जातिवाद वेद-विरुद्ध है, अतः त्याज्य है .....
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सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के किसी भी ग्रंथ में जातिप्रथा का उल्लेख नहीं है| गुण और कर्मों के आधार पर वर्ण-व्यवस्था मात्र थी जो स्वाभाविक है| गीता में भगवान कहते हैं .....
"चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः| तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्||४:१३||
अर्थात .... गुण और कर्मों के विभाग से चातुर्वण्य मेरे द्वारा रचा गया है| यद्यपि मैं उसका कर्ता हूँ तथापि तुम मुझे अकर्ता और अविनाशी जानो||.
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मूल मनुस्मृति में कहीं भी जातिप्रथा का उल्लेख नहीं है| जो लोग मनुस्मृति को गालियाँ देते हैं, यह उनकी विकृत और कुटिल मानसिकता है| मनुस्मृति वेदों पर आधारित है जहाँ सिर्फ वर्णों का ही गुण-कर्मों के आधार पर उल्लेख है| अंग्रेजों के वेतनभोगी मेक्समूलर जैसे पादरियों ने हिंदुओं के धर्मग्रंथों को प्रक्षिप्त और विकृत ही किया| शूद्रों पर अत्याचारों की झूठी कथाएँ और इतिहास विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा रचा गया| मुस्लिम आक्रान्ताओं और अंग्रेजों ने पूरा प्रयास किया हिंदुओं के धर्मग्रंथों को नष्ट करने का, पर वे भगवान की कृपा से ही बचे रहे क्योंकि ब्राह्मणों ने उन्हें रट रट कर याद कर लिया था|
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जातिप्रथा का आरंभ उस काल में हुआ था जब भारत पर स्थल मार्ग से अरब, फारस और मध्य एशिया के विदेशी आक्रान्ताओं के आक्रमण आरंभ हुए, और जल मार्ग से पूर्तगालियों का| उस से पूर्व कोई जातिप्रथा नहीं थी| भारत का वर्तमान संविधान ही सैंकड़ों जातियों का उल्लेख करता है जब कि किसी भी हिन्दू धर्म-ग्रंथ में इनका उल्लेख नहीं है|
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हरिः ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ जुलाई २०१९
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सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के किसी भी ग्रंथ में जातिप्रथा का उल्लेख नहीं है| गुण और कर्मों के आधार पर वर्ण-व्यवस्था मात्र थी जो स्वाभाविक है| गीता में भगवान कहते हैं .....
"चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः| तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्||४:१३||
अर्थात .... गुण और कर्मों के विभाग से चातुर्वण्य मेरे द्वारा रचा गया है| यद्यपि मैं उसका कर्ता हूँ तथापि तुम मुझे अकर्ता और अविनाशी जानो||.
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मूल मनुस्मृति में कहीं भी जातिप्रथा का उल्लेख नहीं है| जो लोग मनुस्मृति को गालियाँ देते हैं, यह उनकी विकृत और कुटिल मानसिकता है| मनुस्मृति वेदों पर आधारित है जहाँ सिर्फ वर्णों का ही गुण-कर्मों के आधार पर उल्लेख है| अंग्रेजों के वेतनभोगी मेक्समूलर जैसे पादरियों ने हिंदुओं के धर्मग्रंथों को प्रक्षिप्त और विकृत ही किया| शूद्रों पर अत्याचारों की झूठी कथाएँ और इतिहास विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा रचा गया| मुस्लिम आक्रान्ताओं और अंग्रेजों ने पूरा प्रयास किया हिंदुओं के धर्मग्रंथों को नष्ट करने का, पर वे भगवान की कृपा से ही बचे रहे क्योंकि ब्राह्मणों ने उन्हें रट रट कर याद कर लिया था|
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जातिप्रथा का आरंभ उस काल में हुआ था जब भारत पर स्थल मार्ग से अरब, फारस और मध्य एशिया के विदेशी आक्रान्ताओं के आक्रमण आरंभ हुए, और जल मार्ग से पूर्तगालियों का| उस से पूर्व कोई जातिप्रथा नहीं थी| भारत का वर्तमान संविधान ही सैंकड़ों जातियों का उल्लेख करता है जब कि किसी भी हिन्दू धर्म-ग्रंथ में इनका उल्लेख नहीं है|
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हरिः ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ जुलाई २०१९
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पुनश्च :---
भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में जातियाँ स्वाभाविक रूप से समाज के हर क्षेत्र में किसी न किसी रूप में है। ये कभी समाप्त नहीं की जा सकतीं। ये सदा थीं, और सदा ही रहेंगी। जातिवाद गलत है, लेकिन जातिप्रथा स्वभाविक है।
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हिन्दू समाज कभी भी जाति-विहीन नहीं हो सकता। हरेक जाति को उचित स्थान प्राप्त होना चाहिए। सामाजिक न्याय के नाम पर कुछ जातियों के साथ भारत के हरेक राजनीतिक दल ने बहुत बड़ा अन्याय किया है जो घोर महापाप है। जाति-प्रथा की निंदा कभी मैं भी करता था, लेकिन बाद में समझ में आया कि यह तो स्वाभाविक है, और पूरे विश्व में है। हिन्दू समाज की एकता जाति सहित ही होगी। किसी भी तरह का आरक्षण नहीं होना चाहिए। जाति के नाम पर होने वाला आरक्षण महापाप है
भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में जातियाँ स्वाभाविक रूप से समाज के हर क्षेत्र में किसी न किसी रूप में है। ये कभी समाप्त नहीं की जा सकतीं। ये सदा थीं, और सदा ही रहेंगी। जातिवाद गलत है, लेकिन जातिप्रथा स्वभाविक है।
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हिन्दू समाज कभी भी जाति-विहीन नहीं हो सकता। हरेक जाति को उचित स्थान प्राप्त होना चाहिए। सामाजिक न्याय के नाम पर कुछ जातियों के साथ भारत के हरेक राजनीतिक दल ने बहुत बड़ा अन्याय किया है जो घोर महापाप है। जाति-प्रथा की निंदा कभी मैं भी करता था, लेकिन बाद में समझ में आया कि यह तो स्वाभाविक है, और पूरे विश्व में है। हिन्दू समाज की एकता जाति सहित ही होगी। किसी भी तरह का आरक्षण नहीं होना चाहिए। जाति के नाम पर होने वाला आरक्षण महापाप है