रहस्यों का रहस्य .....
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यह सारी सृष्टि परमात्मा परमशिव और पराशक्ति की कल्पना, अभिव्यक्ति और एक खेलमात्र है| सारी लीला वे ही खेल रहे हैं| हम तो उन के एक उपकरण और निमित्त मात्र हैं| जो भी दायित्व हमें परमात्मा ने दिया है वह हमें अपने पूर्ण मनोयोग से परमात्मा को ही कर्ता मानकर करना चाहिए| आधे-अधूरे मन से कोई काम न करें| हर काम पूरा मन लगाकर यथासंभव पूर्णता से करें| हमारे किसी भी कार्य में प्रमाद और दीर्घसूत्रता न हो| परमात्मा को स्वयं के माध्यम से कार्य करने दें|अपनी आध्यात्मिक साधना भी निमित्त मात्र होने के भाव से करें| भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है ....
"तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् |
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ||"
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अपने माध्यम से सारा कार्य परमात्मा को करने दें| एक अकिंचन साक्षी की तरह रहें, उस से अधिक कुछ भी नहीं| महासागर के जल की एक बूंद, जो प्रचंड विकराल लहरों की साक्षी है, महासागर से मिलकर स्वयं भी महासागर हो सकती है| नारायण नारायण नारायण !
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हर जीव की देह के भीतर एक परिक्रमा-पथ है जिस पर प्राण-तत्व के रूप में वे जगन्माता भगवती स्वयं विचरण कर रही हैं| इस प्राण-तत्व ने ही सारी सृष्टि को चैतन्य कर रखा है| जिस जीव के परिक्रमा-पथ पर प्राण-तत्व अवरुद्ध या रुक जाता है, उसी क्षण उस की देह निष्प्राण हो जाती है|
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हर जीवात्मा परमशिव का ही एक अव्यक्त रूप है, जिसे एक न एक दिन क्रमशः व्यक्त होकर परमशिव में ही मिल जाना है| यही चौरासी का चक्र है| वे परमशिव हमारे ज्योतिर्मय अनंताकाश में सर्वव्यापी सूर्यमण्डल के मध्य में देदीप्यमान हैं| हम उनके साथ नित्यमुक्त और एक हैं पर इस लीलाभूमि में उनसे बिछुड़े हुए हैं|
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"जगु पेखन तुम्ह देखनिहारे। बिधि हरि संभु नचावनिहारे।।
तेउ न जानहिं मरमु तुम्हारा। औरु तुम्हहि को जाननिहारा।।
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई।।"
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"आदि अंत कोउ जासु न पावा। मति अनुमानि निगम अस गावा।।
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
तनु बिनु परस नयन बिनु देखा। ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा।।
असि सब भाँति अलौकिक करनी। महिमा जासु जाइ नहिं बरनी।।
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धर्मस्य तत्वम् निहितं गुहायाम्, धर्म का तत्व तो निविड़ अगम्य गुहाओं में छिपा हुआ है, पर जगन्माता उसे करुणावश सुगम भी बना देती है| सुगम ही नहीं, उसे स्वयं प्रकाशित भी कर देती हैं| यह उनका अनुग्रह है| यह अनुग्रह सभी पर हो|
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यह सारी सृष्टि परमात्मा परमशिव और पराशक्ति की कल्पना, अभिव्यक्ति और एक खेलमात्र है| सारी लीला वे ही खेल रहे हैं| हम तो उन के एक उपकरण और निमित्त मात्र हैं| जो भी दायित्व हमें परमात्मा ने दिया है वह हमें अपने पूर्ण मनोयोग से परमात्मा को ही कर्ता मानकर करना चाहिए| आधे-अधूरे मन से कोई काम न करें| हर काम पूरा मन लगाकर यथासंभव पूर्णता से करें| हमारे किसी भी कार्य में प्रमाद और दीर्घसूत्रता न हो| परमात्मा को स्वयं के माध्यम से कार्य करने दें|अपनी आध्यात्मिक साधना भी निमित्त मात्र होने के भाव से करें| भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है ....
"तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् |
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ||"
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अपने माध्यम से सारा कार्य परमात्मा को करने दें| एक अकिंचन साक्षी की तरह रहें, उस से अधिक कुछ भी नहीं| महासागर के जल की एक बूंद, जो प्रचंड विकराल लहरों की साक्षी है, महासागर से मिलकर स्वयं भी महासागर हो सकती है| नारायण नारायण नारायण !
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हर जीव की देह के भीतर एक परिक्रमा-पथ है जिस पर प्राण-तत्व के रूप में वे जगन्माता भगवती स्वयं विचरण कर रही हैं| इस प्राण-तत्व ने ही सारी सृष्टि को चैतन्य कर रखा है| जिस जीव के परिक्रमा-पथ पर प्राण-तत्व अवरुद्ध या रुक जाता है, उसी क्षण उस की देह निष्प्राण हो जाती है|
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हर जीवात्मा परमशिव का ही एक अव्यक्त रूप है, जिसे एक न एक दिन क्रमशः व्यक्त होकर परमशिव में ही मिल जाना है| यही चौरासी का चक्र है| वे परमशिव हमारे ज्योतिर्मय अनंताकाश में सर्वव्यापी सूर्यमण्डल के मध्य में देदीप्यमान हैं| हम उनके साथ नित्यमुक्त और एक हैं पर इस लीलाभूमि में उनसे बिछुड़े हुए हैं|
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"जगु पेखन तुम्ह देखनिहारे। बिधि हरि संभु नचावनिहारे।।
तेउ न जानहिं मरमु तुम्हारा। औरु तुम्हहि को जाननिहारा।।
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई।।"
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"आदि अंत कोउ जासु न पावा। मति अनुमानि निगम अस गावा।।
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
तनु बिनु परस नयन बिनु देखा। ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा।।
असि सब भाँति अलौकिक करनी। महिमा जासु जाइ नहिं बरनी।।
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धर्मस्य तत्वम् निहितं गुहायाम्, धर्म का तत्व तो निविड़ अगम्य गुहाओं में छिपा हुआ है, पर जगन्माता उसे करुणावश सुगम भी बना देती है| सुगम ही नहीं, उसे स्वयं प्रकाशित भी कर देती हैं| यह उनका अनुग्रह है| यह अनुग्रह सभी पर हो|
आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं| आप सब को नमन!
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
७ दिसंबर २०१९
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
७ दिसंबर २०१९
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