Friday, 29 December 2017

हृदयाकाशरूप ईश्वर से अभेद प्राप्त कर लेना मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी साधना और सबसे बड़ी उपलब्धि है .....

हृदयाकाशरूप ईश्वर से अभेद प्राप्त कर लेना मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी साधना और सबसे बड़ी उपलब्धि है .....
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बृहदारण्यक में राजा जनक को ऋषि याज्ञवल्क्य ने जो उपदेश दिए हैं, वे अति महत्वपूर्ण हैं| पर उनकी समाधि भाषा को कोई श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ही समझा सकता है| हृदयाकाश रूप ईश्वर और उससे अभेद प्राप्त करने का उपदेश भी ऋषि याज्ञवल्क्य के उपदेशों में है| मेरे जैसे अकिंचन व्यक्ति में कुछ कुछ अति अल्प मात्रा में समझते हुए भी उसे व्यक्त करने की थोड़ी सी भी सामर्थ्य इस जन्म में तो नहीं है| उसके लिए और जन्म लेना पड़ेगा|
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मुझे कोई मोक्ष नहीं चाहिए, मैं नित्य मुक्त हूँ| आत्मा पर पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण जो अज्ञान रूपी आवरण पड़ा हुआ है, उस अज्ञान रूपी आवरण से मुक्त होने के लिए अभी और जन्म लेने ही पड़ेंगे| इस जन्म में तो यह संभव नहीं है| भगवान सनत्कुमार, ऋषि याज्ञवल्क्य व भगवान श्रीकृष्ण जैसे गुरु, और नारद, जनक व अर्जुन जैसे शिष्य व वेदव्यास जैसी प्रतिभाएँ इस भारतवर्ष की पुण्यभूमि में ही अवतरित हुई हैं| उससे भी पूर्व जब ब्रह्मा जी ने ऋषि अथर्व को, और अथर्व ने अन्य ऋषियों को ब्रह्मज्ञान दिया वह भी क्या युग रहा होगा !
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मूर्धा का द्वार .... सुषुम्ना, ब्रह्मरंध्र और उससे परे का लोक सामने प्रकाशमान होकर प्रशस्त है| लगता है यह इस देह रूपी वाहन को कैसे त्यागा जाए इसकी तैयारी करने का आदेश है| अब बचा खुचा जीवन परमात्मा की चेतना में ही निकले, अन्य कोई कामना नहीं रही है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२७ दिसंबर २०१७

1 comment:

  1. ... भगवत्कृपा से सब सम्भव है जी ।

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