जिन खोजा तीन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ ---
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परमात्मा की भाषा "मौन" है। परमात्मा अपरिभाष्य और अचिन्त्य है। उसके बारे में जो कुछ भी कहेंगे, वह सत्य नहीं होगा। सिर्फ श्रुतियाँ ही प्रमाण हैं, बाकि सब अनुमान। परमात्मा हमेशा मौन है। यह उसका सहज स्वभाव है। उसके सारे नाम ज्ञानियों और भक्तों द्वारा दिए गए नाम हैं। मौन निर्विचार की स्थिति है। वह विचारों को सप्रयास रोकना नहीं, बल्कि साक्षीभाव से उनका अवलोकन है।
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पुनश्च: --- अब तक जो स्वाध्याय किया है वह पर्याप्त है इसी जीवन में परमात्मा के साक्षात्कार के लिए। और कुछ भी पढ़ने या सीखने की आवश्यकता मुझे नहीं है। नित्य कुछ न कुछ धूल जमती रहती है मन पर, जिसे हटाने के लिए थोड़ा-बहुत स्वाध्याय और साधना नित्य आवश्यक है। मैंने लिखा था कि हम इसी जीवन में ईश्वर को उपलब्ध हों, इसके अतिरिक्त मेरी रुचि अन्य किसी भी विषय में नहीं है। अतः अब आवश्यकता और अधिक गहरी डुबकी लगाने की है। सभी मित्रों से भी मेरा यही अनुरोध है कि निज विवेक के प्रकाश में जीवन में वे जो भी सर्वश्रेष्ठ कर सकते हैं, वह करें। मंगलमय शुभ-कामनाएँ॥
कृपा शंकर
१५ जून २०२५
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