गीता जयंती पर सभी को शुभ कामनाएँ, अभिनंदन व नमन ....
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गीता की सैंकड़ों टीकाएँ हैं| हर टीकाकार ने अपने अपने दृष्टिकोण व मान्यताओं के अनुसार गीता जी की अलग अलग टीका की है| किन्हीं भी दो टीकाओं में समानता नहीं है| गीता का ज्ञान देते समय भगवान श्रीकृष्ण के मन में क्या था यह तो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ही बता सकते हैं| हम उनकी कृपा के पात्र बनें और उन्हीं की चेतना में रहें| गीता का ज्ञान हमें प्रत्यक्ष भगवान श्रीकृष्ण से ही प्राप्त हो| हम इस योग्य बनें|
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गीता पर मुझे सबसे प्रिय तो शंकर भाष्य है| फिर उसके बाद श्री श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की परंपरा में ..... भूपेन्द्रनाथ सान्याल, स्वामी प्रणवानन्द, व परमहंस स्वामी योगानन्द की लिखी टीकायें पसंद हैं| लखनऊ के रामतीर्थ प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित गीता की टीका भी बहुत ही अच्छी है| इन के अलावा भी दस-बारह विद्वानों की लिखी टीकाओं का अवलोकन किया है जो मेरे पास हैं|
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अब किसी भी टीका या भाष्य के स्वाध्याय की कोई अभिलाषा नहीं है| प्रत्यक्ष परमात्मा के साक्षात्कार की ही अभीप्सा है|
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अपना कर्ताभाव यदि हम भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित कर दें और स्वयं एक निमित्त मात्र बन कर उपासना करें तो सब कुछ समझ में आ जाएगा| यदि हम इस रथ का सारथी स्वयं भगवान पार्थसारथी को बनायेंगे तो वे स्वयं ही हमारे स्थान पर रथी बन जाएँगे, और शनैः शनैः यह रथ भी वे ही बन जाएँगे| दूसरे शब्दों में इस नौका के कर्णधार भी वे हैं, और यह नौका भी वे ही हैं| इस विमान के पायलट भी वे हैं और यह विमान भी वे ही हैं|
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ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ !
कृपा शंकर
८ दिसंबर २०१९
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गीता की सैंकड़ों टीकाएँ हैं| हर टीकाकार ने अपने अपने दृष्टिकोण व मान्यताओं के अनुसार गीता जी की अलग अलग टीका की है| किन्हीं भी दो टीकाओं में समानता नहीं है| गीता का ज्ञान देते समय भगवान श्रीकृष्ण के मन में क्या था यह तो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ही बता सकते हैं| हम उनकी कृपा के पात्र बनें और उन्हीं की चेतना में रहें| गीता का ज्ञान हमें प्रत्यक्ष भगवान श्रीकृष्ण से ही प्राप्त हो| हम इस योग्य बनें|
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गीता पर मुझे सबसे प्रिय तो शंकर भाष्य है| फिर उसके बाद श्री श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की परंपरा में ..... भूपेन्द्रनाथ सान्याल, स्वामी प्रणवानन्द, व परमहंस स्वामी योगानन्द की लिखी टीकायें पसंद हैं| लखनऊ के रामतीर्थ प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित गीता की टीका भी बहुत ही अच्छी है| इन के अलावा भी दस-बारह विद्वानों की लिखी टीकाओं का अवलोकन किया है जो मेरे पास हैं|
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अब किसी भी टीका या भाष्य के स्वाध्याय की कोई अभिलाषा नहीं है| प्रत्यक्ष परमात्मा के साक्षात्कार की ही अभीप्सा है|
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अपना कर्ताभाव यदि हम भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित कर दें और स्वयं एक निमित्त मात्र बन कर उपासना करें तो सब कुछ समझ में आ जाएगा| यदि हम इस रथ का सारथी स्वयं भगवान पार्थसारथी को बनायेंगे तो वे स्वयं ही हमारे स्थान पर रथी बन जाएँगे, और शनैः शनैः यह रथ भी वे ही बन जाएँगे| दूसरे शब्दों में इस नौका के कर्णधार भी वे हैं, और यह नौका भी वे ही हैं| इस विमान के पायलट भी वे हैं और यह विमान भी वे ही हैं|
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ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ !
कृपा शंकर
८ दिसंबर २०१९
आज गीता-जयंती है| भगवान श्रीकृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को गीता का उपदेश धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को दिया था| यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है| विश्व के किसी भी मत या संप्रदाय में किसी ग्रंथ की जयंती नहीं मनाई जाती| हिंदू संस्कृति में #गीताजयंती मनाने की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है क्योंकि अन्य ग्रंथ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं जबकि गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान के श्रीमुख से हुआ है ----- या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता|| गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है| यह किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए हैं| इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है| इसलिए इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है| इसके छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में इतना सत्य, ज्ञान व गंभीर उपदेश भरे हैं जो मनुष्य को देवता बनाने की सामर्थ्य रखते हैं|
ReplyDeleteपुनश्च :-- धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र की रणभूमि में गीता के उपदेश के समय भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों ही समाधि की एक उच्चतम अवस्था में थे, जिसमें पूरा संवाद कुछ मिनटों में ही पूरा हो गया| वेदव्यास ने इसे उसी समाधि की अवस्था में लिपिबद्ध करवाया| लिखने वाले स्वयं गणेश जी थे|