Thursday, 27 July 2017

ब्रह्मविद्या के आचार्य और अधिकारी कौन हैं .....

ब्रह्मविद्या के आचार्य और अधिकारी कौन हैं .....
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ब्रह्मविद्या के आचार्य हैं --- भगवान सनत्कुमार, वे साक्षात मूर्तिमान ब्रह्मविद्या हैं|
उन्हीं की कृपा से सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के मानस पुत्र नारद जी देवर्षि बने| ब्रह्मविद्या का ज्ञान सर्वप्रथम भगवन सनत्कुमार ने नारद जी को दिया था|
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जो धर्म का दान करते हैं और भगवद् महिमा का प्रचार कर नरत्व और देवत्व को उभारते हैं वे ही नारद हैं|
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द्वापर युग में भगवान सनत्कुमार ने विदुर जी को ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया था|
विदुर जी की प्रार्थना स्वीकार कर भगवान सनत्कुमार ने प्रकट होकर धृतराष्ट्र को भी ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया|
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महाभारत युद्ध से पूर्व धृतराष्ट्र ने विदुर जी से प्रार्थना की कि युद्ध में अनेक सगे-सम्बन्धी मारे जायेंगे और भयंकर प्राणहानि होगी, तो उस शोक को मैं कैसे सहन कर पाऊंगा?
विदुर जी बोले की मृत्यु नाम की कोई चीज ही नहीं होती| मृत्युशोक तो केवल मोह का फलमात्र होता है|
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धृतराष्ट्र की अकुलाहट सुनकर विदुर ने उन्हें समझाया कि इस अनोखे गुप्त तत्व को मैं भगवन सनत्कुमार की कृपा से ही समझ सका था पर ब्राह्मण देहधारी ना होने के कारण मैं स्वयं उस तत्व को अपने मुंह से व्यक्त नहीं कर सकता| मैं अपने ज्ञानगुरु मूर्त ब्रह्मविद्यास्वरुप भगवान सनत्कुमार का आवाहन ध्यान द्वारा करता हूँ|
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भगवन सनत्कुमार जैसे ही प्रकट हुए धृतराष्ट्र उनके चरणों में लोट गए और रोते हुए अपनी प्रार्थना सुनाई| तब भगवन सनत्कुमार ने धृतराष्ट्र को ब्रह्मविद्या के जो उपदेश दिए वह उपदेशमाला --- "सनत्सुजातीयअध्यात्म् शास्त्रम्" कही जाती है|
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भगवान सनत्कुमार का ही दूसरा नाम सनत्सुजात है| सनत्कुमार ही स्कन्द यानि कार्तिकेय हैं|
ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय|

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(यह विषय बहुत लंबा है और इसकी चर्चा को कोई अंत नहीं है अतः इसको यहीं विराम देता हूँ)
कृपा शंकर
२८ जुलाई २०१३

3 comments:

  1. अति धन्य - ब्रह्मविद्या के आचार्य भगवान श्री सनत्कुमार जी को शत - शत दंडवत प्रणाम । भगवान् श्रीराम ने अपना पीताम्बर उतारकर उसपर भगवान् श्रीसनत्कुमार जी को बैठाया । कारण कि माया आपके ऊपर सबार नहीं हो सकती । माया के ऊपर आप सबार हों । भगवान का पीताम्बर माया का स्वरुप है ।

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  2. जो जीवों को प्रसन्न होकर सद्गति प्रदान करता है उसका नाम है -नर । " नरतीति नरः प्रोक्तः परमात्मा सनातनः " अर्थात् नरति --सद्गतिं प्रापयति भक्तान् इति नरः । सनातन परमात्मा को नर इसी कारण कहा गया है । इस नरपदवाच्य परमात्मा से सम्बद्ध दिव्य ज्ञान को नार कहते हैं --नरस्येदं ज्ञानं नारम् । नारं हरिविषयकदिव्यज्ञानं ददाति इति नारदः । नार--भगवान् के विषय का दिव्य ज्ञान जो प्रदान करे -उस देवर्षि को नारद कहते हैं|

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  3. यह प्रकरण बहुत सुन्दर एवं मननीय है । इस पर बड़े बड़े मनीषियों ने व्याख्या लिखकर अपने जीवन तथा लेखनी को धन्य किया है |

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