आज रात्री से ही यथासंभव अधिकाधिक समय परमात्मा का ध्यान करें .....
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हम परमात्मा की कृपा से ही जीवित हैं, अन्न-जल-वस्त्र-आवास आदि जैसे किसी बाहरी साधन मात्र से नहीं. यह सृष्टि परमात्मा की है हमारी नहीं, इसको चलाना उसी का कार्य है| हमारा कार्य है जहाँ भी उसने हमें नियुक्त किया है वहाँ उसके द्वारा दिए हुए कार्य को पूरी निष्ठा से उसी की चेतना में स्थित होकर यथासंभव पूर्णता से सम्पन्न करना| किसी भी प्रकार की किसी चिंता की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि भगवान का गीता में शाश्वत वचन है ....
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते | तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ||"
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हम भाग्यशाली हैं कि उसने हमारे ह्रदय में अपने प्रति परम प्रेम जागृत किया है और स्वयं को जानने की अभीप्सा उत्पन्न की है| जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उस से तो अच्छा है परमात्मा का निरंतर चिंतन करते हुए इस देह रूपी वाहन का ही त्याग कर दें| इस देह रूपी वाहन का क्या लाभ जिस पर यात्रा करते हुए हम अपने प्रियतम परमात्मा को न पा सकें? रही बात रक्षा की तो भगवान का रामायण में यह शाश्वत वचन भी है ...
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम||"
अब भी यदि संदेह है तो उसका कोई उपचार नहीं है|
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परमात्मा को पाना हमारा सर्वोच्च यानी प्रथम अंतिम और एकमात्र कर्त्तव्य है| अन्य सारे कार्य उसी की भूमिका मात्र हैं| इस भौतिक देह में जन्म से पूर्व भी वह ही हमारे साथ था, और इस देह के शान्त होने के पश्चात भी सिर्फ वह शाश्वत मित्र ही हमारे साथ रहेगा| उसका साथ शाश्वत है| जो कुछ भी हमें प्राप्त है वह सब उसी का है| माँ-बाप, भाई-बहिनों, और सम्बन्धियों-मित्रों का प्यार ..... सब उसी का प्यार था जो इन सब के माध्यम से प्राप्त हुआ| वास्तव में वह स्वयं ही इन सब के रूपों में आया| हमारा ऐकमात्र सम्बन्ध भी सिर्फ उसी से है| वह ही हमारे ह्रदय में धड़क रहा है, वह ही हमारे फेफड़ों से सांस ले रहा है, वह ही इन आँखों से देख रहा है, वह ही इन पैरों से चल रहा है| जिस क्षण वह इस ह्रदय में धड़कना बन्द कर देगा उस क्षण से हमारा कुछ भी नहीं रहेगा| अतः जब तक होश है तब तक उस को पा लेना ही हमारा परम कर्त्तव्य है|
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इस दिशा में हम अभी से प्रयास करें| जितना आवश्यक है उतना विश्राम तो हम करें पर रात्री की नीरव शांति का समय अन्य सब अनावश्यक कार्यों को त्याग कर परमात्मा के ध्यान में ही व्यतीत करें| कौन क्या कहता है इस का कोई महत्त्व नहीं है, हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं, सिर्फ इसी का महत्त्व है|
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अतः आज रात्री से ही यह शुभ कार्य करें| आज रात्री को आठ बजे से कल प्रातः छः बजे तक मौन रखें और यथासंभव अधिकाधिक समय परमात्मा के ध्यान में ही व्यतीत करें| परमात्मा का आशीर्वाद सदा हमारे साथ है| सभी की रक्षा होगी|
ॐ तत्सत् ! ॐ श्रीगुरवे नमः ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०१७
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हम परमात्मा की कृपा से ही जीवित हैं, अन्न-जल-वस्त्र-आवास आदि जैसे किसी बाहरी साधन मात्र से नहीं. यह सृष्टि परमात्मा की है हमारी नहीं, इसको चलाना उसी का कार्य है| हमारा कार्य है जहाँ भी उसने हमें नियुक्त किया है वहाँ उसके द्वारा दिए हुए कार्य को पूरी निष्ठा से उसी की चेतना में स्थित होकर यथासंभव पूर्णता से सम्पन्न करना| किसी भी प्रकार की किसी चिंता की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि भगवान का गीता में शाश्वत वचन है ....
