निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन .....
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भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है .....
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन| निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्||२:४५||
अर्थात् हे अर्जुन, वेदों का विषय तीन गुणों से सम्बन्धित (संसार से) है तुम त्रिगुणातीत, निर्द्वन्द्व, नित्य सत्त्व (शुद्धता) में स्थित, योगक्षेम से रहित और आत्मवान् बनो|
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यह श्लोक अत्यधिक गम्भीर, माननीय और आचरणीय है| स्वनामधन्य भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर ने इस श्लोक की व्याख्या इस प्रकार की है .....
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भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है .....
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन| निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्||२:४५||
अर्थात् हे अर्जुन, वेदों का विषय तीन गुणों से सम्बन्धित (संसार से) है तुम त्रिगुणातीत, निर्द्वन्द्व, नित्य सत्त्व (शुद्धता) में स्थित, योगक्षेम से रहित और आत्मवान् बनो|
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यह श्लोक अत्यधिक गम्भीर, माननीय और आचरणीय है| स्वनामधन्य भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर ने इस श्लोक की व्याख्या इस प्रकार की है .....
जो इस प्रकार विवेक-बुद्धि से रहित हैं उन कामपरायण पुरुषों के लिए
वेद त्रैगुण्यविषयक हैं, अर्थात् तीनों गुणों के कार्य रूप संसार को ही प्रकाशित करने वाले हैं|
परंतु हे अर्जुन तू असंसारी हो, निष्कामी हो, तथा निर्द्वन्द्व हो|
सुख-दुःख के हेतु जो परस्पर विरोधी (युग्म) पदार्थ हैं, उनका नाम द्वन्द्व है, उनसे रहित हो और नित्य सत्त्वस्थ हो अर्थात् सदा सत्त्वगुणके आश्रित हो, तथा निर्योगक्षेम हो|
अप्राप्त वस्तुको प्राप्त करने का नाम योग है और प्राप्त वस्तु के रक्षण का नाम क्षेम है| योगक्षेमको प्रधान मानने वाले की कल्याणमार्ग में प्रवृत्ति होनी अत्यन्त कठिन है,
अतः तू योगक्षेम को न चाहनेवाला हो, तथा आत्मवान् हो अर्थात् (आत्मविषयों में) प्रमादरहित हो| तुझ स्वधर्मानुष्ठान में लगे हुए के लिये यह उपदेश है|
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इस के लिए हमें क्या करना होगा? इसकी विधि गीता में ही भगवान श्रीकृष्ण ने ने बड़े स्पष्ट शब्दों में अन्यत्र बताई है| योगसूत्रों में और उपनिषदों में भी इस विषय पर बहुत अच्छे और स्पष्ट उपदेश हैं|
सरल से सरल शब्दों में कह सकते हैं कि हमें अपने अंतःकरण का विषय भगवान वासुदेव को ही बनाना होगा| अन्य कोई उपाय नहीं है| सर्वव्यापी भगवान वासुदेव के प्रति भक्ति भी जागृत करनी होगी और उनका ध्यान भी करना होगा| सभी को शुभ कामनायें, सभी का मंगल हो|
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आप सब महान आत्माओं को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० जुलाई २०१९
वेद त्रैगुण्यविषयक हैं, अर्थात् तीनों गुणों के कार्य रूप संसार को ही प्रकाशित करने वाले हैं|
परंतु हे अर्जुन तू असंसारी हो, निष्कामी हो, तथा निर्द्वन्द्व हो|
सुख-दुःख के हेतु जो परस्पर विरोधी (युग्म) पदार्थ हैं, उनका नाम द्वन्द्व है, उनसे रहित हो और नित्य सत्त्वस्थ हो अर्थात् सदा सत्त्वगुणके आश्रित हो, तथा निर्योगक्षेम हो|
अप्राप्त वस्तुको प्राप्त करने का नाम योग है और प्राप्त वस्तु के रक्षण का नाम क्षेम है| योगक्षेमको प्रधान मानने वाले की कल्याणमार्ग में प्रवृत्ति होनी अत्यन्त कठिन है,
अतः तू योगक्षेम को न चाहनेवाला हो, तथा आत्मवान् हो अर्थात् (आत्मविषयों में) प्रमादरहित हो| तुझ स्वधर्मानुष्ठान में लगे हुए के लिये यह उपदेश है|
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इस के लिए हमें क्या करना होगा? इसकी विधि गीता में ही भगवान श्रीकृष्ण ने ने बड़े स्पष्ट शब्दों में अन्यत्र बताई है| योगसूत्रों में और उपनिषदों में भी इस विषय पर बहुत अच्छे और स्पष्ट उपदेश हैं|
सरल से सरल शब्दों में कह सकते हैं कि हमें अपने अंतःकरण का विषय भगवान वासुदेव को ही बनाना होगा| अन्य कोई उपाय नहीं है| सर्वव्यापी भगवान वासुदेव के प्रति भक्ति भी जागृत करनी होगी और उनका ध्यान भी करना होगा| सभी को शुभ कामनायें, सभी का मंगल हो|
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आप सब महान आत्माओं को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० जुलाई २०१९
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