Thursday, 26 December 2019

मंदिरों में आरती के समय घंटे-घड़ियाल-टाली-शंख आदि क्यों बजाते हैं? ....

मंदिरों में आरती के समय घंटे-घड़ियाल-टाली-शंख आदि बजाना पूर्णतः एक वैज्ञानिक विधि है जो भक्ति को जागृत करती है| मैं जो लिख रहा हूँ वह अपने प्रत्यक्ष अनुभवों से लिख रहा हूँ, किसी की नकल नहीं कर रहा| जो नियमित ध्यान साधना करते हैं, और जिन्होने प्राचीन भक्ति साहित्य का अध्ययन किया है, वे मेरी बात को बहुत अच्छी तरह से समझ सकते हैं| यही बात अनेक संत-महात्मा-योगियों द्वारा लिखी गई है जिस का भक्ति साहित्य में बहुत अच्छा और स्पष्ट वर्णन है| लगभग चालीस वर्ष पूर्व मैंने भक्ति साहित्य में से ढूंढ ढूंढ कर इन्हीं बातों का एक संकलन भी किया था जो अब पता नहीं कहाँ खो गया| पर वे बातें मेरे स्मृति में हैं, जिनको मैंने अनुभूत भी किया है|
भक्ति का स्थान हमारी सूक्ष्म देह में अनाहत चक्र है| अनाहत चक्र का स्थान मेरुदंड में पीछे की ओर Shoulder Blades यानि कंधों के नीचे जो पल्लू हैं, उनके मध्य में है| ध्यान साधना में गहराई आने पर विभिन्न चक्रों में विभिन्न ध्वनियाँ सुनाई देती हैं, जैसे मूलाधार में भ्रमर गुंजन, स्वाधिष्ठान में बांसुरी, मणिपुर में वीणा, और अनाहत चक्र में घंटे-घड़ियालों-नगाड़े-टाली-शंख आदि की मिश्रित ध्वनि| इस ध्वनि पर ध्यान करने से हृदय में भक्ति जागृत होती है| इसी की नकल कर के मंदिरों में आरती के समय ये बाजे बजाने की परंपरा का आरंभ हुआ| यह ध्वनि सीधे अनाहत चक्र को आहत करती है जहाँ भक्ति का स्थान है| इनसे भक्ति जागृत होती है|
फिर सिर भी स्वतः ही झुक जाता है और हाथ जुड़कर भ्रूमध्य को स्पर्श करने लगते हैं| भ्रूमध्य से ठीक सामने पीछे की ओर Medulla (मेरुशीर्ष) में आज्ञाचक्र है जहाँ जीवात्मा का निवास है| भ्रूमध्य से अँगूठों का स्पर्श होते ही अंगुलियों में एक सूक्ष्म ऊर्जा बनती है और सामने प्रतिष्ठित देवता को निवेदित हो जाती है| हाथ जोड़कर नमस्कार करने के पीछे भी यही विज्ञान है|
इस विषय पर लिखने को बहुत कुछ है पर विषय लंबा न हो इसलिए फिर कभी लिखूंगा| आप सब को नमन !
ॐ तत्सत |
६ दिसंबर २०१९

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