परमात्मा में निरंतर रमण ही सद् आचरण यानि सदाचार है .....
.
आध्यात्म में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं ..... सद् आचरण में तत्परता| रण का आध्यात्मिक अर्थ है ... जिसमें हमारी आत्मा रमण कर सके उसका निज जीवन में आविर्भाव यानि निरंतर आगमन| हम शाश्वत आत्मा है और सिर्फ परमात्मा में ही रमण कर सकते हैं जैसे महासागर में जल की एक बूँद| हम परमात्मा में निरंतर रमण करते रहें ... यही सद् आचरण है जिसके लिए हमें सदा तत्पर रहना चाहिए| जो परमात्मा में निरंतर रमण करते हैं उन्हें किसी उपदेश की आवश्यकता नहीं है| उनके मुँह से जो निकल जाता है वही उपदेश है|
.
हम परमात्मा में निरंतर रमण करते रहें, इसके लिए ... (१) हमारे जीवन में कुटिलता नहीं हो| (२) हम सत्यवादी हों| (३) सबके प्रति प्रेम हमारे ह्रदय में हो| (४) हमारे विचार और संकल्प सदा शुभ हों
.
आध्यात्म में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं ..... सद् आचरण में तत्परता| रण का आध्यात्मिक अर्थ है ... जिसमें हमारी आत्मा रमण कर सके उसका निज जीवन में आविर्भाव यानि निरंतर आगमन| हम शाश्वत आत्मा है और सिर्फ परमात्मा में ही रमण कर सकते हैं जैसे महासागर में जल की एक बूँद| हम परमात्मा में निरंतर रमण करते रहें ... यही सद् आचरण है जिसके लिए हमें सदा तत्पर रहना चाहिए| जो परमात्मा में निरंतर रमण करते हैं उन्हें किसी उपदेश की आवश्यकता नहीं है| उनके मुँह से जो निकल जाता है वही उपदेश है|
.
हम परमात्मा में निरंतर रमण करते रहें, इसके लिए ... (१) हमारे जीवन में कुटिलता नहीं हो| (२) हम सत्यवादी हों| (३) सबके प्रति प्रेम हमारे ह्रदय में हो| (४) हमारे विचार और संकल्प सदा शुभ हों
ब्रह्मा जी ने ब्रह्मज्ञान सर्वप्रथम अपने ज्येष्ठ पुत्र अथर्व को दिया| ब्रह्मा जी का ज्येष्ठ पुत्र कौन हो सकता है? थर्व का अर्थ है कुटिलता| जिनके जीवन में कोई कुटिलता नहीं है वे अथर्व यानि ब्रह्मा जी के ज्येष्ठ पुत्र, और ब्रह्मज्ञान के अधिकारी है|
परमात्मा सत्य है, इसीलिए हम उन्हें भगवान सत्यनारायण कहते हैं| हमारे जीवन में जितना झूठ-कपट है, उतना ही हम परमात्मा से दूर हैं| झूठ बोलने से वाणी दग्ध हो जाती है| उस दग्ध वाणी से किया हुआ कोई भी मन्त्र-जप, पूजा-पाठ और प्रार्थना प्रभावी नहीं होती| असत्यवादी कभी परमात्मा के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता| सिर्फ धर्मरक्षा और प्राणरक्षा के लिए कहा गया झूठ तो माफ़ हो सकता है, अन्यथा नहीं| झूठे व्यक्ति नर्कपथगामी हैं|
जब हमारे ह्रदय में परमात्मा के प्रति प्रेम होगा तभी हम दूसरों को प्यार और निज जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ कर सारे गुणों को स्वयं में आकर्षित कर सकते हैं|
जैसा हम सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं| हमारे विचारों और संकल्प का प्रभाव सभी पर पड़ता है, अतः अपने विचारों पर सदा दृष्टी रखनी चाहिए| कुविचार को तुरंत त्याग दें, और सुविचार पर दृढ़ रहें| दूसरों से कभी कोई अपेक्षा न रखें पर हर परिस्थिति में अपना सर्वश्रेष्ठ करें|
.
हम सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं, अतः सभी को सादर नमन|ॐ तत्सत ! ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय| ॐ ॐ ॐ||
कृपा शंकर बावलिया मुद्गल
झुंझुनूं (राजस्थान)
१३ जनवरी २०२०
.
हम सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं, अतः सभी को सादर नमन|ॐ तत्सत ! ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय| ॐ ॐ ॐ||
कृपा शंकर बावलिया मुद्गल
झुंझुनूं (राजस्थान)
१३ जनवरी २०२०
No comments:
Post a Comment