(प्रश्न) : "महात्मा" की पहिचान क्या है? हम किसे "महात्मा" कह सकते हैं?
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(उत्तर) : वैसे तो जो महत् तत्व से जुड़ा है, वह महात्मा है। लेकिन इसकी क्या लौकिक पहिचान है? महात्माओं के सत्संग में सुना है, और मेरा निजी अनुभव भी है कि एक वीतराग व्यक्ति ही महात्मा हो सकता है। वीतराग का अर्थ है -- राग, द्वेष और अहंकार से मुक्त। वीतराग महात्मा ही स्थितप्रज्ञ और ब्राह्मी-चेतना में स्थित हो सकता है।
रामचरितमानस में "वीतराग" शब्द का उपयोग उन विरक्त संतों व भक्तों के लिए किया गया है जो सांसारिक इच्छाओं और आसक्तियों से दूर हैं। जो वीतराग नहीं है वह कभी महात्मा नहीं हो सकता।
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भारत में एक दिवंगत पूर्व राजनेता को महात्मा कहा जाता है, जो महात्मा कहलाने की अंशमात्र भी पात्रता नहीं रखते। उन्हें महात्मा कहना -- "महात्मा" शब्द का अपमान है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
५ जुलाई २०२५
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