गण, गणपति, पंचप्राण, दश महाविद्याएँ और कुण्डलिनी महाशक्ति .......
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"ॐ नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमः" | वे कौन से गण हैं जिनके गणपति श्री गणेश जी हैं ? मेरी दृष्टि में इस का उत्तर है ..... पंच प्राण ही वे गण हैं जिनके अधिपति ॐकार रूप में श्री गणेश जी हैं | वे ही प्रथम पूज्य हैं |
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मेरी अनुभूति से ॐकार ही सर्वव्यापी प्राण तत्व है, यह ॐकार ही प्राण तत्व के रूप में परमात्मा की सर्वप्रथम अभिव्यक्ति है, और साकार रूप में संसारी लोगों के लिए ये ही श्रीगणेश जी हैं |
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जहाँ तक मैं समझता हूँ, ॐकार पर ध्यान ही प्राण तत्व की साधना है क्योंकि ॐकार ही समस्त सृष्टि का प्राण है | यह प्राण तत्व ही कुण्डलिनी महाशक्ति के रूप में मूलाधार चक्र में व्यक्त होता है और यह कुण्डलिनी ही सुषुम्ना मार्ग से सभी चक्रों को भेदती हुई सहस्त्रार में प्रवेश कर अज्ञान का नाश करती है | प्राण का घनीभूत रूप ही कुण्डलिनी महाशक्ति है |
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सहस्त्रार ही श्रीगुरुचरण हैं, सहस्त्रार पर ध्यान ही श्रीगुरुचरणों का ध्यान है और सहस्त्रार में स्थिति ही श्रीगुरुचरणों में आश्रय है | सहस्त्रार से परे जो परब्रह्म यानि परमशिव हैं वे अनुभूतिगम्य और अनिर्वचनीय हैं |
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इन पंच प्राणों के पाँच सौम्य और पाँच उग्र रूप ही दश महाविद्याएँ हैं |
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सार की बात यह है कि ॐकार से बड़ा कोई मन्त्र नहीं है, और आत्मानुसंधान से बड़ा कोई तंत्र नहीं है | ॐकार पर ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ साकार उपासना है |
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२१ दिसंबर २०१७
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"ॐ नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमः" | वे कौन से गण हैं जिनके गणपति श्री गणेश जी हैं ? मेरी दृष्टि में इस का उत्तर है ..... पंच प्राण ही वे गण हैं जिनके अधिपति ॐकार रूप में श्री गणेश जी हैं | वे ही प्रथम पूज्य हैं |
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मेरी अनुभूति से ॐकार ही सर्वव्यापी प्राण तत्व है, यह ॐकार ही प्राण तत्व के रूप में परमात्मा की सर्वप्रथम अभिव्यक्ति है, और साकार रूप में संसारी लोगों के लिए ये ही श्रीगणेश जी हैं |
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जहाँ तक मैं समझता हूँ, ॐकार पर ध्यान ही प्राण तत्व की साधना है क्योंकि ॐकार ही समस्त सृष्टि का प्राण है | यह प्राण तत्व ही कुण्डलिनी महाशक्ति के रूप में मूलाधार चक्र में व्यक्त होता है और यह कुण्डलिनी ही सुषुम्ना मार्ग से सभी चक्रों को भेदती हुई सहस्त्रार में प्रवेश कर अज्ञान का नाश करती है | प्राण का घनीभूत रूप ही कुण्डलिनी महाशक्ति है |
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सहस्त्रार ही श्रीगुरुचरण हैं, सहस्त्रार पर ध्यान ही श्रीगुरुचरणों का ध्यान है और सहस्त्रार में स्थिति ही श्रीगुरुचरणों में आश्रय है | सहस्त्रार से परे जो परब्रह्म यानि परमशिव हैं वे अनुभूतिगम्य और अनिर्वचनीय हैं |
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इन पंच प्राणों के पाँच सौम्य और पाँच उग्र रूप ही दश महाविद्याएँ हैं |
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सार की बात यह है कि ॐकार से बड़ा कोई मन्त्र नहीं है, और आत्मानुसंधान से बड़ा कोई तंत्र नहीं है | ॐकार पर ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ साकार उपासना है |
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२१ दिसंबर २०१७
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