हृदयाकाशरूप ईश्वर से अभेद प्राप्त कर लेना मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी साधना और सबसे बड़ी उपलब्धि है .....
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बृहदारण्यक में राजा जनक को ऋषि याज्ञवल्क्य ने जो उपदेश दिए हैं, वे अति महत्वपूर्ण हैं| पर उनकी समाधि भाषा को कोई श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ही समझा सकता है| हृदयाकाश रूप ईश्वर और उससे अभेद प्राप्त करने का उपदेश भी ऋषि याज्ञवल्क्य के उपदेशों में है| मेरे जैसे अकिंचन व्यक्ति में कुछ कुछ अति अल्प मात्रा में समझते हुए भी उसे व्यक्त करने की थोड़ी सी भी सामर्थ्य इस जन्म में तो नहीं है| उसके लिए और जन्म लेना पड़ेगा|
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मुझे कोई मोक्ष नहीं चाहिए, मैं नित्य मुक्त हूँ| आत्मा पर पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण जो अज्ञान रूपी आवरण पड़ा हुआ है, उस अज्ञान रूपी आवरण से मुक्त होने के लिए अभी और जन्म लेने ही पड़ेंगे| इस जन्म में तो यह संभव नहीं है| भगवान सनत्कुमार, ऋषि याज्ञवल्क्य व भगवान श्रीकृष्ण जैसे गुरु, और नारद, जनक व अर्जुन जैसे शिष्य व वेदव्यास जैसी प्रतिभाएँ इस भारतवर्ष की पुण्यभूमि में ही अवतरित हुई हैं| उससे भी पूर्व जब ब्रह्मा जी ने ऋषि अथर्व को, और अथर्व ने अन्य ऋषियों को ब्रह्मज्ञान दिया वह भी क्या युग रहा होगा !
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मूर्धा का द्वार .... सुषुम्ना, ब्रह्मरंध्र और उससे परे का लोक सामने प्रकाशमान होकर प्रशस्त है| लगता है यह इस देह रूपी वाहन को कैसे त्यागा जाए इसकी तैयारी करने का आदेश है| अब बचा खुचा जीवन परमात्मा की चेतना में ही निकले, अन्य कोई कामना नहीं रही है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२७ दिसंबर २०१७
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बृहदारण्यक में राजा जनक को ऋषि याज्ञवल्क्य ने जो उपदेश दिए हैं, वे अति महत्वपूर्ण हैं| पर उनकी समाधि भाषा को कोई श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ही समझा सकता है| हृदयाकाश रूप ईश्वर और उससे अभेद प्राप्त करने का उपदेश भी ऋषि याज्ञवल्क्य के उपदेशों में है| मेरे जैसे अकिंचन व्यक्ति में कुछ कुछ अति अल्प मात्रा में समझते हुए भी उसे व्यक्त करने की थोड़ी सी भी सामर्थ्य इस जन्म में तो नहीं है| उसके लिए और जन्म लेना पड़ेगा|
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मुझे कोई मोक्ष नहीं चाहिए, मैं नित्य मुक्त हूँ| आत्मा पर पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण जो अज्ञान रूपी आवरण पड़ा हुआ है, उस अज्ञान रूपी आवरण से मुक्त होने के लिए अभी और जन्म लेने ही पड़ेंगे| इस जन्म में तो यह संभव नहीं है| भगवान सनत्कुमार, ऋषि याज्ञवल्क्य व भगवान श्रीकृष्ण जैसे गुरु, और नारद, जनक व अर्जुन जैसे शिष्य व वेदव्यास जैसी प्रतिभाएँ इस भारतवर्ष की पुण्यभूमि में ही अवतरित हुई हैं| उससे भी पूर्व जब ब्रह्मा जी ने ऋषि अथर्व को, और अथर्व ने अन्य ऋषियों को ब्रह्मज्ञान दिया वह भी क्या युग रहा होगा !
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मूर्धा का द्वार .... सुषुम्ना, ब्रह्मरंध्र और उससे परे का लोक सामने प्रकाशमान होकर प्रशस्त है| लगता है यह इस देह रूपी वाहन को कैसे त्यागा जाए इसकी तैयारी करने का आदेश है| अब बचा खुचा जीवन परमात्मा की चेतना में ही निकले, अन्य कोई कामना नहीं रही है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२७ दिसंबर २०१७
... भगवत्कृपा से सब सम्भव है जी ।
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