Friday, 16 May 2025

भगवान का इतना ऋण है कि उस से कभी उऋण नहीं हो सकता, सिर्फ समर्पित ही हो सकता हूँ, और कुछ भी मेरे बस में नहीं है.

 भगवान का इतना ऋण है कि उस से कभी उऋण नहीं हो सकता, सिर्फ समर्पित ही हो सकता हूँ, और कुछ भी मेरे बस में नहीं है.

भगवान की इस से बड़ी कृपा और क्या हो सकती है कि उन्होंने मुझे अपना उपकरण बनाया. वे ही मेरे माध्यम से स्वयं को व्यक्त कर रहे हैं. इस ह्रदय में वे ही धड़क रहे हैं, इन फेफड़ों से वे ही साँसे ले रहे हैं, इन आँखों से वे ही देख रहे हैं, कानों से वे ही सुन रहे हैं, इन पैरों से वे ही चल रहे है, और इन हाथों से महाबाहू वे ही सारा कार्य कर रहे हैं. वास्तव में मैं तो हूँ ही नहीं, यह पृथकता का बोध एक मिथ्या आवरण है. सारा अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त अहंकार) व सम्पूर्ण अस्तित्व वे ही हैं. उनकी पूर्णता का बोध सदा बना रहे. ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ मई २०१९

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