लोहड़ी के त्योहार की अग्रिम शुभ कामनायें .....
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एक मध्यकालीन महान राजपूत हुतात्मा धर्मरक्षक महावीर दुल्ला भट्टी (मृत्यु: १५९९) की स्मृति में पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश में मनाए जाने वाला लोहड़ी का त्योहार हर वर्ष १३ जनवरी को मनाया जाता है| अब क्रमशः होने वाले खगोलीय परिवर्तनों के कारण १४ जनवरी को मनाया जायेगा| मकर संक्रांति भी १४ जनवरी के स्थान पर १५ जनवरी को पड़ेगी| पंजाब में जो वीर योद्धा दुल्ला भट्टी के नाम से प्रसिद्ध था, राजपूताने में वह दूलिया भाटी के नाम से विख्यात था| राजस्थान में भी नौटंकी के लोक कलाकार दूलिया का नाटक खुले मैदान में दिखाते थे| लगभग ६० वर्ष पूर्व झुञ्झुणु में देखे गए लोकनायक दूलिया के नाटक की एक स्मृति मुझे भी है|
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पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है| रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं और रेवड़ी, मूंगफली आदि खाते हैं| गीत भी गाये जाते हैं और महिलाएं नृत्य भी करती हैं|
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मुगल बादशाहों के काल में विशेषकर अकबर बादशाह के काल में हिन्दू कन्याओं का अपहरण बहुत अधिक होने लगा था| विवाहों के अवसर पर जब सभी सगे-संबंधी एकत्र होते थे, मुगल सैनिक हमला कर के सभी पुरूषों को मार देते और महिलाओं का अपहरण कर के ले जाते| हिन्दू बहुत अधिक आतंकित थे| तभी से हिंदुओं में बाल-विवाह और रात्री-विवाह की प्रथा पड़ी| तभी से छोटे बच्चों का विवाह रात के अंधेरे में चुपचाप कर दिया जाने लगा|
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दुल्ला भट्टी एक राजपूत थे जिन्हें बलात् मुसलमान बना दिया गया था| पर हिंदुओं की गरीबी और दुःख-दर्द उन से सहन नहीं हुआ और वे विद्रोही बन बैठे| दुल्ला भट्टी बादशाह अकबर के शासनकाल के दौरान पंजाब में रहते थे| उन्होंने एक छापामार विद्रोहियों की सेना बनाकर मुगल अमीरों और जमीदारों से धन लूटकर गरीबो में बाँटने के अलावा, जबरन रूप से बेचीं जा रही हजारों हिंदू लड़कियों को मुक्त करवाया| साथ ही उन्होंने हिंदू परम्पराओं के अनुसार उन सभी हिन्दू लड़कियों का विवाह हिंदू लड़कों से करवाने की व्यवस्था की, और उन्हें दहेज भी प्रदान किया| इस कारण वह पंजाब के हिंदुओं में एक लोक-नायक बन गए| धीरे-धीरे दुला भट्टी के प्रशंसकों और चाहने वालों की संख्या बढऩे लगी| सताये हुए निर्धन हिन्दू अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसके पास जाते और अपना दुखड़ा रोते| उनके दुखों को सुनकर दुला भट्टी उठ खड़ा होता और जैसे भी संभव होता उनकी समस्याओं का समाधान करता|
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एक धर्मांतरित मुसलमान होकर भी हिंदुओं की सेवा करने के कारण दुला भट्टी से अकबर बादशाह बहुत अधिक नाराज हुआ| उस ने दुला भट्टी को एक डाकू घोषित कर दिया और देखते ही उसकी हत्या का आदेश भी जारी कर दिया| अकबर बादशाह के सिपाही कभी भी दुला भट्टी को जीवित नहीं पकड़ सके क्योंकि उसका भी सूचनातंत्र बहुत ही गहरा और व्यापक था| वह मुगलों को लूटता और उस धन से निर्धन हिंदुओं की पुत्रियों का विवाह बड़े धूमधाम से करता| कहीं-कहीं वह यदि व्यक्तिगत रूप से किसी विवाह समारोह में उपस्थित ना हो पाता था तो वहाँ अपनी ओर से धन भेजकर सारी व्यवस्था अपने लोगों के माध्यम से करा देता| दुला भट्टी के लोग पंजाब, जम्मू कश्मीर आज के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, हरियाणा, राजस्थान और पाकिस्तान के भी बहुत बड़े भूभाग पर सक्रिय हो गये थे| इतने बड़े भूभाग में अकबर ने कई बार भट्टी को मारने का अभियान चलाया, परंतु उसे कभी सफलता नहीं मिली|
