मठों व मंदिरों का महत्व .....
.
आजकल के इतिहासकारों के अनुसार मठों और मंदिरों का निर्माण महाभारत काल के पश्चात ही आरंभ हुआ| उससे पूर्व ऋषियों के आश्रम होते थे जहाँ सभी को शिक्षा मिलती थी| कुछ तीर्थ, तपोभूमि व साधना-स्थल होते थे|
.
सनातन वैदिक हिन्दू मान्यताओं के अनुसार "मठ" वह स्थान है जहाँ रह कर वटुक, आचार्यों के संरक्षण में वेदों का अध्ययन करते हैं| पर पारंपरिक रूप से मठ वह स्थान है जहां किसी सम्प्रदाय या परंपरा विशेष में आस्था रखने वाले शिष्य, आचार्य या धर्मगुरु अपने सम्प्रदाय के संरक्षण और संवर्द्धन के उद्देश्य से धर्म ग्रन्थों पर विचार विमर्श करते हैं या उनकी व्याख्या करते हैं, जिससे उस सम्प्रदाय के मानने वालों का हित हो|
.
भारतीय धर्मों के उपासना स्थलों को मंदिर कहते हैं| यह आराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित देवस्थान है, जहाँ आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाता है| वहाँ मूर्ति इत्यादि रखकर भी पूजा-अर्चना की जा सकती है|
.
मंदिरों के पीछे भावना थी कि अपनी धार्मिक मान्यताओं की रक्षा की जाए| मंदिरों का गुंबद या शिखर-स्थल ऐसा होता था जहाँ पवित्र स्पंदन बने रहते थे, अतः जो भी वहाँ आता वह भक्तिभाव में डूब जाता| वहाँ का प्रांगण भी ऐसे पत्थरों से बना होता जिनमें पवित्रता होती थी| मंदिर का शिखर दूर से ही दिख जाता| वहाँ एक पाठशाला भी होती थी, धर्मशाला भी होती थी, और अन्नक्षेत्र भी होता था| कहीं कहीं सदावर्त भी होते थे जहाँ से साधुओं को आवश्यक सामग्री प्रदान की जाती थी|
.
सारे मंदिर आस्था के केंद्र हैं| कालांतर में काल के प्रभाव से कहीं कहीं कोई विकृति भी आई है, उनमें सुधार हो सकता है| पर मंदिरों का महत्व यथावत है, वे धर्मगुरुओं के संरक्षण में ही रहने चाहियें|
.
दुर्भाग्य से भारत के आजाद होते ही भारत सरकार ने दुर्भावनावश सभी प्रमुख हिन्दू मंदिरों को लूटने के लिए अपने आधीन कर लिया जो गलत है| सरकार मस्जिदों के इमामों को तो वेतन और पेंशन दे रही है पर मंदिरों के पुजारियों को भूखा मार रही है जो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए मांग कर खाने को विवश हैं| सभी हिन्दू संप्रदायों के धर्माचार्यों की समितियाँ बनाकर सभी मंदिरों को बापस उन्हीं के आधीन कर देना चाहिए| कोई भी मस्जिद, दरगाह और चर्च, सरकारी नियन्त्रण में नहीं हैं, फिर हिंदुओं के प्रति ही दुर्भावना क्यों?
.
हर तरह की लूट-खसोट से मंदिरों की पवित्रता की रक्षा हो|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
२९ जुलाई २०१९
.
आजकल के इतिहासकारों के अनुसार मठों और मंदिरों का निर्माण महाभारत काल के पश्चात ही आरंभ हुआ| उससे पूर्व ऋषियों के आश्रम होते थे जहाँ सभी को शिक्षा मिलती थी| कुछ तीर्थ, तपोभूमि व साधना-स्थल होते थे|
.
सनातन वैदिक हिन्दू मान्यताओं के अनुसार "मठ" वह स्थान है जहाँ रह कर वटुक, आचार्यों के संरक्षण में वेदों का अध्ययन करते हैं| पर पारंपरिक रूप से मठ वह स्थान है जहां किसी सम्प्रदाय या परंपरा विशेष में आस्था रखने वाले शिष्य, आचार्य या धर्मगुरु अपने सम्प्रदाय के संरक्षण और संवर्द्धन के उद्देश्य से धर्म ग्रन्थों पर विचार विमर्श करते हैं या उनकी व्याख्या करते हैं, जिससे उस सम्प्रदाय के मानने वालों का हित हो|
.
भारतीय धर्मों के उपासना स्थलों को मंदिर कहते हैं| यह आराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित देवस्थान है, जहाँ आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाता है| वहाँ मूर्ति इत्यादि रखकर भी पूजा-अर्चना की जा सकती है|
.
मंदिरों के पीछे भावना थी कि अपनी धार्मिक मान्यताओं की रक्षा की जाए| मंदिरों का गुंबद या शिखर-स्थल ऐसा होता था जहाँ पवित्र स्पंदन बने रहते थे, अतः जो भी वहाँ आता वह भक्तिभाव में डूब जाता| वहाँ का प्रांगण भी ऐसे पत्थरों से बना होता जिनमें पवित्रता होती थी| मंदिर का शिखर दूर से ही दिख जाता| वहाँ एक पाठशाला भी होती थी, धर्मशाला भी होती थी, और अन्नक्षेत्र भी होता था| कहीं कहीं सदावर्त भी होते थे जहाँ से साधुओं को आवश्यक सामग्री प्रदान की जाती थी|
.
सारे मंदिर आस्था के केंद्र हैं| कालांतर में काल के प्रभाव से कहीं कहीं कोई विकृति भी आई है, उनमें सुधार हो सकता है| पर मंदिरों का महत्व यथावत है, वे धर्मगुरुओं के संरक्षण में ही रहने चाहियें|
.
दुर्भाग्य से भारत के आजाद होते ही भारत सरकार ने दुर्भावनावश सभी प्रमुख हिन्दू मंदिरों को लूटने के लिए अपने आधीन कर लिया जो गलत है| सरकार मस्जिदों के इमामों को तो वेतन और पेंशन दे रही है पर मंदिरों के पुजारियों को भूखा मार रही है जो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए मांग कर खाने को विवश हैं| सभी हिन्दू संप्रदायों के धर्माचार्यों की समितियाँ बनाकर सभी मंदिरों को बापस उन्हीं के आधीन कर देना चाहिए| कोई भी मस्जिद, दरगाह और चर्च, सरकारी नियन्त्रण में नहीं हैं, फिर हिंदुओं के प्रति ही दुर्भावना क्यों?
.
हर तरह की लूट-खसोट से मंदिरों की पवित्रता की रक्षा हो|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
२९ जुलाई २०१९
No comments:
Post a Comment