ब्रह्मरंध्रे मनः दत्त्वा क्षणार्द्धमपि तिष्ठति ।
सर्वपाप विनिर्मुक्त्वा स याति परमागति ।।
गुरुदेव श्रीलाहिड़ी महाशय ने कहा है , " जो भी तुमको स्व से दूर करता हो वो पाप है और जो तुमको स्व की तरफ लाता हो वो पुण्य है " । अतः निम्न प्रवृत्तियाँ ही पाप हैं । जिसे गीता में श्रीभगवान ने कहा है जघन्य गुण वृत्ति स्थित तामस व्यक्ति नीचे जाता है ।
इससे यह भी पता चलता है, सहस्रार में ध्यान करने से तमस् और रजस् कम होते हैं तथा सत्त्व की वृद्धि होती है ।
बहुत साधन परम्पराओं में सीधा सहस्रार पर ध्यान करने को मना करते हैं । अतः गुरु परम्परा अनुसार आज्ञा प्राप्त करके सीधा सहस्रारमें भी व्यक्ति ध्यान करने का अभ्यास कर सकता है । क्रियायोग में ऐसा नहीं है, सीधा सहस्रार में ध्यान करने का उपदेश भी गुरुवर्गों ने दिया है ।
दूसरी बात ,
एक श्लोक को आधुनिक वैष्णव टिप्पणी करते हैं ।
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम हि केवलम् ।
कलौ नास्तैव नास्तैव नास्तैव गतिरन्यथा ।।
इसका साधरण अर्थ है :- "केवल एक हरि नाम ही है, कलियुग में दूसरी कोई गति नहीं "
इसका यौगिक अर्थ अलग है ।
साधना में कलियुग अर्थात् वह अवस्था जब साधक की चेतना नीचे के चक्रों में निम्न प्रवृतियों में रहती है ।
हरि है श्वास, हरिनाम है श्वास के साथ मन्त्र या इसके प्राकृतिक प्रवाह पर ध्यान (जो बिना जप की हंस की ध्वनि करती है) ।
इसीके उपर लक्ष्य रखना हरि नाम का जप है । गुरुदेव स्वामी श्रीयुक्तेश्वर जी भी साधना में हरि मन्त्र देते हैं , दूसरे पन्थ वाले हरि को ग्रहण नहीं करते हैं, इसलिए ह रि को बदल कर अ एवं इ करदिया ।
इसीसे केवल अवस्था की प्राप्ति होती है । व्यक्ति की चेतना कलि अर्थात् निम्न प्रवृत्तियों से उपर उठती है ।
श्रीलाहिड़ी महाशय भी बार बार कहते थे ।
"हरदम लगे रहो रे भाई,
बनत बनत बनजाई"
इसी को अन्य समय में कहते थे
""हरि से लगे रहो रे भाई,
बनत बनत बनजाई"
दम अर्थ भी श्वास होता है । जैसे कहते हैं " हस हस कर वेदम हो गया " अर्थात्, इतना हँसा की सांसें रुक सी गयी।
हर समय श्वास/ प्राण के उपर लक्ष्य होना चाहिए , या क्षमता अनुसार चेष्टा होनी चाहिए ।
श्वासक्रिया सहजता से होती है , हमारी कोई चेष्टा नहीं होती । अतः यह गीतोक्त सहजकर्म है , जिसे श्रीभगवान कहते हैं कि दोषयुक्त हो भी तो त्याग न करो । सहज अर्थात् साथ साथ जन्म लिया भी है । श्वासक्रिया हमारे जन्म के साथ ही आरम्भ होती है । इस हिसाब से भी यह सहज है ।
बाकी कुछ भी अभ्यास हो अपने गुरु परम्परा अनुसार करना चाहिये ।
६ जुलाई २०२०
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