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एक बार एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पुत्री के विवाह में सहायता प्राप्त करने हेतु दुला भट्टी के पास गया| उस गरीब ब्राह्मण की दरिद्रता को देखकर दुला भट्टी बहुत अधिक दु:खी हुआ| उस गरीब कन्या के कोई भाई नहीं था इस लिए दुला भट्टी ने उसे अपनी धर्मबहिन बना लिया और स्वयं उपस्थित रहकर विवाह करवाने का वचन भी दे दिया| यह समाचार अपने गुप्तचरों से अकबर को मिल गया| उसने उस गाँव के आसपास अपने गुप्तचर इस आदेश के साथ नियुक्त कर दिये कि देखते ही बिना किसी चेतावनी के दुला भट्टी की हत्या कर दी जाये|
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विवाह कार्यक्रम में दुला भट्टी दहेज का सारा सामान लेकर स्वयं उपस्थित हुआ| विवाह के बाद जब डोली विदा हो रही थी तब अकबर के छद्म सैनिकों को पता चल गया और उन्होने उस पर बिना किसी चेतावनी के आक्रमण कर दिया| उसे संभलने का अवसर भी नहीं मिला और वह महान धर्मरक्षक महावीर मारा गया| जिस दिन उस की हत्या हुई वह दिन मकर संक्रांति से पहले वाला दिन था|
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दुला भट्टी के रोम-रोम में अपने देशवासियों के प्रति प्रेम भरा था, वह उनकी व्यथाओं से व्यथित था और उनका उद्घार चाहता था| अपने इसी आदर्श के लिये अपनी समकालीन मुगल सत्ता के सबसे बड़े बादशाह अकबर से टक्कर ली| वह जब तक जीवित रहा तब तक अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करता रहा| वह परम राष्ट्रभक्त था| दुला भट्टी की स्मृति में पंजाब, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, हरियाणा राजस्थान और पाकिस्तान में (अकबर का साम्राज्य की लगभग इतने ही क्षेत्र पर था) लोहिड़ी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व मनाया जाता है| वह महावीर दुल्ला भट्टी अमर है और अमर रहेगा| भारत माता की जय|
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०२०
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एक मध्यकालीन महान राजपूत हुतात्मा धर्मरक्षक महावीर दुल्ला भट्टी (मृत्यु: १५९९) की स्मृति में पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश में मनाए जाने वाला लोहड़ी का त्योहार हर वर्ष १३ जनवरी को मनाया जाता है| अब क्रमशः होने वाले खगोलीय परिवर्तनों के कारण १४ जनवरी को मनाया जायेगा| मकर संक्रांति भी १४ जनवरी के स्थान पर १५ जनवरी को पड़ेगी| पंजाब में जो वीर योद्धा दुल्ला भट्टी के नाम से प्रसिद्ध था, राजपूताने में वह दूलिया भाटी के नाम से विख्यात था| राजस्थान में भी नौटंकी के लोक कलाकार दूलिया का नाटक खुले मैदान में दिखाते थे| लगभग ६० वर्ष पूर्व झुञ्झुणु में देखे गए लोकनायक दूलिया के नाटक की एक स्मृति मुझे भी है|
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पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है| रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं और रेवड़ी, मूंगफली आदि खाते हैं| गीत भी गाये जाते हैं और महिलाएं नृत्य भी करती हैं|
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मुगल बादशाहों के काल में विशेषकर अकबर बादशाह के काल में हिन्दू कन्याओं का अपहरण बहुत अधिक होने लगा था| विवाहों के अवसर पर जब सभी सगे-संबंधी एकत्र होते थे, मुगल सैनिक हमला कर के सभी पुरूषों को मार देते और महिलाओं का अपहरण कर के ले जाते| हिन्दू बहुत अधिक आतंकित थे| तभी से हिंदुओं में बाल-विवाह और रात्री-विवाह की प्रथा पड़ी| तभी से छोटे बच्चों का विवाह रात के अंधेरे में चुपचाप कर दिया जाने लगा|
