२८ जुलाई २०१४
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राष्ट्र की वर्तमान परिस्थितियाँ और हमारा दायित्व :---
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राष्ट्र की वर्तमान परिस्थितियों और धर्म के इतने ह्रास से मैं अत्यधिक व्यथित रहा हूँ और लगभग निराश ही हो गया था| मात्र आध्यात्म में ही इसका समाधान ढूँढता रहा हूँ| पर अब एक नया दृष्टिकोण सामने आ रहा है|
भारतवर्ष की अस्मिता पर पिछले हज़ार बारह सौ वर्षों से इतने भयानक आक्रमण और अत्याचार हुए हैं की उसका दस लाखवाँ भाग भी किसी अन्य धर्म और संस्कृति पर होता तो वह कभी की समाप्त हो जाती| इतने अन्याय, अत्याचार, विध्वंश और आक्रमणों के पश्चात भी हम हिन्दू जीवित हैं|
भारतवर्ष में हिन्दू जाति अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए ही प्रयत्नशील रही है| इसके लिए उसने दासता भी सही, अत्याचार भी सहे, झुक कर भी रही कि कैसे भी हमारे अस्तित्व की रक्षा हो|
इस अस्तित्व की रक्षा के संघर्ष में अनेक बुराइयाँ हमारे में आ गईं| हम अपने आप में ही बहुत अधिक स्वार्थी और असंवेदनशील हो गए हैं| एक हीन भावना भी हमारे मध्य आ गई है|
इसमें मैं सोचता हूँ कि हिन्दुओं का क्या दोष है| ऐसा होना स्वाभाविक ही था| इसमें आत्म ग्लानी और हीनता के विचार नहीं आने चाहिए| अल्प मात्रा में ही सही जितना हमारे वश में हो सके उतना हमें स्वयं के उदाहरण द्वारा अच्छाई लाने का प्रयास करते रहना चाहिए| अल्प मात्र में ही सही हम अपनी कमियों और बुराइयों को दूर करें, अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें, उन्हें अपने धर्म और संस्कृति का ज्ञान दें और स्वयं पर गर्व करना सिखाएँ| निश्चित रूप से हमारी कमियाँ दूर होंगी|
मेरे विचार से एक आध्यात्मिक राष्ट्रवाद ही वर्तमान समस्याओं का समाधान है| जीवन का केंद्रबिंदु परमात्मा को बनाकर ही कुछ सकारात्मक किया जा सकता है|
जय माँ भारती | जय सनातन धर्म | जय भारतीय संस्कृति | ॐ ॐ ॐ ||
२८ जुलाई २०१४
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राष्ट्र की वर्तमान परिस्थितियाँ और हमारा दायित्व :---
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राष्ट्र की वर्तमान परिस्थितियों और धर्म के इतने ह्रास से मैं अत्यधिक व्यथित रहा हूँ और लगभग निराश ही हो गया था| मात्र आध्यात्म में ही इसका समाधान ढूँढता रहा हूँ| पर अब एक नया दृष्टिकोण सामने आ रहा है|
भारतवर्ष की अस्मिता पर पिछले हज़ार बारह सौ वर्षों से इतने भयानक आक्रमण और अत्याचार हुए हैं की उसका दस लाखवाँ भाग भी किसी अन्य धर्म और संस्कृति पर होता तो वह कभी की समाप्त हो जाती| इतने अन्याय, अत्याचार, विध्वंश और आक्रमणों के पश्चात भी हम हिन्दू जीवित हैं|
भारतवर्ष में हिन्दू जाति अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए ही प्रयत्नशील रही है| इसके लिए उसने दासता भी सही, अत्याचार भी सहे, झुक कर भी रही कि कैसे भी हमारे अस्तित्व की रक्षा हो|
इस अस्तित्व की रक्षा के संघर्ष में अनेक बुराइयाँ हमारे में आ गईं| हम अपने आप में ही बहुत अधिक स्वार्थी और असंवेदनशील हो गए हैं| एक हीन भावना भी हमारे मध्य आ गई है|
इसमें मैं सोचता हूँ कि हिन्दुओं का क्या दोष है| ऐसा होना स्वाभाविक ही था| इसमें आत्म ग्लानी और हीनता के विचार नहीं आने चाहिए| अल्प मात्रा में ही सही जितना हमारे वश में हो सके उतना हमें स्वयं के उदाहरण द्वारा अच्छाई लाने का प्रयास करते रहना चाहिए| अल्प मात्र में ही सही हम अपनी कमियों और बुराइयों को दूर करें, अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें, उन्हें अपने धर्म और संस्कृति का ज्ञान दें और स्वयं पर गर्व करना सिखाएँ| निश्चित रूप से हमारी कमियाँ दूर होंगी|
मेरे विचार से एक आध्यात्मिक राष्ट्रवाद ही वर्तमान समस्याओं का समाधान है| जीवन का केंद्रबिंदु परमात्मा को बनाकर ही कुछ सकारात्मक किया जा सकता है|
जय माँ भारती | जय सनातन धर्म | जय भारतीय संस्कृति | ॐ ॐ ॐ ||
२८ जुलाई २०१४
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