"वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥"
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गुरु पूर्णिमा पर (जो इस वर्ष सन २०२५ ई. में १० जुलाई को पड़ रही है) गुरु-रूप में मैं जगद्गुरू भगवान श्रीकृष्ण को नमन करता हूँ। उनका ध्यान स्वभाविक रूप से हर समय ऊर्ध्वस्थ, कूटस्थ सूर्यमण्डल में "पुरुषोत्तम" के रूप में होता रहता है। जो "पुरुषोत्तम" हैं वे ही "परमशिव" हैं। उन में कोई भेद नहीं है, केवल अभिव्यक्तियाँ पृथक पृथक हैं। गुरु रूप में वे दक्षिणामूर्ति शिव भी हैं।
अपना सम्पूर्ण अस्तित्व और पृथकता का बोध उन में समर्पित कर, मैं उनके साथ एक हूँ। उनमें और मुझमें कोई भेद नहीं है। सभी जन्मों में मिले सभी गुरु भी उन्हीं के रूप थे, जो मेरे साथ एक हैं। शिवोहं शिवोहं॥ अहं ब्रह्मास्मि॥ ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ जुलाई २०२५
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