Sunday, 15 June 2025

परमात्मा का नाम, रूप और स्वभाव क्या है? ---

 परमात्मा का नाम, रूप और स्वभाव क्या है? ---

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इस बारे में श्रुति (वेद) ही प्रमाण है। सारे नाम परमात्मा के ही हैं। सारे आकार भी उसी के हैं, इसलिए परमात्मा निराकार है। मौन को भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में एक तप बताया है --
"मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते॥१७:१६॥"
अर्थात् - मन की प्रसन्नता, सौम्यभाव, मौन आत्मसंयम और अन्त:करण की शुद्धि यह सब मानस तप कहलाता है॥
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जिन्होनें मौन को साध लिया वे ही मुनि हैं। वास्तव में परमात्मा अपरिभाष्य और अचिन्त्य है। उसके बारे में जो कुछ भी कहेंगे वह सत्य नहीं होगा। सिर्फ श्रुतियाँ (वेद) ही प्रमाण है, बाकि सब अनुमान।
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जीवन का मूल उद्देश्य है -- शिवत्व की प्राप्ति। ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’ -- शिव बनकर शिव की आराधना करो। प्रश्न है - हम शिव कैसे बनें एवं शिवत्व को कैसे प्राप्त करें? इस का उत्तर स्वयं को ही ढूँढ़ना होगा। जो मैंने पाया है, आवश्यक नहीं है कि वह आप के भी अनुकूल हो। श्रीमद्भगवद्गीता और उपनिषदों में इस विषय पर खूब चर्चा हुई है। लेकिन अनुसंधान तो स्वयं को ही करना होगा।
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एक मंत्र होता है कामना की पूर्ति करने वाला, और एक मंत्र होता है कामना को नष्ट करने वाला। दोनों में बहुत बड़ा अन्तर होता है। जब तक कोई कामना, आकांक्षा व इच्छा होती है, परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती। परमात्मा की प्राप्ति की अभीप्सा होती है, न कि आकांक्षा।
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जहाँ सभी आकांक्षाओं का स्रोत ही सूख जाये, जहाँ से व्यक्ति पूर्ण निष्काम हो जाता है, वहीं से परमात्मा की उपासना का आरंभ होता है। जैसे अंधकार और प्रकाश साथ साथ नहीं रह सकते, वैसे ही योग और भोग भी साथ-साथ नहीं हो सकते। कुछ पाने की कामना का ही नाश करना होगा। परमात्मा को उपलब्ध होने के लिए सिर्फ स्वयं का समर्पण ही होता है, न कि कुछ प्राप्ति।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ जून २०२४

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