the right path.
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
झुंझुनू (राजस्थान)
३ सितंबर २०२३
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