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दुल्ला भट्टी एक राजपूत थे जिन्हें बलात् मुसलमान बना दिया गया था| पर हिंदुओं की गरीबी और दुःख-दर्द उन से सहन नहीं हुआ और वे विद्रोही बन बैठे| दुल्ला भट्टी बादशाह अकबर के शासनकाल के दौरान पंजाब में रहते थे| उन्होंने एक छापामार विद्रोहियों की सेना बनाकर मुगल अमीरों और जमीदारों से धन लूटकर गरीबो में बाँटने के अलावा, जबरन रूप से बेचीं जा रही हजारों हिंदू लड़कियों को मुक्त करवाया| साथ ही उन्होंने हिंदू परम्पराओं के अनुसार उन सभी हिन्दू लड़कियों का विवाह हिंदू लड़कों से करवाने की व्यवस्था की, और उन्हें दहेज भी प्रदान किया| इस कारण वह पंजाब के हिंदुओं में एक लोक-नायक बन गए| धीरे-धीरे दुला भट्टी के प्रशंसकों और चाहने वालों की संख्या बढऩे लगी| सताये हुए निर्धन हिन्दू अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसके पास जाते और अपना दुखड़ा रोते| उनके दुखों को सुनकर दुला भट्टी उठ खड़ा होता और जैसे भी संभव होता उनकी समस्याओं का समाधान करता|
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एक धर्मांतरित मुसलमान होकर भी हिंदुओं की सेवा करने के कारण दुला भट्टी से अकबर बादशाह बहुत अधिक नाराज हुआ| उस ने दुला भट्टी को एक डाकू घोषित कर दिया और देखते ही उसकी हत्या का आदेश भी जारी कर दिया| अकबर बादशाह के सिपाही कभी भी दुला भट्टी को जीवित नहीं पकड़ सके क्योंकि उसका भी सूचनातंत्र बहुत ही गहरा और व्यापक था| वह मुगलों को लूटता और उस धन से निर्धन हिंदुओं की पुत्रियों का विवाह बड़े धूमधाम से करता| कहीं-कहीं वह यदि व्यक्तिगत रूप से किसी विवाह समारोह में उपस्थित ना हो पाता था तो वहाँ अपनी ओर से धन भेजकर सारी व्यवस्था अपने लोगों के माध्यम से करा देता| दुला भट्टी के लोग पंजाब, जम्मू कश्मीर आज के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, हरियाणा, राजस्थान और पाकिस्तान के भी बहुत बड़े भूभाग पर सक्रिय हो गये थे| इतने बड़े भूभाग में अकबर ने कई बार भट्टी को मारने का अभियान चलाया, परंतु उसे कभी सफलता नहीं मिली|
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एक बार एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पुत्री के विवाह में सहायता प्राप्त करने हेतु दुला भट्टी के पास गया| उस गरीब ब्राह्मण की दरिद्रता को देखकर दुला भट्टी बहुत अधिक दु:खी हुआ| उस गरीब कन्या के कोई भाई नहीं था इस लिए दुला भट्टी ने उसे अपनी धर्मबहिन बना लिया और स्वयं उपस्थित रहकर विवाह करवाने का वचन भी दे दिया| यह समाचार अपने गुप्तचरों से अकबर को मिल गया| उसने उस गाँव के आसपास अपने गुप्तचर इस आदेश के साथ नियुक्त कर दिये कि देखते ही बिना किसी चेतावनी के दुला भट्टी की हत्या कर दी जाये|
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विवाह कार्यक्रम में दुला भट्टी दहेज का सारा सामान लेकर स्वयं उपस्थित हुआ| विवाह के बाद जब डोली विदा हो रही थी तब अकबर के छद्म सैनिकों को पता चल गया और उन्होने उस पर बिना किसी चेतावनी के आक्रमण कर दिया| उसे संभलने का अवसर भी नहीं मिला और वह महान धर्मरक्षक महावीर मारा गया| जिस दिन उस की हत्या हुई वह दिन मकर संक्रांति से पहले वाला दिन था|
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दुला भट्टी के रोम-रोम में अपने देशवासियों के प्रति प्रेम भरा था, वह उनकी व्यथाओं से व्यथित था और उनका उद्घार चाहता था| अपने इसी आदर्श के लिये अपनी समकालीन मुगल सत्ता के सबसे बड़े बादशाह अकबर से टक्कर ली| वह जब तक जीवित रहा तब तक अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करता रहा| वह परम राष्ट्रभक्त था| दुला भट्टी की स्मृति में पंजाब, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, हरियाणा राजस्थान और पाकिस्तान में (अकबर का साम्राज्य की लगभग इतने ही क्षेत्र पर था) लोहिड़ी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व मनाया जाता है| वह महावीर दुल्ला भट्टी अमर है और अमर रहेगा| भारत माता की जय|
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०२०
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