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते | तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ||"
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हम भाग्यशाली हैं कि उसने हमारे ह्रदय में अपने प्रति परम प्रेम जागृत किया है और स्वयं को जानने की अभीप्सा उत्पन्न की है| जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उस से तो अच्छा है परमात्मा का निरंतर चिंतन करते हुए इस देह रूपी वाहन का ही त्याग कर दें| इस देह रूपी वाहन का क्या लाभ जिस पर यात्रा करते हुए हम अपने प्रियतम परमात्मा को न पा सकें? रही बात रक्षा की तो भगवान का रामायण में यह शाश्वत वचन भी है ...
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम||"
अब भी यदि संदेह है तो उसका कोई उपचार नहीं है|
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परमात्मा को पाना हमारा सर्वोच्च यानी प्रथम अंतिम और एकमात्र कर्त्तव्य है| अन्य सारे कार्य उसी की भूमिका मात्र हैं| इस भौतिक देह में जन्म से पूर्व भी वह ही हमारे साथ था, और इस देह के शान्त होने के पश्चात भी सिर्फ वह शाश्वत मित्र ही हमारे साथ रहेगा| उसका साथ शाश्वत है| जो कुछ भी हमें प्राप्त है वह सब उसी का है| माँ-बाप, भाई-बहिनों, और सम्बन्धियों-मित्रों का प्यार ..... सब उसी का प्यार था जो इन सब के माध्यम से प्राप्त हुआ| वास्तव में वह स्वयं ही इन सब के रूपों में आया| हमारा ऐकमात्र सम्बन्ध भी सिर्फ उसी से है| वह ही हमारे ह्रदय में धड़क रहा है, वह ही हमारे फेफड़ों से सांस ले रहा है, वह ही इन आँखों से देख रहा है, वह ही इन पैरों से चल रहा है| जिस क्षण वह इस ह्रदय में धड़कना बन्द कर देगा उस क्षण से हमारा कुछ भी नहीं रहेगा| अतः जब तक होश है तब तक उस को पा लेना ही हमारा परम कर्त्तव्य है|
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इस दिशा में हम अभी से प्रयास करें| जितना आवश्यक है उतना विश्राम तो हम करें पर रात्री की नीरव शांति का समय अन्य सब अनावश्यक कार्यों को त्याग कर परमात्मा के ध्यान में ही व्यतीत करें| कौन क्या कहता है इस का कोई महत्त्व नहीं है, हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं, सिर्फ इसी का महत्त्व है|
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अतः आज रात्री से ही यह शुभ कार्य करें| आज रात्री को आठ बजे से कल प्रातः छः बजे तक मौन रखें और यथासंभव अधिकाधिक समय परमात्मा के ध्यान में ही व्यतीत करें| परमात्मा का आशीर्वाद सदा हमारे साथ है| सभी की रक्षा होगी|
ॐ तत्सत् ! ॐ श्रीगुरवे नमः ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०१७
मेरे अनेक मित्र आज अपनी पूर्ण निष्ठा से पूरी रात भर के लिए मौन होकर भगवान का ध्यान कर रहे हैं| भगवान में हम सब एक हैं वैसे ही जैसे जल की सभी बूँदें महासागर में एक हो जाती हैं| आप विश्व में कहीं भी हों, यदि आप भगवान से प्रेम करते हैं तो हमारे साथ एक हैं| परमात्मा एक प्रवाह है जिसे अपने माध्यम से बहने दीजिए| हम तो निमित्त मात्र हैं, परमात्मा स्वयं ही हमारे माध्यम से अपना स्वयं का ध्यान कर रहे हैं| ॐ गुरु ! जय गुरु ! ॐ ॐ ॐ !!
ReplyDeleteWe shall meditate on the Divine for 8 hours tonight in silence. Please join us. Om Guru !