हम इसी क्षण से यह सोचना छोड़ दें कि कौन हमारे बारे में क्या सोच रहा है| ध्यान सिर्फ इसी बात का सदा रहे कि स्वयं जगन्माता यानी माँ भगवती हमारे बारे में क्या सोचेंगी| भगवान माता भी है और पिता भी| माँ का रूप अधिक ममता और प्रेममय होता है| भगवान के मातृरूप पर ध्यान अधिक फलदायी होता है| जितना अधिक हम भगवान का ध्यान करते हैं, उतना ही अधिक हम स्वयं का ही नहीं, पूरी समष्टि का उपकार करते हैं| यही सबसे बड़ी सेवा है जो हम कर सकते हैं| जब हम परमात्मा की चेतना में होते हैं तब हमारे से हर कार्य शुभ ही शुभ होता है| जिस के हृदय में परमात्मा के प्रति कूट कूट कर प्रेम भरा पड़ा है वह संसार में सबसे अधिक सुन्दर व्यक्ति है, चाहे उस की भौतिक शक्ल-सूरत कैसी भी हो|
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भगवान से हमें उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं माँगना चाहिए| प्रेम ही मिल गया तो सब कुछ मिल गया|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जनवरी २०२०
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भगवान से हमें उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं माँगना चाहिए| प्रेम ही मिल गया तो सब कुछ मिल गया|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जनवरी २०२०
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