बिना परमात्मा की चेतना के यह शरीर भी इस पृथ्वी पर एक भार ही है .....
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चैतन्य में सिर्फ परमात्मा हों| उनके किस रूप की उपासना करें इसका निर्णय उपासक स्वयं करे| सब रूप उन्हीं के हैं व सारी सत्ता भी उन्हीं की है| परमात्मा से कम कुछ भी स्वीकार्य नहीं हो| किसी भी तरह की निरर्थक टीका-टिप्पणी वालों से कोई मतलब न हो, और न ही आत्म-घोषित ज्ञानियों से| तरह तरह के लोग मिलते हैं, जो एक नदी-नाव का संयोग मात्र है, उससे अधिक कुछ भी नहीं| भूख-प्यास, सुख-दुःख, शीत-उष्ण, हानि-लाभ, मान-अपमान और जीवन-मरण ..... ये सब इस सृष्टि के भाग हैं जिनसे कोई नहीं बच सकता| इनसे हमें प्रभावित भी नहीं होना चाहिए| ये सब सिर्फ शरीर और मन को ही प्रभावित करते हैं| देह और मन की चेतना से ऊपर उठने के सिवा कोई अन्य विकल्प हमारे पास नहीं है| चारों ओर छाए अविद्या के साम्राज्य से हमें बचना है और सिर्फ परमात्मा के सिवाय अन्य किसी भी ओर नहीं देखना है| नित्य आध्यात्म में ही स्थित रहें, यही हमारा परम कर्तव्य है| स्वयं साक्षात् परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं, कुछ भी हमें नहीं चाहिए| यह शरीर रहे या न रहे इसका भी कोई महत्व नहीं है| बिना परमात्मा के यह शरीर भी इस पृथ्वी पर एक भार ही है|
७ दिसंबर २०१९
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चैतन्य में सिर्फ परमात्मा हों| उनके किस रूप की उपासना करें इसका निर्णय उपासक स्वयं करे| सब रूप उन्हीं के हैं व सारी सत्ता भी उन्हीं की है| परमात्मा से कम कुछ भी स्वीकार्य नहीं हो| किसी भी तरह की निरर्थक टीका-टिप्पणी वालों से कोई मतलब न हो, और न ही आत्म-घोषित ज्ञानियों से| तरह तरह के लोग मिलते हैं, जो एक नदी-नाव का संयोग मात्र है, उससे अधिक कुछ भी नहीं| भूख-प्यास, सुख-दुःख, शीत-उष्ण, हानि-लाभ, मान-अपमान और जीवन-मरण ..... ये सब इस सृष्टि के भाग हैं जिनसे कोई नहीं बच सकता| इनसे हमें प्रभावित भी नहीं होना चाहिए| ये सब सिर्फ शरीर और मन को ही प्रभावित करते हैं| देह और मन की चेतना से ऊपर उठने के सिवा कोई अन्य विकल्प हमारे पास नहीं है| चारों ओर छाए अविद्या के साम्राज्य से हमें बचना है और सिर्फ परमात्मा के सिवाय अन्य किसी भी ओर नहीं देखना है| नित्य आध्यात्म में ही स्थित रहें, यही हमारा परम कर्तव्य है| स्वयं साक्षात् परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं, कुछ भी हमें नहीं चाहिए| यह शरीर रहे या न रहे इसका भी कोई महत्व नहीं है| बिना परमात्मा के यह शरीर भी इस पृथ्वी पर एक भार ही है|
७ दिसंबर २०१९
साधु, सावधान ! (यह स्वयं के लिए लिखा है, किसी अन्य के लिए नहीं)
ReplyDeleteसमय निकलता जा रहा है, अधिक समय नहीं बचा है. दीपक का तेल समाप्त हो रहा है, उसकी लौ फड़फड़ाने लगी है. अपना समय नष्ट मत करो.
अपने कूटस्थ ब्रह्म की चेतना में रहो. इधर-उधर मत भागो. तुम्हारी गति परमशिव है, यह मायावी सृष्टि नहीं. ॐ ॐ ॐ !!