अग्नि स्नान :-----
जो भगवान शिव की उपासना करते हैं उन्हें गले में रुद्राक्ष की माला, रुद्राक्ष की जपमाला, माथे पर भस्म से त्रिपुण्ड, और गुरु-परंपरानुसार देह के विभिन्न अंगों पर भस्म लगानी चाहिए| इनके बिना शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती| भस्म सिर्फ देसी गाय के शुद्ध गोबर से ही बनती है| इसकी विधि यह है कि देसी गाय जब गोबर करे तब भूमि पर गिरने से पहिले ही उसे शुद्ध पात्र या बांस की टोकरी में एकत्र कर लें और स्वच्छ शुद्ध भूमि पर या बाँस की चटाई पर थाप कर कंडा (छाणा) बना कर सुखा दें| सूख जाने पर उन कंडों को आड़े-टेढ़े इस तरह रखें कि उनके नीचे शुद्ध देसी घी का एक दीपक जलाया जा सके| उस दीपक की लौ से ही वे कंडे पूरी तरह जल जाने चाहियें| जब कंडे पूरी तरह जल जाएँ तब उन्हें एक साफ़ थैले में रखकर अच्छी तरह कूट कर साफ़ मलमल के कपडे में छान लें| कपड़छान हुई भस्म को किसी पात्र में इस तरह रख लें कि उसे सीलन नहीं लगे| पूजा के लिए भस्म तैयार है|
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देह पर भस्म-लेपन अग्नि स्नान कहलाता है| यामल तंत्र के अनुसार सात प्रकार के स्नानों में अग्नि-स्नान सर्वश्रेष्ठ है| भस्म देह की गन्दगी को दूर करता है| भगवान शिव ने अपने लिए आग्नेय स्नान को चुन रखा है| शैव दर्शन के तन्त्र ग्रंथों में इस विषय पर एक बड़ा विलक्षण बर्णन है जो ज्ञान की पराकाष्ठा है| 'भ'कार शब्द की व्याख्या भगवान शिव पार्वती जी को करते हैं .....
"भकारम् श्रुणु चार्वंगी स्वयं परमकुंडली| महामोक्षप्रदं वर्ण तरुणादित्य संप्रभं||
त्रिशक्तिसहितं वर्ण विविन्दुं सहितं प्रिये| आत्मादि तत्त्वसंयुक्तं भकारं प्रणमाम्यह्म्||"
जो भगवान शिव की उपासना करते हैं उन्हें गले में रुद्राक्ष की माला, रुद्राक्ष की जपमाला, माथे पर भस्म से त्रिपुण्ड, और गुरु-परंपरानुसार देह के विभिन्न अंगों पर भस्म लगानी चाहिए| इनके बिना शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती| भस्म सिर्फ देसी गाय के शुद्ध गोबर से ही बनती है| इसकी विधि यह है कि देसी गाय जब गोबर करे तब भूमि पर गिरने से पहिले ही उसे शुद्ध पात्र या बांस की टोकरी में एकत्र कर लें और स्वच्छ शुद्ध भूमि पर या बाँस की चटाई पर थाप कर कंडा (छाणा) बना कर सुखा दें| सूख जाने पर उन कंडों को आड़े-टेढ़े इस तरह रखें कि उनके नीचे शुद्ध देसी घी का एक दीपक जलाया जा सके| उस दीपक की लौ से ही वे कंडे पूरी तरह जल जाने चाहियें| जब कंडे पूरी तरह जल जाएँ तब उन्हें एक साफ़ थैले में रखकर अच्छी तरह कूट कर साफ़ मलमल के कपडे में छान लें| कपड़छान हुई भस्म को किसी पात्र में इस तरह रख लें कि उसे सीलन नहीं लगे| पूजा के लिए भस्म तैयार है|
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देह पर भस्म-लेपन अग्नि स्नान कहलाता है| यामल तंत्र के अनुसार सात प्रकार के स्नानों में अग्नि-स्नान सर्वश्रेष्ठ है| भस्म देह की गन्दगी को दूर करता है| भगवान शिव ने अपने लिए आग्नेय स्नान को चुन रखा है| शैव दर्शन के तन्त्र ग्रंथों में इस विषय पर एक बड़ा विलक्षण बर्णन है जो ज्ञान की पराकाष्ठा है| 'भ'कार शब्द की व्याख्या भगवान शिव पार्वती जी को करते हैं .....
"भकारम् श्रुणु चार्वंगी स्वयं परमकुंडली| महामोक्षप्रदं वर्ण तरुणादित्य संप्रभं||
त्रिशक्तिसहितं वर्ण विविन्दुं सहितं प्रिये| आत्मादि तत्त्वसंयुक्तं भकारं प्रणमाम्यह्म्||"
महादेवी को संबोधित करते हुए महादेव कहते हैं कि हे (चारू+अंगी) सुन्दर देह धारिणी, 'भ'कार 'परमकुंडली' है| यह महामोक्षदायी है जो सूर्य की तरह तेजोद्दीप्त है| इसमें तीनों देवों की शक्तियां निहित हैं|
जब कुण्डलिनी महाशक्ति जागृत होकर गुरुकृपा से आज्ञाचक्र को भेद कर सीधे सहस्त्रार में प्रवेश करती है तब वह मार्ग उत्तरा सुषुम्ना कहलाता है| उत्तरा सुषुम्ना के मार्ग में यह "परमकुंडली" कहलाती है| महादेव 'भ'कार द्वारा उस महामोक्षदायी परमकुण्डली की ओर संकेत करते हुए ज्ञानी साधकों की दृष्टि आकर्षित करते हुए उन्हें कुंडली जागृत कर के उत्तरा सुषुम्ना की ओर बढने की प्रेरणा देते हैं कि वे शिवमय हो जाएँ| इसलिए प्रयासपूर्वक अपनी चेतना को हर समय उत्तरा सुषुम्ना में रखना चाहिए|
शिवमस्तु ! ॐ स्वस्ति ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
जब कुण्डलिनी महाशक्ति जागृत होकर गुरुकृपा से आज्ञाचक्र को भेद कर सीधे सहस्त्रार में प्रवेश करती है तब वह मार्ग उत्तरा सुषुम्ना कहलाता है| उत्तरा सुषुम्ना के मार्ग में यह "परमकुंडली" कहलाती है| महादेव 'भ'कार द्वारा उस महामोक्षदायी परमकुण्डली की ओर संकेत करते हुए ज्ञानी साधकों की दृष्टि आकर्षित करते हुए उन्हें कुंडली जागृत कर के उत्तरा सुषुम्ना की ओर बढने की प्रेरणा देते हैं कि वे शिवमय हो जाएँ| इसलिए प्रयासपूर्वक अपनी चेतना को हर समय उत्तरा सुषुम्ना में रखना चाहिए|
शिवमस्तु ! ॐ स्वस्ति ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
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