भगवान के साथ सत्संग और उपासना ---
.
सामने भगवान श्रीकृष्ण अपनी शांभवी मुद्रा में बैठे हैं। खेचरी भी लगा रखी है। दृष्टिपथ भ्रूमध्य में, और दृष्टि अनंत कूटस्थ में। उनकी मनमोहक छवि अवर्णनीय है। देखकर रहा नहीं जा रहा है। मैं अपनी सारी चेतना के साथ कूदकर उनमें ही समाहित हो जाता हूँ।
.
अब वे निरंतर मेरे हृदय (समर्पित अन्तःकरण -- मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) में बिराजे हैं। मैं जब चलता हूँ तो वे मेरे साथ साथ चलते हैं, मैं सोता हूँ तो वे मेरे अन्तःकरण में ही सोते हैं। वे ही इन नासिकाओं से सांस ले रहे हैं, इन कानों से वे ही सुन रहे हैं, इस भौतिक हृदय में भी वे ही धडक रहे हैं।
.
आगे की कुछ बातें परम गोपनीय हैं जो हर किसी को बताई नहीं जा सकतीं।
यही मेरा भगवान के साथ सत्संग है। आप सब भी मेरे साथ एक हैं। जब तक भगवान मेरे साथ हैं, सब कुछ मेरे साथ है। जब यह शरीर छूट जाएगा, तब उन्हीं के साथ रहूँगा। इस शरीर में आने पूर्व भी उन्हीं के साथ था। इस जन्म में माँ-बाप, भाई-बहिन, सगे-संबंधी, शत्रु-मित्र आदि वे ही बन कर आए; और उन सब से मिला प्रेम उन्हीं का प्रेम था। उनका और मेरा साथ शाश्वत है। वे ही समस्त विश्व हैं, और वे ही यह "मैं" बन गये हैं। यही मेरा नित्य नियमित सत्संग है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ मई २०२४
No comments:
Post a Comment